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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शनिवार, 21 जून 2025 (14:47 IST)

भारत के हाथों से क्यों निकल गया था PoK? नेहरू और पटेल के बीच क्या थी कश्मीर की टसल

pok kya hai
Who Was Responsible for Losing Pakistan Occupied Kashmir: कश्मीर, भारत का मुकुटमणि कश्मीर, हमेशा से एक संवेदनशील विषय रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के हाथों से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) क्यों निकल गया था? और कश्मीर के मसले पर भारत के दो महान नेताओं, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच क्या टसल थी? आइए, इस ऐतिहासिक घटना को सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं।

कश्मीर का भारत में विलय
जब भारत 1947 में आज़ाद हुआ, तो रियासतों के पास भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में विलय का विकल्प था। जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक, महाराजा हरि सिंह, एक स्वतंत्र राज्य बनाए रखना चाहते थे। लेकिन 22 अक्टूबर 1947 को, पाकिस्तान समर्थित कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और भारत में विलय के 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' पर हस्ताक्षर किए। इसी के बाद भारतीय सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया और कबाइलियों को खदेड़ना शुरू किया।

नेहरू और पटेल: कश्मीर पर रीति-नीति में फर्क
कश्मीर के इस नाजुक मोड़ पर, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच कश्मीर के मसले पर रीति-नीति में स्पष्ट मतभेद थे। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि नेहरू ने कश्मीर के विषय में पटेल के दखल को ज़्यादा पसंद नहीं किया।
नेहरू की नीति: नेहरू का मानना था कि कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया है और इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाना चाहिए। उनका दृष्टिकोण अधिक आदर्शवादी था और वे वैश्विक मंच पर भारत की छवि को लेकर चिंतित थे। उनकी प्राथमिकता युद्धविराम और फिर जनमत संग्रह की थी।
पटेल की नीति: पटेल एक यथार्थवादी नेता थे। वे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते थे और उनका ध्यान पूरी तरह से रियासतों के एकीकरण पर था। उन्होंने अन्य रियासतों के विलय में निर्णायक भूमिका निभाई थी और उनका मानना था कि सैन्य कार्रवाई के माध्यम से पूरे कश्मीर को भारत में शामिल किया जा सकता है। पटेल युद्धविराम से पहले यथासंभव अधिक क्षेत्र को मुक्त कराने के पक्षधर थे।


मतभेद और इस्तीफे की पेशकश
इन मतभेदों के कारण कई बार तनाव की स्थिति बनी। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि नेहरू ने कश्मीर के मामले में पटेल के सुझावों को दरकिनार किया, जिससे पटेल इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश भी कर दी थी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह पेशकश आधिकारिक तौर पर स्वीकार की गई थी या नहीं।

PoK का निकलना: एक चूक या परिस्थितियों का परिणाम?
जब भारतीय सेना कश्मीर में आगे बढ़ रही थी और पाकिस्तानी कबाइलियों को पीछे धकेल रही थी, तब नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में सीजफायर की अपील कर दी। यहीं पर कई इतिहासकार मानते हैं कि भारत के हाथों से PoK निकल गया। अगर भारतीय सेना को कुछ और समय दिया जाता, तो शायद आज पूरा कश्मीर भारत का होता। पटेल चाहते थे कि सेना अपना काम पूरा करे, लेकिन नेहरू का संयुक्त राष्ट्र जाने का फैसला इस प्रक्रिया को रोक गया।
असलियत में इस सवाल पर नेहरू-पटेल के मतभेद ऐतिहासिक सच्चाई हैं। यह भी सच है कि नेहरू ने कश्मीर के विषय पटेल के दखल को पसंद नहीं किया। इस मुकाम पर पटेल ने अपने इस्तीफे की पेशकश भी कर दी थी। यह कहानी सिर्फ दो नेताओं के बीच के मतभेदों की नहीं, बल्कि उस समय की जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों और अलग-अलग विचारधाराओं के टकराव की भी है, जिसके परिणाम आज भी भारत महसूस करता है। कश्मीर का मसला आज भी भारत के लिए एक चुनौती है और PoK का अस्तित्व उस ऐतिहासिक फैसले की एक कड़वी याद दिलाता है।