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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : दूर कहीं कोई रोता है

kavita
तन पर पहरा, भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या किसी का,
क्रंदन सदा करुण होता है।
 
जन्मदिवस पर हम इठलाते,
क्यों न मरण-त्योहार मनाते,
अंतिम यात्रा के अवसर पर,
आंसू का अपशकुन होता है।
 
अंतर रोए, आंख न रोए,
धुल जाएंगे स्वप्न संजोए,
छलना भरे विश्व में
केवल सपना ही तो सच होता है।
 
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली-गली है।
मैं जब भी रोता आसपास जब
कोई कहीं नहीं होता है।
दूर कहीं कोई रोता है।
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