प्रीति गुप्ता, मुंबई और बेन मॉरिस, लंदन, बीबीसी बिज़नेस रिपोर्टर
चिंतन सुहागिया की उम्र महज 26 साल है, लेकिन उनके पास भारत की डायमंड इंडस्ट्री में सात साल काम करने का अनुभव है। चिंतन की कंपनी दुनिया की डायमंड पॉलिशिंग की राजधानी कहे जाने वाले गुजरात के सूरत में है। सात सालों के दौरान उन्होंने सीखा कि हीरों की जांच कैसे की जाती है और अब वो खास उपकरणों की मदद से इनकी गुणवत्ता की ग्रेडिंग करते हैं।
हीरा उद्योग में बड़े बदलाव ने चिंतन का करियर बदल दिया। दो साल पहले तक उन्होंने जितने भी हीरे टेस्ट किए थे वे सभी नैचुरल थे। यानी हीरा खदानों के अंदर जमीन से निकाले गए थे।
लेकिन अब वो खास मशीनों से बनने वाले हीरे का काम करते हैं। डायमंड इंडस्ट्री में दस साल पहले इस तरह का काम नहीं दिखता था। लेकिन बेहतर तकनीक की बदौलत अब ये काम काफी आगे बढ़ा है।
ये काम है लैब में हीरे बनाना। ये आर्टिफिशियल डायमंड प्राकृतिक हीरों से इतने मिलते जुलते हैं कि विशेषज्ञों को भी इन्हें बारीकी से देखना पड़ता है।
चिंतन सुहागिया कहते हैं, "साधारण आंखों से देखने पर आप प्राकृतिक और लैब में बनाए गए हीरे के बीच फर्क नहीं कर सकते हैं।"
वो कहते हैं, "प्राकृतिक हीरे और लैब में बनाए गए हीरे इतने समान दिखते हैं कि एक बार लैब टेस्ट के बाद भी हमें हीरे की उत्पत्ति को लेकर भ्रम बना रहा। हीरा लैब में बनाया गया है यह सुनिश्चित करने के लिए हमें दो बार टेस्ट करना पड़ा।"
लैब में कैसे तैयार किए जाते हैं हीरे?
प्राकृतिक हीरे, जमीन के बहुत अंदर अत्यधिक गर्मी और दबाव में बनते हैं। 1950 के बाद से वैज्ञानिक उस प्रक्रिया को जमीन के बाहर फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं और ऐसा करने के लिए वैज्ञानिक दो तरह की तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
हाई प्रेशर हाई टेम्परेचर सिस्टम में हीरे के बीज के चारों तरफ शुद्ध ग्रेफाइट रखा जाता है और उसे करीब 1500 सेल्सियस तापमान के संपर्क में लाकर चेंबर में प्रति वर्ग इंच पर करीब 1।5 मिलियन पाउंड तक दबाव डाला जाता है।
दूसरी प्रक्रिया को केमिकल वेपर डिपोजिशन कहते हैं। इस प्रक्रिया में हीरे के बीच को कार्बन युक्त गैस से भरे सीलबंद चैंबर में रखा जाता है और उसे करीब 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। इस प्रक्रिया में गैस, हीरे के बीच से चिपक जाती है और परमाणु की मदद से हीरे का निर्माण करती है।
ये तकनीक 20वीं शताब्दी के अंत में सामने आईं, लेकिन पिछले दस सालों में ही ये प्रक्रियाएं उन्नत हो पाई हैं। इनकी मदद से लैब में सही कीमत पर अच्छी गुणवत्ता के हीरे बनाए जा सकते हैं और उन्हें आभूषणों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
बैन एंड कंपनी के नेचुरल रिसोर्सेज प्रैक्टिस के साथ ज्यूरिख स्थित पार्टनर ओला लिंडे कहती हैं, "शुरुआत में यह बहुत मुश्किल था क्योंकि मशीनें बहुत कम थीं और बहुत कम वैज्ञानिक इसे करने में सक्षम थे…पिछले सात सालों में जैसे-जैसे बाजार में इसके करने वालों की संख्या बढ़ी है इस काम में बड़ी तेजी देखी गई है।"
लिंडे कहती हैं कि 2000 के दशक की शुरुआत से लैब में तैयार होने वाले हीरों की लागत में हर चार साल में आधी हुई है।
क्या लैब में बना हीरा सस्ता है?
