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Written By Author राम यादव
Last Updated : मंगलवार, 18 अप्रैल 2023 (15:27 IST)

परमाणु ऊर्जा की जर्मनी में उठ गई अर्थी

परमाणु ऊर्जा की जर्मनी में उठ गई अर्थी - germany first country to ends nuclear energy
बॉन। दुनिया के प्रमुख औद्योगिक देशों में जर्मनी ऐसा पहला देश है, जिसने परमाणु ऊर्जा को अपने यहां तिलांजलि दे दी है। देश के अंतिम तीन परमाणु बिजलीघर 15 अप्रैल की मध्यरात्रि को देशव्यापी ग्रिड से अलग कर दिए गए। परमाणु ऊर्जा के विरोधी उसकी अर्थी उठ जाने पर पूरे देश में जश्न मना रहे हैं। वे पिछले चार दशकों से इसके लिए जी-जान से लड़ रहे थे।
 
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से विभाजित जर्मनी के पश्चिमी हिस्से में, 1जनवरी 1961 को वह क़ानून लागू हुआ था, जो शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग की अनुमति देता था। इस अनुमति के बाद देश में तेज़ी से परमाणु बिजलीघर बनने लगे। एक समय 35 परमाणु रिएक्टर उनमें सक्रिय थे।किंतु 1980 वाले दशक में जर्मन युवजनों की पर्यावरणवादी ग्रीन पार्टी का उदय होने और उसकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़नें के साथ, जनता के बीच अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो सैंन्य संगठन के परमणु अस्त्रों को जर्मानी से हटाने और अपने परमाणु बिजलीघरों को बंद करने की मांगें भी बढ़ने लगीं।
 
आये दिन भारी प्रदर्शनः इन मांगों को मनवाने के लिए आये दिन भारी प्रदर्शन होने लगे। परमाणु बिजलीघरों से एक ऐसा रोडियो-सक्रिय कचरा भी निकलता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। इस कचरे की ढुलाई के लिए बने विशेष वाहनों और विशेष कंटेनरों वाली रेल गाड़ियों का रास्ता रोकने के लिए प्रदर्शनकारी सड़कों तथा रेल की पटरियों पर बैठ कर धरने देने लगे। उनका यह भी कहना था कि न केवल परमाणु कचरा और उसका परिवहन ही किसी दुर्घटना के कारण जानलेवा बन सकता है, स्वयं परमाणु रिएक्टर भी अपने आप में परमाणु बम के समान होते हैं। उनमें विस्फोट या उन पर आतंकवादी हमला भी हो सकता है।
 
यह आशंका 25 और 26 अप्रैल 1986 के बीच वाली रात सही साबित हो गई। उस रात यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु बिजलीघर में एक भयंकर दुर्घटना हुई। कई धमाके हुए। 4 नंबर वाले रिएक्टर में आग लग गई और वह पिघलने लगा। रिएक्टर वाली इमारत ध्वस्त हो गई। 30 किलोमीटर तक के दायरे में रहने वाले एक लाख से अधिक लोगों को वहां से निकालना पड़ा। दुर्घटना के बाद के पहले तीन महीनों में 28 लोग मरे और बिजलीघर के 223 कर्चारियों
को अस्पतालों में भर्ती करना पड़ा। चेर्नोबिल दुर्घटना से फैला रेडियोधर्मी विकिरण यूरोप में दूर-दूर तक फैला।
 
परमाणु ऊर्ज का बिजली में रूपांतरणः किसी परमाणु बिजलीघर में बिजली पैदा करने के लिए ऊर्जा, परमाणु के नियंत्रित विखंडन द्वारा प्राप्त की जाती है। इस ऊर्जा को पाने के लिए एक संयंत्र में, जिसे रिएक्टर कहते हैं, यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित किया जाता है। इस विखंडन से गर्मी के रूप में ऊर्जा और बहुत से न्यूट्रॉन कण मुक्त होते हैं। विखंडन से मुक्त हुई ऊर्जा से पानी को उबाल कर पहले भाप प्राप्त की जाती है। यह भाप भारी दबाव के साथ एक ऐसे टर्बाइन को घुमाती है, जो बिजली पैदा करने वाले जनरेटर से जुड़ा होता है।
 
यूरेनियम को किसी रिएक्टर में, विशेष प्रकार की छड़ों के रूप में, ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। हर छड़ आम तौर पर 3 से 4 साल बाद बदलनी पड़ती है। हर रिएक्टर में इस तरह हर साल लगभग 30टन नए यूरेनियम की ज़रूरत पड़ती है। इससे हिसाब लगाया जा सकता है हर रिएक्टर से हर साल लगभग कितना ऐसा परमाणु कचरा निकलता होगा, जो हज़ारों नहीं, बल्कि लाखों वर्षों तक अपने रेडियो-सक्रिय विकरण के कारण हम मनुष्यों ही नहीं, हर प्रकार के जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य के लिए घातक बना रहता है।
 
