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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024 (16:54 IST)

जैन धर्म का चमत्कारी और अद्भुत ग्रंथ- सिरी भूवलय का खुला राज

जैन धर्म का चमत्कारी और अद्भुत ग्रंथ- सिरी भूवलय का खुला राज - siribhoovalaya in hindi
siribhoovalaya meaning in hindi: जैन धर्म को निर्ग्रंथ धर्म कहते हैं। निर्ग्रंथ शब्द का अर्थ है 'अनबाउंड' और निर्ग्रंथ शब्द का मतलब है निष्काम तपस्वी, जिसकी वासनाएं बहुत कमजोर होती हैं और जल्दी ही गायब हो जाती हैं। यानी जिसमें कोई ग्रंथी नहीं है। जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथ हैं- समयसार और तत्वार्थ सूत्र। इसके अलावा, आचारसार, प्रमेय कमल मार्तण्ड, हरिवंश पुराण, आदिपुराण, आलाप पद्धति, नय चक्र, समयसार की टीका, 'तात्पर्यवृत्ति', आत्मानुशासन, उत्तर पुराण, धन्यकुमार चरित्र, जीन सूत्र, तिलोय पण्णत्ति, चूर्णि सूत्र, एकीभाव स्तोत्र आदि सैंकड़ों ग्रंथ हैं इन्हीं में से एक है सिरी भूवलय ग्रंथ। यह चमत्कारी और अद्भुत ग्रंथ है।
 
सिरी भूवलय ग्रंथ की खास बातें- Special things about Siri Bhuvalaya Granth:-
1. सिरी भूवलय को जैन गणिताचार्य कुमुदेन्दु महामुनि ने अंकों की भाषा में लिखा था। 
2. इसमें अक्षरों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि अंकों का इस्तेमाल किया गया है। 
3. इसमें 1 से 64 तक की गिनती का इस्तेमाल किया गया है।  
4, इस ग्रंथ में लगभग 6 लाख श्लोक हैं। 
5. यह ग्रंथ महाभारत से करीब छह गुना बड़ा है। 
6. इसमें कुल 26 अध्याय हैं।
7. अब तक इस ग्रंथ के केवल तीन अध्यायों को ही डिकोड किया गया है। 
9. यह ग्रंथ किसी लिपि में नहीं लिखा गया है, बल्कि अंकों में लिखा गया है।
10. इन अंकों को एक खास पद्धति से पढ़ने पर एक खास भाषा में पढ़ा जा सकता है।
 
सिरि भूवलय का इतिहास- History of Siri Bhuvala:
इस ग्रंथ की रचना महान गणितज्ञ आचार्य वीरसेन और जिनसेन जी के शिष्य कुमुदेन्दु ने 9वीं सदी में की थी। कुमुदेन्दु जी अपने सैकड़ों अनुयायियों के साथ कर्नाटक की नंदी पहाड़ी पर आए थे। उस समय राष्ट्रकूट शासन चल रहा था। वहीं पर उन्होंने इस अद्भुत ग्रंथ की रचना की थी। उस समय राजा अमोघवर्ष नृपतुंग प्रथम का शासन था। कुमुदेन्दु कन्नड़ भाषा के कवि थे। कुमुदेन्दु के ग्रंथ के महत्व को सबसे पहले मलिकब्बे जी ने समझा जो राष्ट्रकूट शासन में सैन्य प्रमुख की पत्नी थीं। उन्होंने यह ग्रंथ आठ जैन आचार्यों में वितरित कर दिया था और इसके बाद यह ग्रंथ करीब 1000 वर्षों तक गुमनामी में रहा। इसके बाद यह ग्रंथ धरणेंद्र पंडित के हाथों लगा जो 19वीं सदी में हुए थे। यह आयुर्वेदिक चिकित्सक थे और कर्नाटक के डोड्डाबेला नामक गांव में रहते थे। वे इस ग्रंथ को अपने मित्र चंदा पंडितजी के पास ले गए। दोनों मिलकर इसे डिकोड करने का प्रयास करते हैं और इस दौरान वे प्रवचन देने का कार्य भी करते थे। उनके प्रवचन में वे आयुर्वेद की बातें भी बताते थे।

