गुरुवार, 28 मार्च 2024
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सन् 1784 में सराफा में डाकुओं ने डाका डाला था

सन् 1784 में सराफा में डाकुओं ने डाका डाला था - In the year 1784, dacoits had robbed the bullion.
राजबाड़ा अपने निर्माण के बाद से ही इंदौर का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। राजबाड़े के समीप ही व्यापारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से अपने व्यापारिक संस्थान कायम किए। बर्तन बाजार, मारोठिया, सराफा व कपड़ा मार्केट की स्थापना व उत्तरोत्तर उनका विकसित होना इसी सुरक्षा की भावना के प्रतीक हैं।
 
राजबाड़े के इतने समीप होते हुए भी सराफा बाजार सुरक्षित न रह सका। गर्मियों के दिन थे। घटना 12 जून 1784 की है, जब सायंकाल ही सराफा के सेठ अनूपचंद के पुत्र की फर्म तिलोकसी पद्मसी पर स्थानीय सशस्त्र डकैतों ने धावा बोला। इस दल में 25 लोग शामिल थे। दुकान में घुसकर इन डकैतों ने सेठ के 20 वर्षीय दामाद, गुमास्ता व नौकर की हत्या कर दी। सारे सराफा बाजार में भगदड़ मच गई।

भयभीत व्यापारियों ने दुकानें बंद कर लीं। भगदड़ में डाकू 2,000 हजार रुपए का माल लूटकर भागने लगे। मार्ग में उन्हें जो भी दिखाई पड़ा, उस पर उन्होंने प्रहार किया। इस प्रकार की मारकाट से 9 लोग मारे गए। इस डकैती का समाचार सुनते ही तुरंत घुड़सवार सैनिकों को भेजा गया किंतु अंधेरी रात के कारण डाकू भागने में सफल हो गए।
डकैती के ऐसे प्रकरणों के अतिरिक्त आए दिन नगर में चोरियां भी होती थीं। चोरी करने वालों में केवल पुरुष ही नहीं, अपितु कुछ विशेष जानियों की महिलाएं भी सम्मिलित थीं। चोर के पकड़े जाने पर नगर कोतवाल द्वारा उन्हें कठोर सजाएं दी जाती थीं जिसमें अंग-भंग की सजा भी थीं।

ऐसी ही एक चोरी की घटना मार्च 1791 को छतरीपुरा क्षेत्र में घटित हुई जिसका विवरण इंदौर के कमाविसदार ने अहिल्याबाई को महेश्वर लिख भेजा था- ' छतरीपुरा के किसी व्यापारी ने कपड़ा व कुछ सामान खरीदकर बाजार में रखा था। शिकारी जाति की एक महिला रात में आई और उसने कुछ कपड़ा व अन्य वस्तुएं चुरा लीं। चौकीदार ने उसे रंगेहाथों पकड़ लिया। उसकी खूब पिटाई की गई। उससे प्राप्त चोरी का माल संबंधित लोगों को लौटा दिया है। वह उसका निवास स्थान नहीं बतला रही है। इसलिए सोचा है कि उसके नाक-कान काट लिए जाएं तथा गधे पर बैठाकर उसका जुलूस नगर में निकालें। यह आपकी स्वीकृति हेतु प्रेषित कर रहे हैं। आपकी आज्ञा का पालन किया जाएगा।
 
अहिल्याबाई जो अत्यंत संवेदनशील महिला थीं, इस सजा के लिए राजी न हुईं। उन्होंने उस युग में महिला को सजा देने की अपेक्षा, अपराध के कारणों को जानने व महिला के सुधार की दिशा में सोचा, जो आज के संदर्भों में बड़ी बात थी।