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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 18 अप्रैल 2023 (19:29 IST)

अतीक-अशरफ की मौत से किसे फायदा-नुकसान?

अतीक-अशरफ की मौत से किसे फायदा-नुकसान? - Who benefits or loses from the death of Atiq-Ashraf?
-समीरात्मज मिश्र
 
उत्तरप्रदेश में पुलिस कस्टडी में माफिया अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की लाइव हत्या ने राज्य की कानून-व्यवस्था की पोल खोल दी है। सवाल यह भी है कि यह घटना सिर्फ 'तंत्र की नाकामी' है या इसके तार कहीं और से भी जुड़े हैं? यूपी के प्रयागराज में मीडिया के सामने और पुलिस हिरासत में सजायाफ्ता अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की हुई हत्या ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके जवाब ढूंढना मुश्किल हो रहा है।
 
सरकार ने जांच के लिए 2 एसआईटी भी बनाई है और रविवार को जांच के लिए एक न्यायिक आयोग भी गठित किया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में यह आयोग 2 महीने के अंदर पूरे प्रकरण की जांच कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगा। राज्य के रिटायर्ड डीजीपी पुलिस महानिदेशक सुबेश कुमार सिंह और रिटायर्ड जज ब्रजेश कुमार सोनी इस आयोग के 2 और सदस्य होंगे।
 
पुलिस हिरासत में हत्या
 
शनिवार रात अतीक अहमद और अशरफ की अस्पताल ले जाते हुए उस वक्त 3 हमलावरों ने हत्या कर दी, जब वे करीब डेढ़ दर्जन पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में गाड़ी से उतरकर मीडिया से बात कर रहे थे। इससे 2 दिन पहले ही अतीक अहमद के एक बेटे और उमेश पाल हत्याकांड में अभियुक्त असद की झांसी के पास एक मुठभेड़ में मौत हो गई थी। उमेश पाल की प्रयागराज में ही 24 फरवरी को उनके 2 सुरक्षाकर्मियों के साथ हत्या की गई थी।
 
प्रयागराज में ताबड़तोड़ इन हत्याओं की वजह से राज्य की कानून-व्यवस्था पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं लेकिन असली सवाल अतीक-अशरफ की हत्या और उसकी टाइमिंग को लेकर है। इन लोगों ने पुलिस कस्टडी में अपनी हत्या की आशंका भी जताई थी और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि आप लोग यूपी पुलिस की सुरक्षा में हैं।
 
इन दोनों की हत्या करने वाले 3 युवक अलग-अलग जगहों के हैं और पुलिस की मानें तो अभी तक कुछेक छोटे-मोटे अपराधों में ही शामिल रहे हैं। ऐसे कई कारण हैं जिसकी वजह से इसे सिर्फ पुलिस और प्रशासन की अक्षमता ही नहीं बल्कि ऐसे कारण भी ढूंढे जा रहे हैं कि अतीक अहमद की हत्या से किसे फायदा या नुकसान हो सकता है?
 
दरअसल, ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि इस बीच अतीक अहमद को साबरमती जेल से 3 बार पेशी पर प्रयागराज लाया गया और ऐसा बताया जा रहा है कि अतीक अहमद सरेंडर के मूड में था। पेशी पर लाए जाते समय अतीक अहमद ने एक बार मीडिया से कहा भी था कि मैं आप लोगों के माध्यम से सरकार से कहना चाहता हूं कि हम मिट्टी में मिल चुके हैं, हमारे बीबी-बच्चों को परेशान न किया जाए।
 
अतीक अहमद से रिश्तों का डर
 
उसके बाद से अतीक अहमद की निशानदेही पर पुलिस ने कुछ जगहों पर छापेमारी भी की थी, जहां से उसे कुछ अवैध असलहे भी मिले थे। ईडी ने भी इन लोगों से पूछताछ की थी और प्रयागराज में कई जगहों पर छापेमारी भी हुई थी। यह बात भी सामने आई है कि अतीक अहमद ने अपने साथ अपराध, राजनीति और व्यवसाय में शामिल जिन कुछ लोगों के नाम बताए थे, उससे तमाम लोगों में बेचैनी थी। हालांकि किन लोगों के नाम बताए थे, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता है।
 
अतीक अहमद करीब 4 दशक से अपराध की दुनिया में शामिल रहे और करीब 3 दशक से राजनीति में भी सक्रिय थे। राजनीति में आने के बाद अहमद के आपराधिक रिकॉर्ड भी बढ़े लेकिन यह उनका राजनीतिक कद भी बढ़ाता गया। इस दौरान वो कोई राजनीतिक पार्टियों में रहे और सभी राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेताओं से उनके संबंध रहे।
 
इलाहाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रह चुके यूपी के रिटायर्ड डीजीपी डॉक्टर विभूति नारायण राय कहते हैं, माफिया को राजनीतिक संरक्षण मिलते ही उसकी महत्वाकांक्षाओं और उपलब्धियों को पर लग जाते हैं। वह किसी को भी खरीद सकता है या किसी भी प्रतिरोध को बलपूर्वक रौंदता हुआ आगे बढ़ सकता है। अतीक ने भी यही किया था। जेलों में रहकर भी उसका और उसके भाई का दबदबा बरकरार रहा बल्कि जेल के अंदर से उसने और प्रभावी ढंग से अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
 
