गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. Scientists warn on global warming
Written By
Last Modified: नोर्विच (ब्रिटेन) , शनिवार, 1 जुलाई 2023 (19:11 IST)

अल नीनो से बढ़ सकता है ग्लोबल वार्मिंग, क्या पड़ेगा यूरोप के मौसम पर प्रभाव

अल नीनो से बढ़ सकता है ग्लोबल वार्मिंग, क्या पड़ेगा यूरोप के मौसम पर प्रभाव - Scientists warn on global warming
Scientists warn on global warming : वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2024 ऐसा साल हो सकता है जब ग्लोबल वार्मिंग (पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि) औद्योगीकरण के पहले वाले स्तर के मुकाबले 1.5 डिग्री सेल्सियस के आंकड़े को पार कर सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, तापमान बढ़ने के तमाम कारणों में मौसमी कारक 'अल नीनो' भी महत्वपूर्ण है।

अल नीनो का प्रभाव : जब प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी ध्रुवीय क्षेत्र में समुद्र के बड़े हिस्से के सतह का तापमान बढ़ जाता है तो उसे अल नीनो प्रभाव कहते हैं। कई बार यह तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इस अतिरिक्त तापमान के कारण वातावरण में गर्मी बढ़ जाती है। अल नीनो प्रभाव वाले वर्षों में इस गर्मी के कारण पृथ्वी का तापमान भी बढ़ जाता है।
 
अल नीनो से सामान्य तौर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का मौसम प्रभावित होता है। सामान्य तौर पर जो मूसलधार बारिश दक्षिण-पूर्व एशिया या पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में होनी चाहिए वह इस प्रभाव के कारण दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर होती है। इस बदलाव के कारण विभिन्न महादेशों में सूखा और बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है, खाद्यान्न की ऊपज प्रभावित हो सकती है और खुले में खेले जाने वाले खेल जैसे क्रिकेट आदि पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
 
इस क्षेत्र के मौसम में होने वाले बदलाव से पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि हजारों किलोमीटर की दूरी पर स्थित उत्तरी यूरोप में अल नीनो के प्रभाव के कारण सर्दियों में ज्यादा और सूखी ठंड पड़ती है। इसके बावजूद तमाम ऐसे कारक हैं जो यूरोप में मौसम, खासतौर से सर्दियों को प्रभावित करते हैं। ऐसे में यूरोप में सामान्य मौसमी गतिविधियों को अल नीनो प्रभाव से जोड़ते हुए कुछ ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है।

अल नीनो क्या है : प्रशांत महासागर दक्षिणी अमेरिका के तट पर अपने पूर्वी किनारे से लेकर इंडोनेशिया में अपने पश्चिमी तट तक 13000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी में फैला हुआ है। इतनी लंबी दूरी में समुद्र के सतह का तापमान बदलता रहता है। सामान्य तौर पर प्रशांत महासागर के पूर्वी किनारे पर तापमान औसतन या पश्चिमी किनारे के मुकाबले पांच डिग्री से ज्यादा नीचे रहता है यानी पूर्वी किनारा पश्चिमी किनारे के मुकाबले ठंडा रहता है।
 
पूर्वी किनारे के ठंडा रहने का कारण दक्षिण अमेरिका के पास समुद्र में ठंडे पानी का मिलना होता है, इस प्रक्रिया में समुद्र की गहराई से ठंडा पानी ऊपर सतह की ओर खिंचता है। हालांकि तापमान में यह विषमता हर कुछ साल में अल नीनो सदर्न ओसिलेशन (एनसो) नामक प्राकृतिक चक्र के तहत कम होती है या गहरी होती है।
 
इस चक्र के दौरान प्रशांत महासागर में पश्चिम की ओर चलने वाले व्यापारिक पवन की गति तेज या कम हो सकती है और इसके प्रभाव से समुद्र तल से कम से ज्यादा मात्रा में ठंडा पानी समुद्र की सतह की ओर आकर भूमध्य रेखा की ओर बहेगा। फिलहाल हम ऐसे समय में प्रवेश कर रहे हैं जहां प्रशांत महासागर के पूर्वी किनारे का तापमान सामान्य से ज्यादा है और यह अल नीनो प्रभाव है।
 
पूर्वानुमान के अनुसार, एन्सो के संकेतक के रूप में देखे जाने वाले भूमध्य रेखा के आसपास के प्रशांत महासागर का तापमान 2024 की शुरुआत में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। वहीं ला नीना प्रभाव इसके विपरीत है। इसमें समुद्र की सतह का तापमान ठंडा हो जाता है। पिछले तीन साल से जारी ला नीना प्रभाव इस साल समाप्त हो रहा है।
 
पश्चिमी उष्णकटिबंधिय प्रशांत क्षेत्र का तापमान पृथ्वी पर सभी महासागरों के तापमान के मुकाबले कुछ ज्यादा है। इसके कारण वहां हवा में नमी जमा होती है जिससे बादल बनते हैं और भारी बारिश होती है। सबसे ज्यादा तापमान वाले क्षेत्र में सबसे ज्यादा वर्षा की संभावना होती है।
 
चूंकि अल नीनो के दौरान समुद्र के सतह का तापमान प्रशांत महासागर के पूर्वी किनारे की ओर ज्यादा होता है, ऐसे में बादल बनने और बारिश होने की संभावना भी उसी क्षेत्र में ज्यादा होती है। प्रत्‍येक अल नीनो प्रभाव अलग-अलग होता है। कुछ में सिर्फ पूर्वी प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ जाता है जैसा कि 1997-98 में हुआ था। कुछ में मध्य प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ जाता है जैसा कि 2009-10 में हुआ था।

इससे यूरोप के मौसम पर क्या प्रभाव होता है : पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में घने बादलों और मूसलधार बारिश के कारण समुद्र में ‘रॉस्बी वेव्स’ जैसी लहरें उठती हैं। ये लहरें हजारों किलोमीटर लंबी होती हैं और पूर्वी किनारे की ओर बढ़ती हैं तो बीच में वे भूमध्य रेखा के पास ‘जेटस्ट्रीम’ से टकराती हैं। जब रॉस्बी लहरें और जेटस्ट्रीम आपस में मिलते हैं तो जेटस्ट्रीम और प्रभावी हो जाता है।
 
अल नीनो प्रभाव के कारण प्रशांत महासागर की यह अशांत मौसमी गतिविधियां पूर्वी किनारे की ओर बढ़ती हैं जिससे रॉस्बी लहरों की ऊंचाई और गति आदि प्रभावित होती है। इनके कारण जेटस्ट्रीम के स्थान में परिवर्तन होता है जिसका दुनियाभर के मौसम पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
Edited By : Chetan Gour (द कन्वरसेशन) 
ये भी पढ़ें
कौन था 17 साल का 'नाहेल' जिसकी मौत पर फ्रांस में मचा बड़ा फसाद?