सवा 8 करोड़ की जनसंख्या वाले जर्मनी में हर दिन औसतन पौने 2 हत्याएं होती हैं। हत्या के हर मामले को मीडिया में जगह नहीं मिलती। किंतु इन दिनों एक ऐसी हत्या हुई है जिसकी एक सप्ताह से देश के हर मीडिया में हर दिन चर्चा हो रही है। पूरा देश स्तब्ध है और समझ नहीं पा रहा है कि ऐसा हुआ कैसे? यही नहीं, हत्यारों
को कोई सजा भी नहीं मिल सकती।
फ्रोएडेनबेर्ग 18 हजार की जनसंख्या का एक छोटा-सा शहर है। पश्चिमी जर्मनी के 2 राज्यों- नॉर्थ राइन वेस्टफालिया और राइनलैंड पैलेटिनेट की सीमा पर बसा है। वहां माता-पिता और उनकी 2 बेटियों वाला एक सामान्य परिवार रहता है। बड़ी बेटी 14 साल की है। लुईजे नाम की छोटी बेटी 12 साल की थी इसलिए कि वह अब इस दुनिया में नहीं रही।
अच्छी सहेलियां थीं
शनिवार, 11 मार्च को लुईजे ने कहा कि वह अपने स्कूल की 2 सहेलियों से मिलने जा रही है, शाम तक आ जाएगी। शाम तो क्या, रात भी हो गई और वह नहीं आई। माता-पिता ने पुलिस को खबर दी। पुलिस भी उसका पता नहीं लगा पाई। केवल इतना ही जान सकी कि लुईजे शाम 5.30 बजे अंतिम बार देखी गई थी। कह रही थी कि वह रास्ते में पड़ने वाले जंगल से होकर अपने घर जाएगी।
लुईजे की खोज अगले दिन रविवार 12 मार्च को जारी रही। इस बार एक जलकल (वॉटर वर्क्स) के पास उसका क्षत-विक्षत शव पड़ा मिला। यह जगह उसके घर के रास्ते के ठीक उल्टी दिशा में थी। लुईजे के मित्रों और सहेलियों से पूछताछ करते हुए पुलिस अंतत: उसकी उन 2 सहेलियों के पास पहुंची, जो पहले तो बहकाने की कोशिश करती रहीं, पर अंत में मंगलवार 14 मार्च को अपने माता-पिता की उपस्थिति में मान लिया कि उन्होंने ही लुईजें की हत्या की है।
न गिरफ्तारी, न मुकदमा
दोनों लुइजे के ही स्कूल में पढ़ने वाली 12 और 13 साल की छात्राएं हैं। दोनों ने मिलकर और चाकू से गोद-गोदकर लुईजे को बड़ी निर्ममता से मार डाला। दोनों चूंकि 14 साल से कम आयु की नाबालिग लड़कियां हैं, इसलिए जर्मनी के कानून के अनुसार पुलिस उन्हें न तो गिरफ्तार कर सकती थी और न अधिक पूछताछ। उन पर कोई केस-मुकदमा भी नहीं चल सकता। पुलिस ने उन्हें फिलहाल सरकारी युवजन कल्याण कार्यालय को सौंप दिया है। उनके माता-पिता इस कार्यालय की अनुमति के अनुसार उनसे मिलजुल सकते हैं और उनके संपर्क में रह सकते हैं।
लुइजे, 14 साल की उसकी बड़ी बहन और दोनों हत्यारिनें एक ही स्कूल की होने से स्कूल भी सन्नाटे में है। घटना के बाद वाले पूरे सप्ताह वहां पढ़ाई के बदले गहरा मातम छाया रहा। शिक्षकों-शिक्षिकाओं की भी समझ में नहीं आ रहा कि पढ़ाई हो कैसे?