नेता और कारोबारियों से संबंध
 
प्रयागराज के एक बड़े व्यवसायी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि शहर का ऐसा शायद ही कोई बड़ा व्यवसायी या बड़ा बिल्डर होगा जिसके कारोबार में अतीक अहमद का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ न रहा हो। यही नहीं, 5 बार विधायक और 1 बार सांसद रह चुके अतीक अहमद का संबंध अपने आखिरी समय में भले ही बहुजन समाज पार्टी से रहा हो लेकिन निजी संबंध उनके सभी पार्टियों के नेताओं से थे, बीजेपी के नेताओं से भी।
 
अतीक अहमद के मोहल्ले के पास ही रहने वाले दिलशाद अहमद कहते हैं कि राजनीतिक विरोध जरूर था लेकिन राजनीतिक दुश्मनी जैसी तो कोई बात थी नहीं। राजू पाल ने बहुत पहले चुनौती दिया था और चुनाव में हराया था तो उसकी हत्या हो गई। हालांकि तभी से इनकी राजनीति कमजोर भी पड़ने लगी। पर जिस तरह से हत्या हुई है, उससे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि इन हमलावरों के पीछे असली हाथ किसका है?
 
बताया जा रहा है कि अतीक अहमद से एसटीएफ और नेशनल इंवेस्टिगेटिव एजेंसी यानी एनआईए ने भी पूछताछ की थी और उसके आईएसआई जैसे संगठनों से संबंधों की जांच की दिशा में पूछताछ कर रही थी। स्थानीय लोगों की मानें तो इस नेटवर्क में कथित तौर पर बड़े लोगों के नाम भी शामिल हो सकते हैं और हो सकता है कि अतीक अहमद ने पूछताछ में ऐसे कुछ नाम लिए भी हों।
 
हत्या के पीछे राजनीति या माफिया?
 
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद कहते हैं कि 2 ही एंगल दिख रहे हैं। एक तो राजनीतिक और दूसरा माफिया का। बिल्डर-व्यवसायी चाहे कितने भी उनके साथ काम कर रहे हों, इस तरह की हत्या में वे लोग शामिल होंगे, ऐसा लगता नहीं है। राजनीतिक लाभ और हानि से जुड़ा मसला जरूर हो सकता है, जो जांच में ही सामने आएगा। एक बात और, यूपी में राज्य सरकार माफिया के सफाए में लगी है, यह सबको पता है। और माफिया में भी खासकर मुस्लिम माफिया।
 
परवेज अहमद का यह भी कहना है कि यूपी के कुछ दूसरे माफिया भी इस सफाई अभियान में लगे हैं ताकि इस क्षेत्र में उनका वर्चस्व कायम हो सके। ऐसे माफिया को सुरक्षा एजेंसियों का भी साथ मिल रहा है। पुलिस की तो बहुत पुरानी यह शैली रही है कि जो भी उसकी मदद करता रहा है, वह उसके सब गुनाह माफ करती है। ऐसे में इन माफिया को पुलिस का भी संरक्षण और सहयोग मिल रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं।
 
इस हत्याकांड के 3 दिन बीतने के बाद भी स्थानीय लोगों में खौफ है। जिस इलाके में यह हत्या हुई है, चूंकि उसी इलाके में अतीक अहमद का घर भी है और यह उनका चुनावी क्षेत्र भी था, इसलिए कुछ लोगों में इसे लेकर गुस्सा भी है। हालांकि स्थानीय लोग और उस इलाके के बाहर के लोग भी आधिकारिक रूप से इस मुद्दे पर कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं। लेकिन बिना नाम बताए या फिर बिना कैमरे के सामने आए लोग काफी कुछ बताते हैं।
 
पुलिस की नाकामी या संलिप्तता?
 
प्रयागराज के ही रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि सिर्फ माफिया या नेता ही नहीं बल्कि अतीक के बेटे असद की मौत के बाद पुलिस वालों को भी खौफ था कि अतीक का रहना उनके लिए भी खतरनाक हो सकता है। वो कहते हैं कि असद के एनकाउंटर के बाद पेशी के दौरान अतीक ने अपने कुछ लोगों के सामने यह बात कही थी कि उन्हें पता है कि असद को मारने वालों के पीछे कौन हैं? शायद 'देख लेने' की धमकी भी दी थी। ऐसे में जो पुलिस वाले भी शामिल रहे होंगे तो उन्हें अतीक अहमद के बचे रहने का खौफ जरूर रहा होगा।
 
इस हत्याकांड में शामिल तीनों शूटरों का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं है, तीनों की हैसियत भी ऐसी नहीं है कि वो इतने महंगे और प्रतिबंधित विदेशी हथियार खरीद सकें और तीनों ही कड़ी सुरक्षा में जा रहे अतीक-अशरफ के इतने करीब पहुंच जाएं। ऐसे में सिर्फ पुलिस की निष्क्रियता और अक्षमता पर सवाल ही नहीं उठ रहे हैं बल्कि संलिप्तता की आशंकाओं को भी बल मिल रहा है।
 
बड़ा सवाल यह भी है कि क्या 17 पुलिसकर्मियों को यह निर्देश देना संभव है कि वो इस तरह के हमले की स्थिति में भी कुछ नहीं करेंगे? गौरतलब है कि करीब 2 दर्जन से ज्यादा राउंड फायरिंग के बावजूद वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने एक भी गोली नहीं चलाई और हमलावरों को बहुत आसानी से सरेंडर करने का मौका दिया।
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