मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. गीत-गंगा
  4. Munimji song Jeevan Ke Safar Mein Raahi by Lata Mangeshkar
Written By

जीवन के सफर में राही: किशोर की आवाज में दब गया लता वाला वर्जन

लता 'सैड सांग' के रूप में इसे जिस पूर्णता से गाती हैं, वैसा मजा किशोर का चटपटा संस्करण नहीं देता

Munimji जी का गीत Jeevan Ke Safar Mein Raahi: Kishore की आवाज में दब गया Lata Mangeshkar वाला वर्जन - Munimji song Jeevan Ke Safar Mein Raahi by Lata Mangeshkar
जब देव आनंद अपनी टोपी और मूंछ फेंककर जानलेवा खूबसूरती में आते थे, तो जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज की नाजनीनों के मुंह से सामूहिक 'हाय' निकल जाती थी। किशोर कुमार की आवाज में यह गीत तेज, चटपटे और उल्लासमय मूड में है। यही गीत लता की आवाज में धीमा और विषादपूर्ण है। थीम के अनुसार, शरारती देव आनंद जब बूढ़े मुनीम का मेकअप उतारकर खूबसूरत नौजवान के रूप में नायिका नलिनी जयवंत को छेड़ते हैं, तो किशोर का यह गीत उन पर चित्रित होता है। ...बाद में जब नलिनी जयवंत उनकी याद में खोकर इस गीत को गुजरे दिनों की दर्दीली याद के बतौर गाती हैं तो गीत की धुन वही होते हुए भी चाल धीमी हो जाती है और आल्हाद की जगह उदासी का पुट आ जाता है। जाहिर है, यह संस्करण तब लता की आवाज में है। हम यहां लता वाले हिस्से पर चर्चा कर रहे हैं।
 
मुनीमजी सन् 1955 की फिल्म है। फिल्मीस्तान जैसी मशहूर कंपनी द्वारा बनाई गई यह फिल्म अपने जमाने की सुपर-डुपर हिट रही है। इसके टिकट भारी ब्लैक में बिके थे। आपकी सूचना के लिए यह भी बता दें कि यह गीत, किशोर की आवाज में, साल का बिनाका-सरताज गीत रहा था और अमीन सयानी मौज में आकर माइक्रोफोन पर किशोर का पूरा नाम किशोर कुमार गांगुली बोल जाते थे। खंडवा में यह फिल्म 'त्रियुग टॉकीज' में लगी थी, जहां किशोर का यह गीत सुनने 'वकील साहब' (अशोकर-किशोर-अनूप के पिताश्री) आ जाया करते थे।
 
यह गीत किशोर की आवाज में ही ज्यादा प्रसिद्ध है। लता वाला वर्सन दब गया है। गौर से सुनें तो लता 'सैड सांग' के रूप में इसे जिस तल्लीनता और पूर्णता से गाती हैं, वैसा मजा किशोर का चटपटा संस्करण नहीं देता। यहां यह बात अपनी जगह है कि एस.डी. बर्मन ने साहिर की इस शब्द-रचना को जो धुन दी है, वह एकदम मौलिक और कर्णप्रिय है। रहे देव आनंद, सो वे टोपी और मूंछ फेंककर जब अपनी जानलेवा खूबसूरती में आते हैं, तो जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज की नाजनीनों के मुंह से सामूहिक 'हाय' निकल जाती थी...।
 
इस बात की तस्दीक खंडवा के रेलवे सुप्रिंटेंडेंट (मीटर गेज) जगदीश झारिया से की जा सकती है... जो उन दिनों फिल्मी सूचनाओं के मामले में हम सबके चहेते गुरु थे और उम्र थी यही 13-14 साल।
 
लताजी इस गाने में कमाल यह करती हैं कि यादों में खोने का दूर-दराजी प्रभाव बड़ी सफाई से लाती हैं। गीत सुनते वक्त ऐसा लगता है कि हम मात्र गमगीन गीत नहीं सुन रहे हैं बल्कि उसमें अतीत के कोहरे से धीमे-धीमे उठने के 'फार-अवे' रंग को भी महसूस कर रहे हैं। यह लता की अपनी खूबी है कि वे गीत की लाइनों को पढ़ती हैं, तो पलभर में उनके अर्थ, दृश्य और मूड में उतर जाती हैं। यह ऐसा है, बताशा तेजाब में तुरंत घुल जाए और बिना कोशिश के तेजाब में मिठास चली जाए। 
 
 
सो, लता जब इस गीत को गाती हैं, तो अतीत अपने तमाम दर्द के साथ, यादों की घनी छायाएं लिए, ध्वनि में उभर आता है। यह दरअसल लता नहीं, लता की अतिसंवेदनशीलता और चित्रात्मक कल्पना-शक्ति का चमत्कार है। इसके बिना भी गीत गाए गए हैं, पर तब आप अनुराधा पौडवाल या अलका याज्ञिक हैं। 'मुनीमजी' का यह धीमा गीत, आपको हरी-भरी उदास वादियों, गमगीन सर्पाकार रास्तों, ढलती हुई छायाओ और गिरते हुए सूखे पत्तों में से निकालता चलता है। खास बात यह है कि दोनों ही प्रसंगों में यह गीत चलती कार में होता है, सो रिद्म और संगीत भी यही प्रभाव देते हैं कि तार धीरे-धीरे चल रही है। फिर भी सब कुछ के बीच में याद रह जाती है, तो लताजी और बस लताजी। वे हमें बहारों के बीच उदास कर जाती हैं और एक गमगीन शाम हम पर उतार जाती हैं।
 
आइए, लता को याद करें- 
 
जीवन के सफर में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को,
और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को
रो-रो के इन्हीं राहों में, खोना पड़ा इक अपने को,
हंस-हंस के इन्हीं राहों में,
अपनाया था बेगाने को 'जीवन के...'
 
अब साथ न गुजरेंगे हम, लेकिन ये फिजां वादी की,
दुहराती रहेगी बरसों, भूले हुए अफसाने को। 'जीवन के...'
तुम अपनी नई  दुनिया में, खो जाओ पराए बनकर
जी चाहे तो हम जी लेंगे, मरने की सजा पाने को। 'जीवन के...'
 
अब बताइए, इस शायरी पर कितने अंदाज से कुरबान हुआ जाए कि मन को सुकून मिल जाए। साहिर साहब हमें चुरा ले जाते हैं, उदास कर जाते हैं और लता? ओह, वो इस देश के कटोरे में कुदरत द्वारा डाला हुआ बेहतरीन मोती हैं। चुप हो जाइए।
 
(साभार: अजातशत्रु द्वारा लिखित पुस्तक: 'गीत गंगा' से, प्रकाशक: बाबू लाभचंद प्रकाशन) 
ये भी पढ़ें
किशोर कुमार अपने ड्राइवर से बार-बार क्यों पूछते थे कि चाय पी या नहीं?