शुक्रवार, 29 सितम्बर 2023
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पुकारता चला हूं मैं: कानों को इतना चिरागां भला रफी साहब और नैयर के अलावा कौन कर सकता था | गीत गंगा

गुरुवार,सितम्बर 21, 2023
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आज सब जानते हैं कि यह गीत फिल्म 'आवारा' का है, जो सन् 1951 की फिल्म है। उस दौर का हिन्दी फिल्म संगीत मुख्यत: दो भागों में बंटा हुआ था। एक तरफ हिन्दुस्तानी फोक, शास्त्रीय संगीत और गजल-मुजरों की परंपरा पर आधारित देशी गीत आते हैं और दूसरी तरफ पश्चिमी ...
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फिल्म "उमराव जान" का गाना "दिल चीज़ क्या है मेरी जान लीजिए" काव्यात्मक सुंदरता, भावनात्मक गहराई और मधुर संगीत का एक शानदार उदाहरण है। प्रसिद्ध संगीतकार खय्याम द्वारा संगीतबद्ध और आशा भोसले की मनमोहक आवाज द्वारा जीवंत किया गया यह गीत प्रेम, लालसा और ...
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अगर आप शायराना मिजाज के जीव हैं तो 'दु:ख-दर्द मिले जिसमें वही प्यार अमर है...' यह पंक्ति आपको अवश्य छू जाएगी। हां, तब कुछ ऐसा ही जज्बा था, ऐसे ही गीत लिखे जाते थे। ऐसे ही मर्मस्पर्शी कथानक होते थे। फिल्म 'अमर' (सन् 1954) में अमर (दिलीप कुमार) एक ...
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'श्री चार सौ बीस' का यह नगमा- 'दिल का हाल सुने दिलवाला' राज के इसी प्यारे जुनून से आया है। वे यहां बदहवास बदहालों के लफ्ज, तस्वीरें और तजुर्बे उनको लौटा रहे हैं और वे लोग इनमें अपने को पाकर हंस रहे हैं, रो रहे हैं। सवाल है कि ऐसे सीधे-सादे, ...
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फिल्म 'सज़ा' का यह गीत सन् 51 में जारी हुआ था। मगर आज सालों बाद भी यह लता-गीत हिन्दी फिल्म संगीत के संजीदा प्रेमियों को रास्ता चलते रुक जाने को मजबूर करता है और वे सड़क के बगल में खड़े होकर इसे किसी होटल या दुकान के रेडियो पर सुनने लगते हैं। खासतौर ...
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यह अक्सर सुनाई पड़ते रहने वाला देश के सबसे मशहूर फिल्मी गीतों में से एक है। इससे बच्चा-बच्चा वाकिफ है। इसकी जनव्यापी लोकप्रियता का श्रेय किसे दें? नैयर साहब को? गीता दत्त को? गुरु दत्त को। मेरी ओर से जवाब है, धुन को। इसलिए नैयर साहब को। नैयर साहब का ...
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जब देव आनंद अपनी टोपी और मूंछ फेंककर जानलेवा खूबसूरती में आते थे, तो जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज की नाजनीनों के मुंह से सामूहिक 'हाय' निकल जाती थी। किशोर कुमार की आवाज में यह गीत तेज, चटपटे और उल्लासमय मूड में है। यही गीत लता की आवाज में धीमा और ...
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सन् 1961 की फ़िल्म "झुमरू" का यह गीत है। हम सभी का बारहा-हज़ारहा सुना हुआ गाना : "कोई हमदम ना रहा/ कोई सहारा ना रहा।" इस फ़िल्म की कहानी किशोर कुमार ने लिखी थी। फ़िल्म के नायक भी वे ही थे। गीत भी उन्होंने लिखे, संगीत भी उन्होंने रचा, गीतों को गाया ...
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बीरेन नाग की फ़िल्म "कोहरा" का गीत है यह। बीरेन दा ने दो ही फ़िल्में बनाईं और दोनों ही सस्पेंस थ्रिलर। उनकी पहली फ़िल्म थी "बीस साल बाद", जो 1962 में आई थी और अपने ज़माने में बहुत बड़ी हिट थी। फिर उसके दो साल बाद उन्होंने उसी टीम - बिस्वजीत, वहीदा ...
