घबराइए मत, आप इंदौर में हैं! या शायद घबराना ही चाहिए, क्योंकि देश के सबसे साफ शहर की सूरत अब धूल, गड्ढों और ट्रैफिक जाम से बुरी तरह बिगड़ चुकी है। लखनऊ की तहजीब-तमीज वाली सड़कों पर लगे बोर्ड "मुस्कराइए, आप लखनऊ में हैं" की तरह, अगर इंदौर में भी बोर्ड लगें तो लिखा होना चाहिए – "सावधान, धूल-स्नान की तैयारी कर लीजिए!"
हाल ही में लखनऊ से एक बड़े साहब रोड से आए। देवास से इंदौर तक की यात्रा ने उनकी हालत खराब कर दी। जैसे ही पहुंचे, बोले, "साहब, ये धूल-धक्कड़ और इतने गड्ढे? कोई खैरख्वाह नहीं है क्या आपके शहर का?" सात सालों की स्वच्छता का गुरूर एक झटके में धूल में उड़ गया। मेहमान को पोहा-जलेबी खिलाकर मनाने की कोशिश की, लेकिन बीआरटीएस के जाल में उलझ गए। साहब का मूड और खराब!
जैसे-तैसे छप्पन दुकान पर खिलापिला कर मामला शांत किया, लेकिन रात में सराफा का वादा करने पर साहब ने नाक सिकोड़ी। "वही जगह जहां चाट-चौपाटी और सराफा वालों का झगड़ा चल रहा है? अब तो इंदौरी खान-पान की जगह हिप-हॉप फूड आइटम्स मिलते हैं। होटल में ही कुछ मंगा लें!" सराफा, जो कभी इंदौर की शान था, अब विवादों और बदलावों का शिकार। पारंपरिक स्वाद गायब, नई चीजें आ रही हैं – लेकिन शहर की असली पहचान कहीं खो सी गई लगती है।
यह सिर्फ एक मेहमान की शिकायत नहीं, बल्कि हर उस इंदौरी की रोजमर्रा की हकीकत है जो इस जंग से जूझता है। स्वच्छता के अवॉर्ड तो जीत लें, लेकिन ट्रैफिक व्यवस्था की ऐसी दुर्दशा क्यों? शहर में अब 33 ब्लैक स्पॉट चिन्हित हो चुके हैं, जहां गड्ढे, धूल और खराब सड़कों के कारण सबसे अधिक हादसे होते हैं – बायपास रोड भी इनमें शुमार। बीआरटीएस का चक्रव्यूह तो जैसे शहर का सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है। फरवरी 2025 में सीएम मोहन यादव ने घोषणा की कि बीआरटीएस कॉरिडोर हटाया जाएगा, और प्रक्रिया शुरू हो गई। हाईकोर्ट के आदेश पर यह कदम उठा, क्योंकि लोग उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रैफिक सुधरेगा। लेकिन तब तक कितने जाम झेलने पड़ेंगे?
शहर की सड़कों पर शायद होलकर राजवंश का खजाना गड़ा हैं – जब जिसका मन करे, विकास के नाम पर खुदाई शुरू हो जाती है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत सरकारी विभाग इतने "स्मार्ट" हैं कि हमारी समझ से कहीं आगे निकल चुके हैं। बिना प्लानिंग के सड़कें खोदी जाती हैं, और महीनों तक वैसी ही पड़ी रहती हैं।
जून 2025 में इंदौर-देवास रोड पर 32 घंटे का ट्रैफिक जाम लगा, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई। लोग घंटों फंसे रहे, और सेवा मार्गों पर गड्ढे-कीचड़ ने हालात और बिगाड़ दिए। जुलाई में हाईकोर्ट ने NHAI को फटकार लगाई – घंटों के जाम पर सवाल उठे, और कोर्ट भड़क गया। ई-रिक्शा, अवैध पार्किंग और बायपास के गड्ढे – ये सब मिलकर शहर को जाम का अड्डा बना चुके हैं। यह सब देखकर लगता है कि इंदौर का विकास सिर्फ कागजों पर सिमट गया है। जनप्रतिनिधि अक्सर इवेंट में सम्मान लेते-देते दिखते हैं, हां सोशल मीडिया पर त्यौहार मनाते, स्वैग दिखाते – इनकी खुशहाल और चैन-ओ-सुकून से भरी जिंदगी की ढेरों तस्वीरें देख जनता भी "मैं भी नेता बनूंगा" के मुगालते पाल लेती है। जनसेवक अफसरों के सामंती तौर-तरीकों और सरकारी विभागों की "स्मार्टनेस" आम आदमी की जिंदगी को त्रासदी बना रही है।
जुलाई 2025 में हाईकोर्ट ने ट्रैफिक जाम पर सुनवाई की, जहां अवैध पार्किंग और गड्ढों की पोल खुली। लेकिन घोषणाओं से आगे क्या? शहरवासी त्रस्त हैं– धूल से सांसें फूल रही हैं, गड्ढों से वाहन खराब हो रहे हैं, जाम से समय बर्बाद। पिछले तीन महीनों में गड्ढों के कारण लगभग 50 दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें राऊ सर्कल और क्षिप्रा के बीच एक ट्रक पलट गया, चालक और हेल्पर घायल हो गए। एमवाई अस्पताल में हर रोज 4-5 नए मरीज आ रहे हैं, जिनकी पीठ और गर्दन की चोटें गड्ढों के झटकों से हुई हैं – पिछले दो महीनों में 40% की बढ़ोतरी।
स्वच्छता का तमगा तो चमक रहा है, लेकिन सड़कों की हकीकत कड़वी सच्चाई बयान कर रही है। अब वक्त है जागने का। हमें चाहिए एक ऐसा सिस्टम जहां विकास जनता की सुविधा के लिए हो, न कि अफसरों की जेब भरने के लिए। बीआरटीएस हटे, सड़कें मरम्मत हों, ट्रैफिक प्लानिंग हो। इंदौर फिर से वो शहर बने जहां मेहमान मुस्कराएं, न कि घबराएं। क्योंकि यह शहर हमारा है – धूल-गड्ढों से ऊपर उठकर, हम इसे चमका सकते हैं। जागो इंदौर, अपनी किस्मत खुद लिखो!