Pakistan Occupied Jammu and Kashmir:भारत सरकार ने जिस तर धारा 370 को हटाकर जम्मू कश्मीर और लद्दाख नामक दो स्वतंत्र राज्य बनाए उसी तरह अब अगले कदम में पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर सहित लद्दाख के अन्य हिस्से को भारत में मिलाने पर काम शुरू हो चला है। इसके लिए अब पाकिस्तान की आवाम भी मान चुकी है कि भारत कभी भी पीओके पर अपना अधिकार प्राप्त कर लेगा। पीओके के लोग भी अब यही मांग कर रहे हैं।
पीओके का क्षेत्रफल : पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का कुल क्षेत्रफल करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर (भारतीय कश्मीर से 3 गुना बड़ा इसमें गिलगित और बाल्टिस्तान भी शामिल है।) है। पीओके की सीमा पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनवाला से, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखन कॉरिडोर, उत्तर में चीन के जिंगजियांग ऑटोनॉमस रीजन और पूर्व में जम्मू-कश्मीर और चीन से मिलती है। पीओके को प्रशासनिक तौर पर 2 हिस्सों- आजाद कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में बांटा गया है।
पीओके की आबादी : यहां करीब 30 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। पीओके को लेकर पाकिस्तान की दोहरी नीति है। एक तरफ तो वह इसे आजाद कश्मीर कहता है तो दूसरी ओर यहां के प्रशासन और राजनीति में सीधा दखल कर यहां के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने में लगा है। यहां पर बाहरी लोगों को बसा दिया गया है। पीओके का शासन मूलत: इस्लामाबाद से सीधे तौर पर संचालित होता है। आजाद कश्मीर के नाम पर एक प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया है, जो इस्लामाबाद का हुक्म मानता है।
क्या है पीओके : 49 सीटों वाली पीओके विधानसभा के लिए पाकिस्तान द्वारा 1974 से ही पीओके में चुनाव कराए जा रहे हैं और वहां एक प्रधानमंत्री भी है। लेकिन पीओके या पाकिस्तान के बाहर इस दावे को मान्यता नहीं मिली है। पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद है। पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर के तौर पर विश्व मंच पर पेश करता है, जबकि भारत इसे गुलाम कश्मीर कहता है। भारत सरकार ने पाक अधिकृत कश्मीर का नाम बदलकर पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर कर दिया है। भारत ने जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा में पीओके के लिए 24 सीटें और संसद में 7 सीटें रिजर्व रखी हैं।
गिलगिट व बाल्टिस्तान : गिलगिट व बाल्टिस्तान को पहले पाकिस्तान में नॉर्दर्न एरिया कहा जाता था और इसका प्रशासन संघीय सरकार के तहत एक मंत्रालय चलाता था। लेकिन 2009 में पाकिस्तान की संघीय सरकार ने यहां एक स्वायत्त प्रांतीय व्यवस्था कायम कर दी जिसके तहत मुख्यमंत्री सरकार चलाता है। अब इलाके की अपनी असेंबली है जिसमें कुल निर्वाचित 24 सदस्य होते हैं। इस असेंबली के पास बहुत ही सीमित अधिकार हैं या कहें कि न के बराबर हैं। यहां पर शियाओं को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं है। अलग-अलग समय में वे भारतीय कश्मीर में आकर बस गए हैं और अभी भी उनका आना जारी है।
अक्साई चिन : फिर 1962 में भारत का जब चाइना से युद्ध हुआ तो चाइना ने लद्दाख के कुछ हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया जिसे आज अक्साई चिन कहते हैं। हालांकि कुछ इसे गिलगित-बाल्टिस्तान का ही हिस्सा मानते हैं। फिर मार्च 1963 में पाकिस्तान ने पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान वाले हिस्से में से एक इलाका चाइना को गिफ्ट कर दिया। ये करीब 1,900 वर्ग मील से कुछ ज्यादा था।
पीओके के 2 टुकड़े कर दिए : चाइना को गिफ्ट देने के बाद पाकिस्तान ने 2009 में बचे हुए पीओके के 2 टुकड़े कर दिए। एक का नाम गिलगित-बाल्टिस्तान रहा, तो दूसरे का नाम 'आजाद कश्मीर'। यह 'आजाद कश्मीर' दरअसल जम्मू का ही एक हिस्सा है। गिफ्टेड चाइना, अक्साई चिन, गिलगित-बाल्टिस्तान और भारत प्रशासित कश्मीर के बीच एक हिस्सा है, जिसे सियाचिन ग्लेशियर कहते हैं, उस पर भारत का ही अधिकार है। वह भी कश्मीर का ही एक हिस्सा है।
मतलब यह कि पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान 2 क्षेत्र हो गए। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के पास अनुमानित 5,134 वर्ग मील यानी करीब 13 हजार 296 वर्ग किलोमीटर इलाका है। मुजफ्फराबाद इसकी राजधानी है और इसमें 10 जिले हैं, वहीं गिलगित बाल्टिस्तान में 28 हजार 174 वर्ग मील यानी करीब 72 हजार 970 वर्ग किलोमीटर इलाका है। गिलगित-बाल्टिस्तान में भी 10 जिले हैं। इसकी राजधानी गिलगित है। इन दोनों इलाकों की कुल आबादी 60 लाख के करीब बताई जाती है। मतलब यह कि गिलगित-बाल्टिस्तान पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर का 85 प्रतिशत इलाका है।
- पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अक्साई चिन शामिल नहीं है। यह इलाका महाराजा हरिसिंह के समय में कश्मीर का हिस्सा था। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद कश्मीर के उत्तर-पूर्व में चीन से सटे इलाके अक्साई चिन पर चीन का कब्जा है। पाकिस्तान ने चीन के इस कब्जे को मान्यता दी है। जम्मू-कश्मीर और अक्साई चिन को अलग करने वाली रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है।
पाकिस्तान ने कर रखा है अवैध कब्जा
-यूएन 2 रेगुलेशन 1948 और 1949 के अनुसार इस एरिये पर किसी का अधिकार तब तक साबित नहीं होता, जब तक कि वहां पर से पाकिस्तानी सेना हटती नहीं है और वहां पर जनमत संग्रह नहीं होता है। हालांकि अब वहां जनमत संग्रह का कोई मतलब नहीं, क्योंकि 1947 के बाद से पाकिस्तान ने वहां की डेमोग्राफी बदल दी है। दूसरा 1972 के शिमला का भी पाकिस्तान ने यहां उल्लंघन करके उसे पाकिस्तान का एक अलग प्रांत बनाने का कार्य किया।
-अप्रैल 1949 तक गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का हिस्सा माना जाता रहा है, लेकिन 28 अप्रैल 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ जिसके तहत गिलगित के मामलों को सीधे पाकिस्तान की संघीय सरकार के मातहत कर दिया गया। इस बाबत ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन की ओर से ब्रिटिश संसद में पेश प्रस्ताव में कहा गया कि पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान पर अवैध कब्जा कर रखा है। यह क्षेत्र उसका है ही नहीं। इससे पहले भारत भी कह चुका है कि पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा अवैध है और उसे खाली करना ही होगा।
गिलगित-बाल्टिस्तान की बदली डेमोग्राफी
-पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान से कश्मीरियों को लगभग बाहर खदेड़ दिया है। गिलगित बाल्टिस्तान में 1947-48 में बहुसंख्यक आबादी कश्मीरी शिया थी। लेकिन धीरे-धीरे वहां पर उन्हें अल्पसंख्यक कर दिया गया। खासकर सूफी और शियाओं के लिए यह जगह अब नर्क बन गई है। ऐसा करके पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को हल करने के सारे रास्ते खुद ही बंद कर लिए हैं।
साथ ही उसने जो कश्मीरियों को 'आजाद कश्मीर' का सपना दिखाया था, वह भी अब झूठा साबित हुआ है। मतलब यह कि उसने पीओके और भारतीय कश्मीरियों की जिंदगी बर्बाद ही की है। गिलगित-बाल्तिस्तान की डेमोग्राफी में बदलाव की कोशिश को स्टेट ऑब्जेक्ट ऑर्डिनेंस का उल्लंघन माना गया लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं हुई।
चाइना की चाल और पाकिस्तानी दमन चक्र
गिलगित-बाल्टिस्तान का जो खेल खेला गया, उसके पीछे चाइना की चाल है। चाइना इस क्षेत्र में एक कॉरिडोर बना चुका है जिसे वह ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा। इसे चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (CPEC) कहा जाता है। इससे सिर्फ चाइना को ही फायदा होगा। चाइना नहीं चाहता था कि यह एक विवादित क्षेत्र में यह सीपेक बनाए इसलिए पाकिस्तान ने उसे अपना 5वां प्रांत बनाकर चाइना को खुश किया। पाकिस्तान अब चाइना के कर्ज में डूब गया है।
यहां पर जब भी लोग चीन की गतिविधियों का विरोध करते हैं तो पाकिस्तानी सेना उसे कुचल देती है। उन पर आतंकवादरोधी कानून लगाया जाता है। चाइना के प्रोजेक्ट को प्रोटेक्ट करने के लिए इस इलाके में चीन के 24 हजार सैनिकों की भी तैनाती है। बाल्टिस्तान में सितंबर 2009 से पाकिस्तान के साथ एक समझौते के तहत चीन एक बड़ी ऊर्जा परियोजना लगा रहा है, कॉरिडोर बना रहा है और बड़े पैमाने पर यहां के प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग कर रहा है।
सुंदर और सामरिक महत्व का क्षेत्र
सिंधु नदी को अपने दामन में समेटे गिलगित-बाल्टिस्तान में बेहद खूबसूरत ऊंची पर्वत चोटियां हैं। गिलगित का एक बहुत सुंदर इलाका हैस्थान है। ये काराकोरम की छोटी-बड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं। काराकोरम क्षेत्र में ही हिन्दूकुश और तिरिच मीर नाम के वाले 2 ऊंचे पर्वत भी हैं। गिलगित घाटी में सुंदर झरनों, फूलों की सुंदर घाटियां भी हैं। इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत का कश्मीर है जिसमें दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध स्थल सियाचिन शामिल है। अपनी इसी भौगोलिक बनावट की वजह से यह इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान, तीनों के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।