चेर्नोबिल दुर्घटना ने झकझोर दियाः 1986 की चेर्नोबिल दुर्घटना ने जर्मनी को इतना अधिक झकझोर दिया कि 15 जून 2000 को, जर्मनी की तत्कालीन सरकार और परमाणु बिजलीघरों की मालिक कंपनियों को एक समझौता करना पड़ा। समझौते में तय हुआ कि उस समय जर्मनी में काम कर रहे 19 परमाणु रिएक्टरों को 2021 तक क्रमशः बंद कर दिया जायेगा। नए रिएक्टर और बिजलीघर नहीं बनेंगे। इस समझौते के आधार पर 2009 तक 17 रिएक्टर बंद हो चुके थे।
 
चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद भी जर्मनी में परमणु बिजलीघरों के अंधकारमय भविष्य के बारे में यदि कोई कसर रह गई थी, तो उसे जापान के फ़ूकुशिमा परमाणु बिजलीघर में 11 मार्च 2011 को हुई दुर्घटना ने पूरी करदी। उस दिन वहां दिन में पौने तीन बजे एक विकराल सुनामी लहर आई थी। लहर के साथ आया ढेर सारा समुद्री पानी बिजलीघर के 6 में से 4 रिएक्टरों तक पहुंच गया और वे पिघलने लगे। भारी मात्रा में रेडियोधर्मी विकिरण मुक्त
हुआ। उससे दूर-दूर तक हवा, पानी तथा ज़मीन प्रदूषित हुई। सुनामी लहर ने 22 हज़ार प्राणों की बलि ली और 4 लाख 70 हज़ार लोगों को प्रदूषित इलाके से हटाना पड़ा।
 
फ़ूकुशिमा विभीषिका ने होश उड़ा दियेः फ़ूकुशिमा वाली विभीषिका के चार ही दिन बाद, 11 मार्च 2011 को जर्मनी की तत्कालीन चांसलर (प्रधानमंत्री) अंगेला मेर्कल ने एक ऐसा परमाणु स्थगनकाल घोषित किया, जिसके अंतर्गत7 सबसे पुराने परमाणु बिजलीघरों को यथासंभव जल्द ही बंद कर दिया जाना था।
 
संसद के अनुमोदन के बिना किंतु इन बिजलीघरों को तुरंत बंद करना सभव नहीं था, अतः उन्हें तीन महीने का और समय दिया गया। इन बिजलीघरों के 7 रिएक्टर ब्लॉक अगस्त 2011 तक बंद हो गए। उनके बचे हुए 9 रिएक्टर ब्लॉक 31 दिसंबर 2022 तक बंद हो जाने थे, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जर्मनी सहित यूरोप के सभी देशों में पैदा हो गए ऊर्जा संकट ने उनकी आयु साढ़े तीन महीने बढ़ा दी। 15 अप्रैल 2023 को यह बढ़ा हुआ जीवनकाल भी समाप्त हो गया। इसी के साथ जर्मनी के परमाणु बिजलीघर अब इतिहास बन जायेंगे।
 
कथानक का उपसंहारः काम अभी भी तमाम नहीं हुआ है। अब शुरू होगा जर्मनी में परमाणु ऊर्जा के अब तक के इतिहास का एक ऐसा उपसंहार, जिसमें लिखा जायेगा कि बंद परमाणु बिजलीघरों को तोड़ने-गिराने और उनके ख़तरनाक रेडियोधर्मी कचरे को निरापद बनाने के लिए कितने वर्षों या दशकों तक क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े। जर्मनी को परमाणु बिजली दे चुके और पहले ही बंद हो चुके 33 परमाणु बिजलीघरों में से अब तक केवल 3 को ही पूरी तरह तोड़-गिरा कर उनका अस्तित्व मिटाया जा चुका है। उनके निशान को मिटाने का ख़र्च भी हर बार कम से कम एक अरब यूरो रहा है। किसी परमाणु बिजलीधर को गिरा कर पूरी तरह मिटाने में 20 साल लगे, तो किसी के लिए 12 साल लगे। इतना समय लगने का एक बड़ा कारण यह भी है कि किसी परमाणु बिजलीघर को राष्ट्रिय ग्रिड से अलग कर देने के बाद भी उसके रिएक्टर तुरंत ठंडे नहीं पड़ जाते और न ही सारे कर्मचारियों की छुट्टी हो जाती है।
 
रेडियो-सक्रियता बड़ी समस्या बनी रहती हैः रिएक्टर का पूरा ढांचा, यूरेनियम वाली ईंधन- छड़ें, इस्पाती सामग्री, पाइप, दीवारें, फ़र्श इत्यादि बहुत सारे दूसरे हिस्से भी एक लंबे समय तक न केवल बहुत गरम रहते हैं, ख़तरनाक़ सीमा तक रेडियो-सक्रिय भी बने रहते हैं। उन्हें बहुत सावधानी के साथ तोड़ना-फोड़ना, काटना-घिसना, एक-दूसरे से अलग-थलग करना और कई-कई वर्षों तक पानी में डुबा कर ठंडा करना पड़ता है। पानी इन चीज़ों की रेडियो- सक्रियता से इतना प्रदूषित हो जाता है कि उसे भी जहां चाहें वहां फेंका या बहाया नहीं जा सकता।
 