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साल दो हज़ार पांच में आई फ़ि‍ल्‍म "यहां" का गीत है यह। निहायत "सेंसुअस", "तल्‍लीन", "राग-निमग्‍न" और उसके बावजूद एक क़ि‍स्‍म की बेचैनी, दुर्दैव की दुश्चिंताओं से भरा नग़मा। ख़लिश, कशिश और रोमैंटिक सरग़ोशियों में डूबा तराना।
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आनंद एल. राय ने यूं तो पांच फ़िल्में बनाई हैं, लेकिन पिछले आठ साल में उनके द्वारा बनाई गई तीन फ़िल्मों ("तनु वेड्स मनु", "रांझणा", "तनु वेड्स मनु रिटर्न्स") ने उन्हें अभी काम रहे शीर्ष निर्देशकों की पांत में लाकर खड़ा कर दिया। आनंद की फ़िल्मों में ...
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साल 1972 में, मीर के उसी क़लाम को उठाकर बीआर इशारा ने अपनी निहायत मेलोड्रमैटिक फ़िल्म "एक नज़र" के एक गीत में "सुपरइम्पोज़" कर दिया। अदब के हिमायती चाहें तो इसे "कुफ्र" कह सकते हैं और ये उनका हक़ है, लेकिन दूसरे दर्जे की उस फ़िल्म में कुछ नायाब ...
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मेरी जान तुम पे सदके

शनिवार,फ़रवरी 20, 2016
आशा की आवाज के रहस्य जिस माइक्रो अंदाज के पोरों से खोले हैं ओपी नैयर ने, और उन जादूभरे रहस्यों की सीढ़ियों से संगीत और संगीत की की गहराइयों और ऊंचाइयों से मुझे रूबरू कराया है, अन्य भी होंगे ही- मेरी जान तुझपे सदके, एहसान इतना कर दो मेरी जिंदगी ...
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सन् 53 में आई फिल्‍म 'शिकस्‍त' का गीत है यह। लता और तलत का दोगाना। परदे पर हैं दिलीप कुमार और नलिनी जयवंत। यह शांत रस का गीत है। तब भी यहां महान त्रासद नायक की छवि देखें, कैसी थिर है।
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सन् 1951 में आई फिल्‍म 'अनारकली' का गीत है यह। चितलकर के संगीत से सजी उस फिल्‍म ने तब ज़माना लूट लिया था और अनारकली की भूमिका निभाने वाली बीना राय तब पूरे मुल्‍क के दिलो-दिमाग़ पर छा गई थीं। विलायत तक उन्‍हीं का हल्‍ला। वैसा क़हर तो बाद में ...
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बिमल रॉय की फिल्‍म 'सुजाता' (1959) का मशहूर गीत है यह। संभवत: तलत का सर्वाधिक सुपरिचित, सर्वाधिक प्रतिनिधि गीत। तब तक तलत मुख्‍यत: दिलीप कुमार के लिए ही गाते थे, किंतु इस गीत की भाव-व्‍यंजना के लिए सचिन देव बर्मन को तलत से बेहतर कोई और नहीं सूझा।
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फिल्‍म 'जब वी मेट' का ख़ूब जाना-पहचाना गीत है यह। उस्‍ताद राशिद ख़ान की पकी हुई, परती आवाज़ में गुंथा हुआ। उस्‍ताद राशिद ख़ान हिंदुस्‍तानी क्‍लासिकी संगीत के रामपुर-सहसवान घराने से ताल्‍लुक़ रखते हैं, जिसमें गायकी में 'चैनदारी' का बड़ा ज़ोर है। ...
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दिल का दीया जलाके गया। यह लता का वैभव है। लता के विराट साम्राज्‍य का एक हिस्‍सा, लेकिन उनके तमाम गीतों में इस गीत का एक अलग ही मुक़ाम। कारण, जिस पिच पर उन्‍होंने इस गीत को गाया, वह अन्‍यत्र दुर्लभ है।
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सत्‍यजित राय की फिल्‍म 'चारुलता' (1964) का गीत है यह। गीतकार, रबींद्रनाथ ठाकुर (यह फिल्‍म भी रबींद्रनाथ के उपन्‍यास 'नष्‍ट नीड़' पर आधारित है), संगीतकार, स्‍वयं सत्‍यजित राय, और गायक, हमारे अपने किशोर कुमार।
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