सम्राट बिंदुसार कौन थे, क्यों कहते थे उन्हें अमित्रघात
सम्राट चन्द्रगुप्त महान थे। उन्हें चन्द्रगुप्त महान कहा जाता है। सिकंदर के काल में हुए चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को दो बार बंधक बनाकर छोड़ दिया था। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे। चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं। बिंदुसार के समय में चाणक्य उनके प्रधानमंत्री थे। इतिहास में बिंदुसार को 'महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता' कहा जाता है, क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और सम्राट अशोक महान के पिता थे।
बिंदुसार की 16 पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख मिलता है। उनमें से सुसीम अशोक का सबसे बड़ा भाई था। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। कहते हैं कि भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली थी। सम्राट अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी। अशोक महान पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था।
बिन्दुसार मौर्य 297-98 ईसा पूर्व में शासक बना और उसने 272 ईसा पूर्व तक राजकाज किया। बिन्दुसार ने अपने पिता द्वारा जीते गए क्षेत्रों को पूर्ण रूप से अक्षुण्ण रखा था। बिन्दुसार तिब्बती लामा तारनाथ तथा जैन अनुश्रुति के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार के भी मंत्री रहे थे। कहते हैं कि चाणक्य ने 16 राज्य के राजाओं और सामंतों का पतन करके बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र पर्यन्त भू-भाग का अधिपति बना दिया था।
यूनानी लेखों के अनुसार इसका नाम बिन्दुार को अमित्रकेटे भी कहा जाता था। विद्वानों के अनुसार अमित्रकेटे का संस्कृत रूप है अमित्रघात या अमित्रखाद (शत्रुओं का नाश करने वाला) माना जाता है।