Motivational Story | तुम्हारा निर्णय ही तय करता है जीवन
बहुत से लोग कहते हैं कि हम कर्मों के अधीन है, कुछ कहते हैं कि हम भाग्य के अधिन है और अधिकतर मानते हैं कि ईश्वर की इच्छा के बैगेर कुछ भी नहीं होता है। हम ईश्वर के बंधन में हैं। मतलब यह कि हम स्वतंत्र नहीं है। कर्म, भाग्य, नियति और ईश्वर से हम बंधे हुए हैं। यह बात सही है या गलत इस एक कहानी से समझें।
एक व्यक्ति ने महात्मा से पूछा- क्या मनुष्य स्वतंत्र है? भाग्य, कर्म, नियति आदि क्या है? क्या ईश्वर ने हमें किसी बंधन में रखा है?
महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा- खड़े हो जाओ। यह सुनकर उस व्यक्ति को बहुत अजीब लगा फिर भी वह खड़ा हो गया।
महात्मा ने कहा- अब अपना एक पैर ऊपर उठा लो। महात्मा का बड़ा यश था। उनकी बात न मानना उनका अनादर होता इसलिए उसने अपना एक पैर ऊपर उठा लिया। अब वह सिर्फ एक पैर के बल खड़ा था।
फिर महात्मा ने कहा- बहुत बढ़िया। अब एक छोटासा काम और करो। अपना दूसरा पैर भी ऊपर उठा लो।
व्यक्ति बोला- यह तो असंभव है। मैंने अपना दायां पैर ऊपर उठाया था। अब मैं अपना बायां पैर नहीं उठा सकता।
महात्मा ने कहा- लेकिन तुम पूर्णतः स्वतन्त्र हो। तुम पहली बार अपना बायां पैर भी उठा सकते थे। ऐसा कोई बंधन नहीं था कि तुम्हें दायां पैर ही उठाना था। मैंने तुम्हें ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया कि तुम दायां पैर उठाओ या बायां। तुमने ही निर्णय लिया और अपना दायां पैर उठाया। अब तुम स्वतंत्रता, भाग्य और ईश्वर की चिंता करना छोड़ो और मामूली चीजों पर अपना ध्यान लगाओगे तो समझ में आ जाएगा।
इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में हमारा निर्णय ही सबसे महत्वपूर्ण होता है। हमारे निर्णय ही हमारा आगे का जीवन संचालित करते हैं। ईश्वर ने तो हमें पूर्ण स्वतंत्रता दी है अब आपको ही तय करना है कि आप कैसे जीवन चाहते हैं।
- ओशो रजनीश के प्रवचनों से साभार