आमतौर पर सगाई और शादी की अंगूठियों में इस्तेमाल होने वाला ठीक-ठाक आकार का हीरा, लैब में बनाया जाए तो वह प्राकृतिक हीरे की तुलना में करीब 20 फीसदी पड़ेगा।
इस तरह से हीरे की कीमतों में गिरावट ने नए उद्यमियों को अपनी तरफ खींचने का काम किया है।
स्नेहल डूंगरनी, भंडारी लैब ग्रोन डायमंड्स की मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। उन्हें इसकी शुरुआत साल 2013 में की थी। ये कंपनी हीरे बनाने के लिए केमिकल वेपर डिपोजिशन तकनीक का इस्तेमाल करती है।
वे कहती हैं, "हम परमाणु दर परमाणु हीरे के बनने की निगरानी करने में सक्षम हैं। तुलनात्मक रूप से ऐसे हीरो में लागत और समय कम लगता है और इससे खनन की लागत भी बचती है और ये पर्यावरण के लिए भी अच्छे हैं।"
भारत ने लंबे समय से हीरा उद्योग में एक महत्वपूर्ण निभाई है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के दस में से नौ हीरे सूरत में पॉलिश किए जाते हैं।
अब सरकार चाहती है कि भारत लैब में हीरे बनाने के कारोबार में एक बड़ा और प्रमुख खिलाड़ी बने।
भारत में कितना बड़ा है बाजार
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार भारत, साल भर में करीब तीस लाख हीरे लैब में बनाता है, जो वैश्विक उत्पादन का 15 फीसदी है। इस मामले में चीन भी बड़ा उत्पादक देश है।
जनवरी महीने में इस सेक्टर को बढ़ावा देने की कोशिश में भारत सरकार ने हीरे के बीजों को आयात करने पर पांच फीसदी टैक्स कम कर दिया है। इसके साथ ही भारत में ही हीरे के बीज उत्पादन को विकसित करने के लिए मदद की घोषणा भी की है।
वाणिज्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव विपुल बंसल कहते हैं, ''जैसे-जैसे दुनिया में समृद्धि बढ़ेगी, हीरे की मांग बढ़ेगी।"
पारंपरिक हीरा उद्योग में 30 सालों से काम करने वाले हरि कृष्णा एक्सपोर्ट्स कट एंड पोलिश हीरों के मामले में भारत के प्रमुख उत्पादक हैं।
लेकिन इस साल निदेशक घनश्याम भाई ढोलकिया ने लैब में हीरे बनाने के कारोबार की शुरुआत की है। उन्होंने अनुमान जताया है, "अगले तीन से चार सालों में हम लैब में बने हीरों की भारी मांग और वृद्धि देखेंगे।"
भारत को तैयार होने में कितना समय लगेगा?
लेकिन क्या यह नया कारोबार बाजार में उनके पारंपरिक हीरे के कारोबार की हिस्सेदारी पर कब्जा कर पाएगा?
ढोलकिया कहते हैं, "प्राकृतिक और लैब में बने हीरे अलग-अलग उपभोक्ता वर्ग की जरूरतों को पूरा करते हैं और मांग दोनों क्षेत्रों में मौजूद है।"
वे कहते हैं, "लैब में हीरे बनाने की तकनीक ने एक नया उपभोक्ता वर्ग तैयार किया है। भारत में जिनके पास पैसे कम हैं, या मध्यम वर्ग के लोग लैब में बने हीरे खरीद पाएंगे।"
हालांकि भारत में अभी इस बाजार को उड़ान भरने में कुछ समय लग सकता है। भारत में लैब में बनने वाले ज्यादातर हीरे अमेरिका को बेचे जाते हैं।
लैब ग्रोन डायमंड एंड ज्वैलरी प्रमोशन के चेयरमैन शशिकांत डालीचंद शाह कहते हैं, "भारतीय बाजार अभी भी तैयार नहीं है। काउंसिल के तौर पर हम लैब में तैयार हीरों को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनियां और कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहे हैं। आने वाले तीन से चाल साल में भारत तैयार हो जाएगा।"
डालीचंद शाह, डायमंड ट्रेडिंग कंपनी नाइन डायम के अध्यक्ष हैं। इस कंपनी को उनके परदादा ने स्थापित किया था। वे इस बात से सहमत हैं कि लैब में बनाए गए हीरों का बाजार में खनन कर लाए गए प्राकृतिक हीरों से अलग स्थान होगा।
वो कहते हैं, "लैब में या कारखाने में बनाया गया हीरा कृत्रिम हीरा है। इसलिए हीरे को जानने और प्यार करने वाला खरीदार हमेशा असली हीरे को ही खरीदेगा।"
शाह कहते हैं कि प्राकृतिक हीरों की बाजार में कमी हमेशा उनकी मांग को बढ़ाए रखेगी। वे कहते हैं, "खरीदने के बाद लैब में तैयार किए गए हीरे अपना मूल्य खो देते हैं जबकि प्राकृतिक हीरों के मामलों में उनकी कीमत 50 फीसदी तक बनी रहती है।"
रोजगार पैदा करेगी इंडस्ट्री
हालांकि ऐसा हो सकता है कि लैब में तैयार किए गए हीरे ज्वैलरी डिजाइनरों के काम में ज्यादा मदद कर पाएं। लिंडे कहती हैं, "प्राकृतिक हीरे इतने महंगे होते हैं कि आप हमेशा इन्हें हासिल करना चाहते हैं। लेकिन लैब में तैयार हीरे को आप अपने तरह से डिजाइन में ढाल सकते हैं।"
"हमने ऐसे आभूषण देखे हैं जहाँ उन्होंने हीरों में छेद किए हैं ताकि वे ज्यादा चमक सकें।"
दुनिया का सबसे बड़ा जौहरी, डेनमार्क का पेंडोरा, लैब में तैयार किए गए हीरों की ओर रुख कर रहा है। कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने 2021 में इस कदम के बारे में बताते हुए कहा कि यह हीरे के बाजार को बड़ा करेगा और उनके व्यापार को पर्यावरण फ्रैंडली बनाएगा।
वहीं सूरत में चिंतन सुहागिया लैब में हीरे तैयार करने के अपने काम से खुश हैं और सोचते हैं कि कई और लोग इस सेक्टर में काम करने उतरेंगे। वो कहते हैं, "लैब में हीरे तैयार करने वाली इंडस्ट्री लाखों लोगों को रोजगार देने जा रही है। इस इंडस्ट्री को रोका नहीं जा सकता है।"