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Written By WD

पटेल और शास्त्री जी के प्रेरक प्रसंग

पटेल शास्त्री जी प्रेरक प्रसंग
सरदार की कर्तव्य के प्रति ईमानदारी
पवन कुमार पाटीदार

सरदापटेवास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार थे। उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से लगता है। वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया। बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हुआ है। तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था। ऐसी थी उनकी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसा कलेजा।

शास्त्री जी की सादगी
सौ. भारती मंडलोई

एक बार हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को विदेश यात्रा पर जाना था। उनके पत्नी व पुत्र ने सोचा कि शास्त्री जी के लिए नया कोट बनवा दिया जाए क्योंकि उनका कोट काफी पुराना हो चुका था।

बाजार से एक बढ़िया धारी वाला काले कोट का कपड़ा मँगवाया गया और दर्जी को बुलाकर शास्त्रीजी के सामने खड़ा कर‍ दिया। दर्जी ने शास्त्री जी का नाप लेकर अपनी डायरी में नोट कर लिया और कोट के कपड़े का लिफाफा लेकर जाने लगा तो शास्त्री जी ने उससे धीरे से कुछ कहा। कुछ दिनों पश्चात जब टेलर कोट का लिफाफा लेकर आया तो उसमें से कोट निकाला गया। पर यह क्या? उसमें तो वही पुराना कोट निकला जो शास्त्रीजी पहनते थे। उनकी पत्नी व पुत्र यह देखकर दंग रह गए पर वह दर्जी से क्या पूछते?

दर्जी के जाने के बाद उनके पुत्र ने पूछा - 'बाबूजी यह क्या माजरा है? तो वह मुस्कुराते हुए बोले कि अभी तो मेरा पुराना कोट ही पहनने लायक है। इसलिए वह कपड़मैंने वापस करवा कर उन पैसों को जरूरतमंद विद्यार्थियों में बँटवा दिया है। सादा जीवन के साथ ऐसे उच्च विचाथे हमारे शास्त्री जी के