फ्रोएडेनबेर्ग के चर्च में शोकसभा हुई। नगरपालिका भवन का झंडा झुका दिया गया। सभी लोग दु:खी हैं। यदि बातचीत करते भी हैं तो हर बातचीत इस हत्याकांड पर ही पहुंच जाती है। बच्चे, बच्चों की हत्या करने लगे हैं। लड़कियां, लड़कियों को मार डालती हैं। लोग पूछ रहे हैं कि अन्यथा अनुशासनप्रिय, खुशहाल और ऊंचे जीवन स्तर वाला देश कहलाने के शौकीन जर्मनी में ये हो क्या रहा है?
चाकू अभी तक नहीं मिला
जिस चाकू से लुईजे की हत्या की गई, वह अभी तक मिला नहीं है। लड़कियां इसे बताने के लिए बाध्य नहीं की जा सकतीं कि चाकू उन्होंने कहां छिपाया है या फेंका है? बताया जाता है कि तीनों बहुत घनिष्ठ सहेलियां थीं। हत्या वाले दिन उनके बीच कोई झगड़ा हुआ। किस बात को लेकर झगड़ा हुआ, इसका पता नहीं चला है। जो चीजें पुलिस और जांचकर्ताओं को मालूम भी होंगी, उन्हें वे इसलिए बता नहीं सकते, क्योंकि लड़कियों की कम आयु के कारण जर्मनी का कानून इसकी अनुमति नहीं देता।
दोनों लड़कियों ने भले ही माना है कि उन्होंने ही लुइजे की हत्या की है, तब भी जर्मनी के कानून के अनुसार वे हत्या की दोषी नहीं हैं। युवजन कल्याण कार्यालय उन्हें उचित समय पर उनके माता-पिता को सौंप देगा। जर्मन कानून के अनुसार 14 साल से कम आयु के बच्चों को सजा नहीं, शिक्षा मिलनी चाहिए। उनका मानसिक विकास ऐसा नहीं होता कि वे अच्छे-बुरे व उचित-अनुचित के बीच सही अंतर कर सकें।
भविष्य अंधकारमय नहीं बनाया जा सकता
उनके भावी जीवन को 14 साल से कम की कच्ची आयु में ही अंधकारमय नहीं बनाया जा सकता। इसीलिए हत्या का दोषी होते हुए भी उन पर केस-मुकदमा चलाकर न तो उन्हें दोषी घोषित किया जा सकता है और न उनके माता-पिता को दोष दिया जा सकता है। यह सब 14 या 18 साल की आयु के बाद किए गए अपराधों के मामले में ही संभव है।
जर्मनी में गंभीर अपराध करने वाले बच्चों को कोई सजा तभी सुनाई जा सकती है, जब वे कम से कम आयु 14 साल के हो गए हों। दूसरी ओर तथ्य यह भी है कि जर्मनी में 14 साल से कम आयु के बच्चों द्वारा मारपीट, अंगभंग, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, मार डालने और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं। 2020 में इस तरह के अपराध करने वाले बच्चों की संख्या 7,103 से बढ़कर 2021 में 7,477 हो गई थी। जानलेवा अपराध करने के संदिग्ध बच्चों की संख्या 2021 में 19 थी जिनमें 4 लड़कियों के भी नाम थे।
शिक्षक भी सुरक्षित नहीं!
एक दूसरा चिंताजनक पक्ष यह है कि स्कूली बच्चों द्वारा अपने शिक्षक-शिक्षिकाओं पर हमले करने के मामले भी काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। एक सर्वेक्षण में हर 5वें शिक्षक या शिक्षिका ने छात्र-छात्राओं द्वारा अपने ऊपर हमले की शिकायत की। जर्मनी में शिक्षक होना इस बीच खतरे से खाली नहीं रह गया है। शिक्षा ही नहीं, और बच्चों के मामले में ही नहीं, लगभग हर क्षेत्र में हिंसा और नैतिक पतन बढ़ता ही दिख रहा है। जर्मनी ही नहीं, यूरोप-
अमेरिका में सब जगह यही हाल है।