रिएक्टर और उससे जुड़े बहुत सारे उपकरणों को नष्ट करने के लिए विशेष मशीनों और रोबोट का उपयोग करना पड़ता है। रिएक्टर की यूरेनियम वाली ईंधन-छड़ें जब 80 डिग्री सेल्सियस तक ठंडी हो जाती हैं, तब जर्मनी में उन्हें विकिरणरोधी विशेष प्रकार के कंटेनरों में बंद कर किसी अंतरिम भंडारण सुविधा में रखा जाता है। जर्मनी ही नहीं, वास्तव में दुनिया के किसी भी देश के पास रेडियो-सक्रिय परमाणु कचरे को रखने की ऐसी भूमिगत या किसी दूसरे प्रकार की स्थायी सुविधा नहीं है, जहां ऐसा कचरा लाखों वर्षों तक अनछुआ पड़ा रह सके। लाखों वर्ष इसलिए, क्योंकि हम नहीं जानते कि भविष्य में कौन, कब और कैसे इस कचरे के संपर्क में आ जाए और उसके दुष्प्रभावों से पीड़ित हो जाए। नैतिकता का तक़ाज़ा यही है कि आज के मनुष्य की करनी का दुष्परिणाम भावी पीढ़ियों को नही भुगतना पड़े।
 
हज़ारों घनमीटर रेडियो-सक्रिय कचराः जर्मनी के जिन परमाणु बिजलीघरों का नामोनिशान अब तक मिट चुका है, उन में से हर एक ने औसतन 5000 घनमीटर रेडियो-सक्रिय कचरा अपने पीछे छोड़ा है। यह कचरा री-साइकल नहीं हो सकता, इसलिए 16 जगहों पर अंतरिम रूप से जमा किया गया है। उसके और भावी कचरे के लिए ज़मीन के बहुत नीचे किसी अंतिम स्थायी भूमिगत सुविधा की खोज दशकों से चल रही है। अक्टूबर 2022 की वर्ल्ड न्यूक्लियर स्टैटस रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में अब तक 204 परमाणु बिजलीघर बंद हो चुके हैं, लेकिन उनमें से केवल10 का ही इस तरह सफ़ाया हो सका है उनका सचमुच कोई नामो-
निशान नहीं बचा है।
 
परमाणु बिजलीघरों का औसत जीवनकाल 40-45 साल ही होता है। रेडियो-सक्रिय कचरे को रखने की कोई अंतिम, स्थायी व निरापद जगह किसी भी देश को मिल नहीं पा रही है, इसलिए कोई भी देश बंद बिजलीघरों का पूरी तरह से सफ़ाया भी नहीं कर पाता है। उनके कचरे और भग्नावशेषों की देखरेख पर कुछ न खर्च निरंतर चलता रहता है। इन सब कारणों से हर परमाणु बिजलीघर ख़तरनाक़ होने के साथ-साथ, आर्थिक लाभ-हानी की दृष्टि से भी एक बहुत ही मंहगा सौदा है।
 
परमाणु ऊर्जा के नये विकल्पः जर्मनी ही नहीं, उसके दोनों जर्मन-भाषी दक्षिणी पड़ोसी देश, ऑस्ट्रिया और स्विट्ज़रलैंड भी परमाणु बिजलीघरों से छुटकारा पाने की राह पर हैं। यूरोप के प्रमुख देशों में फ़िलहाल केवल ब्रिटेन और फ्रांस ही नए परमाणु बिजलीघर बनाने की सोच रहे हैं। जनवरी 2023 के सबसे नवीनतम आंकड़ो के अनुसार, दुनिया के परमाणु बिजलीघरों में इस समय अमेरिका में 92, फ्रांस में 56, चीन में 55, रूस में 37, जापान में 33, दक्षिण कोरिया में 25, भारत में 22, कैनडा में 19, यूक्रेन में 15, ब्रिटेन में 9, स्पेन में 7, पाकिस्तान में 6 और चेक गणराज्य में भी 6 रिएक्टर ऐसे हैं, जो कार्यक्षम हैं। फ्रांस के लगभग एक-तिहाई रिएक्टर किसी न किसी कारण से प्रायः बीमार रहते हैं। उसे अंशतः अन्य देशों से बिजली खरीदनी पड़ती है।
 
दुनिया के लगभग सभी देश अब परमाणु ऊर्जा, कोयले और तेल से दूरी बना रहे हैं। बदले में अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा के सौर, पवन तथा पनबिजली जैसे स्रोतों पर ध्यान देने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और तापमानवर्धन ही सारा कारण नहीं हैं, परमाणु ऊर्जा से जुड़े ख़तरे और ख़र्च भी बहुत बड़े कारण हैं।
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