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यूरोप में दिसंबर में आ सकती है Coronavirus की नई लहर, नया वैरिएंट BQ.1.1 बढ़ाएगा मुश्किल

यूरोप में दिसंबर में आ सकती है Coronavirus की नई लहर, नया वैरिएंट BQ.1.1 बढ़ाएगा मुश्किल - New wave of Coronavirus may come in Europe in December
कोरोना अब भी हार नहीं मान रहा है। अपना रूप बार-बार बदल कर अब भी हमें छका रहा है। उसके नए रूप का नाम है BQ.1.1, जो अपने पूर्वगामी BA.5 का ही एक वंशज है।
 
BQ.1.1 की संक्रामकता भी इतनी अधिक है कि उसे ग्रीक पौराणिक कथाओं से लिया गया 'सर्बेरस' उपनाम दिया गया है। इस नाम का अर्थ है 'नरक का शिकारी कुत्ता।' अमेरिका में नए संक्रमणों के लिए वही ज़िम्मेदार बताया जा रहा है। अमेरिका से अब यूरोप भी पहुंच चुका है और यूरोप में भी तेज़ी से फैल रहा है। यूरोपीय रोग नियंत्रण एजेंसी ECDC का मानना है कि BQ.1.1 वैरिएंट, दिसंबर 2022 के मध्य तक, यूरोप में SARS-CoV-2 के संक्रमण के 50 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हो सकता है। देर-सवेर वह एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के देशों में भी पहुंचेगा।
 
पिछले सितंबर महीने से स्विट्ज़रलैंड और जर्मनी में BQ.1.1 के संक्रमण से पीड़ितों की संख्या हर दो सप्ताह बाद दोगुनी होती देखी गई है। कोरोना वायरस का कोई मूलतः नया संस्करण नहीं होने के कारण, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने, BQ.1.1 को ग्रीक वर्णमाला के 'डेल्टा' या 'ओमिक्रोन' जैसे किसी अक्षर वाला कोई नया नाम नहीं दिया है। वह पिछली गर्मियों में फैल रहे BA.5 में हुए उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) की देन है, और BA.5 2022 के आरंभ में पहली बार यूरोप में दिखे 'ओमिक्रोन' के BA.2 कहलाने वाले स्वरूप की देन था।
 
अगली बड़ी लहर : कई विशेषज्ञ मानते हैं कि BQ.1.1 दिसंबर आने तक या उसके दौरान, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में कोरोना की अगली बड़ी लहर के लिए जिम्मेदार होगा। वे ओमिक्रॉन की देन BA.5 की तुलना में BQ.1.1 को 10 प्रतिशत अधिक संक्रामक बता रहे हैं।
 
स्विट्ज़रलैंड के बाज़ेल विश्वविद्यालय के बायोइन्फॉरमैटिशियन रिशार्द नेहर का कहना है कि इस वायरस में ठीक उस जगह उत्परिवर्तन हुआ है, जहां शरीर के एन्टीबॉडी, वायरस के स्पाइक-प्रोटीन को बांधते हैं। इन जगहों पर वायरस यदि अपने आप को बदल लेता है, तो टीकाकरण या पिछले संक्रमणों के माध्यम से बने एंटीबॉडी, वायरस को भलीभांति पहचान नहीं पाते। वायरस, स्पाइक प्रोटीन के ज़रिए ही शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करता है। इसी कारण शरीर में एंटीबॉडी होते हुए भी एक नए संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।
 
BQ.1.1 अधिक संक्रामक अवश्य है, पर मुख्यतः इस कारण बहुत घातक नहीं लगता कि इस बीच अधिकांश लोगों को एक से अधिक बार टीके लग चुके हैं। जो लोग पहले कभी संक्रमित रह चुके हैं और ठीक हो गए हैं, उनके लिए भी BQ.1.1 का संक्रमण बहुत ख़तरनाक सिद्ध होने की संभावना कम ही देखी जा रही है। तब भी, उदाहरण के लिए जर्मनी में, इतने अधिक लोग बीमार हैं कि जर्मन रेलवे सहित देश की बहुत-सी परिवहन सेवाओं को ड्राइवरों के भारी अकाल का सामना करना पड़ रहा है। बहुत सारी ट्रेनें और बसें नहीं चल पा रही हैं।
एन्टीबॉडी उपचारों का कोई असर नहीं हो रहा : इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि जर्मनी के एरलांगन विश्वविद्यालय के शोधकों ने 'द लैन्सेट इन्फेक्शस डिज़ीज़ेस' पत्रिका में अभी-अभी प्रकाशित एक शोधपत्र के द्वारा सजग किया है कि इस समय अनुमति प्राप्त एन्टीबॉडी उपचारों का BQ.1.1 पर कोई असर नहीं हो रहा है। शोधपत्र के लेखकों ने डॉक्टरों को सलाह दी है कि BQ.1.1 के ऐसे रोगियों को, जिनके लिए यह बीमारी जोखिम-भरी हो सकती है, उनके मामले में केवल एन्टीबॉडी उपचार पर भरोसा करने के बदले 'पैक्सलोविड' (Paxlovid) जैसी दूसरी दवाएं देने की भी सोचें।
 
प्रयोगशाला प्रयोगों में इन वैज्ञानिकों ने पाया कि BQ.1.1 को न तो किसी एक एन्टीबॉडी दवा से और न कई एन्टीबॉडी दवाओं के मेलजोल से निष्क्रिय किया जा सकता है। यूरोप में अधिकृत 'मोनोक्लोनल एन्टीबॉडी' दवाओं से तो बात बिल्कुल ही नहीं बनेगी। यह विवशता वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुए उत्परिवर्तन के कारण पैदा हो गई है। कोरोना वायरस से लड़ाई वास्तव में 'तू डाल-डाल, तो मैं पात-पात' की लड़ाई बन गई है और अभी लंबे समय तक बनी रहेगी।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala