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Last Modified: बुधवार, 30 जुलाई 2025 (15:22 IST)

धड़क 2 की शूटिंग के दौरान तृप्ति डिमरी को याद आए अपने कॉलेज के दिन

movie dhadak 2
फिल्म 'धड़क 2' में अपने रोल पर काम कैसे किया तो मैं यह कहूं कि हमारी जो निर्देशिका है शाजियां वह लगातार हमारा वर्कशॉप ले रही थीं। एक के बाद एक कई सारी वर्कशॉप हमारी होती रही और सिर्फ सिद्धांत के साथ ही नहीं बाकी और भी लोगों को वर्कशॉप में हिस्सा बनाया गया था। क्योंकि शाजिया का यह मानना था कि यह वह फिल्म नहीं है कि आप सेट पर जाओ एक्शन हो और आप एक्टिंग करना शुरू कर दो। 
 
बहुत जरूरी है कि मैं अपने फिल्म में हर किरदार के साथ एक जुड़ाव महसूस करूं। हम एक दूसरे की सोच से मेल खाते हुए बात कहते हैं। हम ऐसे ही बैठा करते थे गोल गोला बनाकर। वह सारी बातें करते थे जैसा कि हम कॉलेज में किया करते थे, वैसे ही मस्तियां, बातचीत हुआ करती थी और इस बात की तसल्ली भी हुआ करती थी कि हमारे उस एक्टिंग रूम में उस वर्कशॉप में हम हमें कोई भी जज नहीं कर रहा होगा। 
 
इसलिए हम एक दूसरे को इतने अच्छे से जान और समझ पाए कि और उसका फायदा आप कैमरा पर देख सकते हैं। सिर्फ मैं ही क्यों आप सिद्धांत को देखिए इस सिद्धांत के और उनके माता-पिता की जो ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री ऑफ दिखाई देने वाली है। आप उसे देखकर बहुत खुश हो जाएंगे। 
 
यह कहना तृप्ति डीमरी का जो अपनी नई फिल्म 'धड़क 2' के साथ एक बार फिर से लोगों के सामने आ रही हैं। इस बार वह एक कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की का किरदार निभा रही हैं, जिसे सिद्धांत से बहुत प्यार होता है। अपनी फिल्म के प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए तृप्ति ने कई सारी मस्ती भरी बातें भी की वो बताती हैं कि कॉलेज में यूं तो उनके कई दोस्त हैं, लेकिन कभी कोई लव लेटर जैसी बात नहीं हुई। 
 
जब वह धड़क 2 शूट भी कर रहे थे तो वह और उनके सारे ही सह कलाकार सभी हम उम्र के थे। इसलिए सभी अपने अपने कॉलेज के दिनों को याद करके खूब मस्ती कर रहे थे और आपस में वह समय दोहराने की कोशिश भी कर रहे थे। बात तो यहां तक कि जब 40-45 दिन की शूट के बाद आखिरी दिन आ गया तो सभी लोग बड़े दुखी हो गए। तृप्ति आज भी याद करते हुए बताती है कि 'जिस दिन आपको यह लगे कि आपका शूट का आखिरी दिन है आप को दुखी करके जा रहा है। तब समझ लीजिए कि आपने फिल्में पूरे दिल लगाकर काम किया है।'
 
इस फिल्म में जातिवाद की बात होती है। साथ ही आसपास ऑनर किलिंग जैसी भी खबरें आती हैं। आपकी क्या सोच है?
मैं यह बिल्कुल मानती हूं कि मुझे ऐसा लगता था कि इन विषयों के बारे में तो मैं सब कुछ जानती हूं। लेकिन जब सिद्धांत से बातें हुई फिल्म के निर्देशक शाजिया से बात हुई तब ऐसा लगा कि मैं तो कुछ भी नहीं जानती। इसके बारे में हमारे आस पास इतनी सारी चीजें होती रहती है जो दूसरे व्यक्ति को छोटा दिखाना खुद को बड़ा दिखाना यह सब बताती रहती हैं। 
 
