रविवार, 22 दिसंबर 2024
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अटल जी की कविता : जीवन की ढलने लगी सांझ

अटल जी की कविता : जीवन की ढलने लगी सांझ - Atal bihari Vajpayee Poems
जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
 
बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शांति बिना खुशियां हैं बांझ।
 
सपनों से मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।
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