उनके प्रवचन में आयुर्वेदाचार्य यल्लपा शास्त्री भी आते थे। उन्हें इस ग्रंथ के बारे में पता चला तो वे इसे पाना चाहते थे। इसे पाने के लिए उन्होंने धीरणेंद्र पंडित जी भतीजी से विवाह कर लिया। 1913 में पंडित धीरणेंद्र का निधन हो गया तो गरीबी के चलते उनकी पुस्तकों को नीलाम कर दिया गया। इसी नीलामी में भूवलय ग्रंथ भी था जिसे यल्लपा शास्त्री जी खरीद लेते हैं। यल्लपा शास्त्री ने इस ग्रंथ को पाने के लिए नीलामी मे अपनी पत्नी के गहने तक बेच दिए थे। इसके बाद यल्लपा शास्त्री अपने जीवन का मिशन बना लेते हैं कि इस ग्रंथ को वे डिकोड करके रहेंगे। 1957 तक यह इस ग्रंथ पर शोध करते रहे। करीब 30 वर्षों के शोध के बाद उन्होंने सिरी भूवलय का 1953 में पहला खंड और 1955 में दूसरा खंड प्रकाशित किया। 
कैसे किया सिरी भूगोल को डिकोड- How did Siri decode geography?
सिरी भूवलय ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ पर एक मैट्रिक्स नजर आएगा। इस मैट्रिक्स में 27 लाइन है और 27 कॉलम्स है। यानी 27 गुना 27 बराबर 729 खाने मिलेंगे। हर खाने में 1 से लेकर 64 के बीच की कोई न कोई संख्या लिखी मिलेगी। इस एक मैट्रिक्स को एक चक्र भी कहते हैं। कहते हैं कि मूल सिरी भूवलय में 9 खंड थे। मंगल प्राभृत, श्रुतावतार, सूत्रावतार, प्राणावय पूर्व, धवल, जयधवल, विजय धवल, महाधवला और अतिशयधवल। इन सभी में करीब 16 हजार चक्र थे। वर्तमान में जो सिरी भुवलय प्राप्त है उसमें एक ही खंड है।

एक खंड में 59 अध्याय और 1270 चक्र है। वर्तमान में इसके 3 ही अध्यायों को डिकोड कर पाएं हैं। 1 से लेकर 64 तक के नंबर किसी न किसी ध्वनि को प्रकट करते हैं। जैसे 1 नंबर छोटे अ की ध्वनि को प्रकट करता है। इसी प्रकार यह 1 से लेकर 27 तक स्वर को प्रकट करता है। इसके बाद 28 से लेकर 60 तक यह व्यंजन को प्रकट करता है। अंतिम चार विशेष प्रकार की ध्वनियों को प्रकट करते हैं। इसमें कई भाषाओं की ध्वनियां हैं। संस्कृत, कन्नड़, फारसी है और भी कई भाषाएं हैं। उनकी ध्वनियां भी उपस्थित है। जब हम संख्याओं को ध्वनियों के साथ जोड़ा गया और उसकी टेबल बनाई गई तो उसे कुमुदेन्दु टेबल नाम दिया गया। डिकोड करने पर पता चला कि ये जो संख्याएं हैं ये किसी अक्षर से नहीं जुड़ी है बल्कि यह किसी भी भाषा की ध्वनि से जुड़ी है। इन चक्र को डिकोड करने की कई विधियां हैं। इन विधियों को बंध कहा जाता है। इसके कई प्रकार है। जैसे चक्रबंध, चिद्रबंध, सारसबंध, हंसबंध, विमलांकबंध, नवमांकबंध आदि कई बंध है। इन बंधों से सभी ग्रंथ, श्लोक, पाठ आदि को पढ़ सकते हैं।
 
क्या है सिरी भूवलय ग्रंथ में- What is there in Siri Bhuvalaya Granth?
  • आज से करीब 11 सौ साल पहले कुमुदन्दु महामुनि ने भारत के संपूर्ण ज्ञान और परंपरा को गणितीय भाषा लिखा है।  
  • उन्होंने भारतीय दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, भाषा, संस्कृति और परंपरा को एक ही ग्रंथ में समेट दिया है। 
  • कहते हैं कि इस ग्रंथ में अंकों के माध्यम से रामायण, महाभारत, जैन ग्रंथ, पुराण, ज्योतिष, आयुर्वेद, खगोल और साहित्य सभी को एक ग्रंथ में लिख दिया है।
  • इस ग्रंथ को भारत के पहले राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद ने दुनिया का आठवां अजूबा कहा था।
  • कई भारतीय संस्थान सिरि भूवलय को डीकोड करने में लगे हैं, लेकिन आज तक यह डिकोड नहीं हो पाया है।
  • यह ग्रंथ भारत की 700 से ज्यादा भाषाओं और 18 लिपियों में अंकित है।- शतायु
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