मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. अपना इंदौर
  3. रोचक तथ्य
  4. When Scindia's army looted Indore

जब सिंधिया की फौज ने इंदौर को लूटा

जब सिंधिया की फौज ने इंदौर को लूटा - When Scindia's army looted Indore
जुलाई 1801 में यशवंतराव होलकर ने उज्जैन पर आक्रमण कर सिंधिया फौज को पराजित कर नगर को लूटा था जिसका बदला लेने के लिए अक्टूबर 1801 में सिंधिया सेनापति सर्जेराव घाटगे अपने साथ 12 सैनिक दस्ते व 20,000 घुड़सवारों की फौज लेकर इंदौर पर आक्रमण के लिए चल पड़ा।
 
जब इस सैनिक अभियान का समाचार इंदौर पहुंचा तो यशवंतराव ने भी मोर्चा लेने की तैयारी की। वह अपने 10 सैनिक दस्तों, 5,000 रोहिला सैनिकों, 27,000 मराठा घुड़सवारों तथा 98 तोपों के साथ इंदौर की रक्षा के लिए तैयार हुआ।
 
दोनों सेनाएं इंदौर नगर के दक्षिण में बिजलपुर के पास (तेजपुर गड़बड़ी में) आमने-सामने आ डटीं। 8 दिनों तक दोनों ओर से छुटपुट मुठभेड़ें तथा रुक-रुककर गोलाबारी होती रही। अंतत: यशवंतराव ने 29 अक्टूबर 1901 की रात्रि के तीसरे प्रहर सिंधिया की सेना को चारों ओर से घेरकर आक्रमण की योजना बनाई।

यह उसका दुर्भाग्य था कि इस अभियान के पूर्व ही उसके तोपखाने में जितने भी योरपीय कर्मचारी थे, वे बिना किसी कारण के युद्ध के मैदान से भाग गए। इस घटना से यशवंतराव विचलित न हुआ। अमीर खां और भवानीशंकर बक्षी को 10-12 हजार सैनिकों के साथ उसी रात सिंधिया शिविर को घेर लेने के लिए रवाना किया गया तथा साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि रात्रि के तीसरे प्रहर होलकर के मुख्य शिविर से एक तोप दागी जाएगी, जो सिंधिया फौज पर सामूहिक आक्रमण का संकेत होगी।
 
अमीर खां व बक्षी भवानीशंकर अपने-अपने गंतव्य के लिए रवाना हुए ही थे कि उसी बीच यशवंतराव के सैनिकों व सिंधिया के पिंडारी सैनिकों के मध्य एक मुठभेड़ हो गई। इसमें पिंडारी पराजित होकर भाग गए। उनकी सहायता के लिए आए मराठा सैनिकों ने भी उसका अनुसरण किया। बहुत-सी युद्ध सामग्री होलकर सेना के साथ लगी।

यशवंतराव ने युद्ध को सीमित रखने के उद्देश्य से उनका पीछा नहीं किया और घेराबंदी तथा पूर्व निर्धारित युद्ध के संकेत की प्रतीक्षा में रुक गया। इसी बीच सिंधिया की सेना ने संगठित होकर होलकर सेना पर आक्रमण कर दिया। अमीर खां और बक्षी भवानीशंकर जब तक अपने पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंचते तब तक यशवंतराव की सेना को अवांछित युद्ध में कूदना पड़ा। होलकर की योजना विफल हो गई और होलकर सैनिक रात्रि के तीसरे प्रहर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे थे, उन्हें तत्काल युद्ध में कूदना पड़ा।
 
सारी रात मार-काट और गोलाबारी होती रही। 30 अक्टूबर का सूर्य पूर्व में उदित होने की तैयारी में ज्यों-ज्यों प्रकाश फैलाता जा रहा था, त्यों-त्यों विनाश व जनहानि का दृश्य साफ होता जा रहा था। उजाला होते ही दोनों पक्षों की ओर से भीषण गोलाबारी की गई। दोपहर होने तक सिंधिया की सेना में निराशा के लक्षण परिलक्षित होने लगे किंतु सिंधिया की सेना ने संगठित होकर अपनी पूरी शक्ति के साथ सायंकाल होलकर सेना पर हमला किया।

उसी बीच अमीर खां का घोड़ा 'बरछी बहादुर' घायल होकर गिर पड़ा। सैनकों में यह संदेह व्याप्त हो गया कि अमीर खां मारा गया। इस अफवाह से संध्या 6 बजे के लगभग होलकर सेना में भगदड़ मच गई। विजय की कोई आशा न देख, यशवंतराव ने अपने कुछ साथियों के साथ विंध्य पहाड़ियों में स्थित जामघाट में जाकर शरण ली और इंदौर नगर को सिंधिया के सेना की दया पर छोड़ दिया गया।
विजेता सिंधिया सेना ने सर्जेराव घाडगे के निर्देश पर इंदौर नगर में प्रवेश किया। उन्होंने राजमहल सहित नगर के सभी महत्वपूर्ण भवनों को धराशायी कर दिया। बाजार लूट लिए गए। सारे नगर में चारों ओर लूटमार की गई और नागरिकों पर अमानवीय अत्याचार किए गए। इंदौर शहर के कुएं और बावड़ियां मृत शरीरों से भर गए थे जिन्होंने अपनी लाज बचाने के लिए आत्महत्याएं कर ली थीं।
 
उस समय नगर की आबादी 15-20 हजार रही होगी जिसमें से 5 हजार व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया गया। शेष बचे लोग अपना घरद्वार व संपत्ति छोड़कर भाग गए थे।
 
इस प्रकार होलकर राजधानी बनने के पूर्व (1818 में इंदौर राजधानी बना) ही इंदौर को अपने विकास के प्रारंभिक चरण में इतनी बड़ी आहुति देनी पड़ी थी।