शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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कविता: एक भीनी सी खुशबू हूं, हवाओं में घुल जाने दो मुझे

कविता: एक भीनी सी खुशबू हूं, हवाओं में घुल जाने दो मुझे - new poem
एक भीनी सी खुशबू हूं,हवाओं में घुल जाने दो मुझे। 
आसमान को छूता परिंदा हूं उड़ जाने दो मुझे।।
 
ना रोको मुझे , ना टोको मुझे,ठोकरों से रुबरु होने दो,
नहीं चलना किसी के सहारे, गिर कर ख़ुद संभलने दो।  
 
गीत हूं उम्मीदों भरा, इसे गुनगुनाने दो मुझे 
एक भीनी सी खुशबू हूं , हवाओं में घुल जाने दो मुझे 
आसमान को छूता परिंदा हूं उड़ जाने दो मुझे।।
 
नहीं बनना किसी और के जैसा, क्योंकि मुझ जैसा कोई और नहीं,
मेरे भी अपने रास्ते हैं, मंज़िल मेरी दूर सही।  
 
लड़खड़ाते हुए क़दमों से, मंज़िल को मेरी पाने दो मुझे
एक भीनी सी खुशबू हूं , हवाओं में घुल जाने दो मुझे 
आसमान को छूता परिंदा हूं उड़ जाने दो मुझे ।।
 
जिस पर क़ायम है दुनिया पूरी, उम्मीद का वही एक दीया हूं,
जो ना रुके कभी जो ना थके कभी, सोच का बहता ऐसा एक दरिया हूं। 
ख़ुद से ख़ुद की जंग है, जीत जाने दो मुझे 
एक भीनी सी खुशबू हूं , हवाओं में घुल जाने दो मुझे 
आसमान को छूता परिंदा हूं उड़ जाने दो मुझे ।।
 
अभी तो बहुत कुछ कहना है, अभी तो बहुत कुछ करना है, 
सपनों की इस बारिश में, अभी कुछ और पल भीगना है।  
अभी तो शुरू हुई है ज़िंदगी की दौड़, थोड़ा पसीना भी बहाने दो मुझे
एक भीनी सी खुशबू हूं, हवाओं में घुल जाने दो मुझे 
आसमान को छूता परिंदा हूं उड़ जाने दो मुझे।।
 
मेरी भी ख़ुद की एक पहचान है, मेरे सपनों में भी जान है,
मेहनतकश हूं हार नहीं मानता कभी, 
क़दम थके हैं थोड़े, मगर हौसला अभी जवान है।  
रुक-रुक कर ही सही, चलते जाने दो मुझे
एक भीनी सी खुशबू हूं, हवाओं में घुल जाने दो मुझे 
आसमान को छूता परिंदा हूं उड़ जाने दो मुझे।। 
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