लेकिन हम कभी उन्हें पहचान ही नहीं पाते या कभी सामने होती रही है तो हम ऐसे मुंह फेर लेते हैं जैसे हमारा उनका कोई सरोकार ही नहीं है। जबकि होना तो यह चाहिए कि हमारे सामने किसी भी व्यक्ति के साथ अगर गलत हो रहा हो तो हमें उसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। इस फिल्म के शूटिंग के दौरान एक बार ऐसे ही मैं शाजिया के पास गई और मैंने कहा, मैं तो बिल्कुल भी अपने कैरेक्टर जैसी नहीं हूं। मैं जो रोल फिल्म में कर रही हूं, मैं बिल्कुल उसके विपरीत हूं मैं किसी की भी बातों में खुद कूदती नहीं हूं, लेकिन ऐसे रोल करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि हिम्मत आ गई है मुझ में। 
 
ऐसी कोई चीज या बात है मेरे सामने होगा तो मैं उठ खड़ी होऊंगी और सिर्फ मैं ही क्यों मुझे लगता है हर व्यक्ति को किसी भी नाइंसाफी है। खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए। इस फिल्म के जरिए अगर कुछ लोगों को संदेश मिलता है तो मेरे हिसाब से बहुत अच्छी बात होगी। मेरे साथ में आप सभी पत्रकार बैठे हैं, मुझे नहीं लगता है। इस टेबल पर कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को नीचा दिखाना चाहता होगा या फिर दुर्व्यवहार करता होगा। 
 
इसके साथ ही में यह भी मानती हूं कि हमारे आसपास ही ऐसे कई लोग होते हैं जो दुर्व्यवहार करते रहते हैं। वह दूसरे लोगों के साथ गलत तरीके से पेश आते हैं क्योंकि उनकी सोच कहीं बंध गई है। अगर इस फिल्म के जरिए उन लोगों की सोच में या नजरिये में थोड़ा भी परिवर्तन आया और उन्होंने इंसानों को इंसानी तौर पर से व्यवहार रखना शुरू किया तो इस फिल्म को बनाने का हमारा मकसद पूरा हो जाएगा। 
 
इस फिल्म के लिए आपने क्या नया सीखा और क्या ऐसी पुरानी बात थी जो आपने छोड़ दी।
फिल्म को शूट करते टाइम मुझे बहुत सारी नई नई चीजों की मालूमात पड़ी जो मैं पहले बता ही चुकी हूं। अनलर्न करना या पुरानी बातों को छोड़ना, तो मैं इतना कह सकती हूं कि मैं जो अपने निर्देशिका से बात करती थी तो वह हमें स्क्रिप्ट दे दी थी और ज्यादा देर उस पर होमवर्क करें नहीं देती थी। वह बोलती थी आपने पढ़ ली है, समझ ली शॉट स्पष्ट भी कर लिया है। अब आइए शूट कर लीजिए ताकि जो एक्शन रिएक्शन होता है वह बहुत त्वरित रूप से हो और एकदम सटीक रहे, एकदम ताजा रहे। 
 
अच्छी बात मुझे यह लगती है कि जब एक ऐसा निर्देशक आपके पीछे आपका साथ देने के लिए खड़ा हो जो आपको इतनी आजादी देता है कि जिस भी तरीके से आप रोल निभाना चाहे आप निभा सकते हैं। वह आप पर पूरा विश्वास जता रहा है। बहुत बड़ी बात होती है। 
 
फिल्म में आपका कैरेक्टर अपने प्यार को बचाने के लिए लड़ने को तैयार हो जाता है। कॉंप्रोमाइज भी करने को तैयार है। क्या आप असली जिंदगी में कभी किसी के लिए कॉम्प्रोमाइज करना चाहेंगे? 
देखिए, अगर आपको लगता है कि सामने वाला व्यक्ति आपके लिए बिल्कुल सही है और उसके लिए आपको थोड़ी सी फाइट भी करनी पड़ेगी तो आप कर लेंगे उसमें कोई गलत बात नहीं है और कॉम्प्रोमाइज थोड़ा बहुत तो हर जगह आपको करना भी चाहिए तभी रिश्ता रहेगा लेकिन? मैं यह भी कहना चाहूंगी कि जो जुनून वाली बात या लड़ जाने वाली बात होती है वह मेरी किसी और विषय पर नहीं बल्कि फिल्मी करियर को चुनने पर हुई थी। 
 
मेरे घर वाले सभी लोग मेरे इस निर्णय के खिलाफ थे और उनका मेरे साथ ना देने का भी सही था। मतलब यह था कि अचानक से कैसे हमारी बेटी उत्तराखंड से उठकर मुंबई जैसे शहर में जाएगी और एक्टिंग कर लेगी। तब मैंने पूरे विश्वास के साथ अपने घर वालों को समझाया। कि मुंबई भी एक शहर है। आपको लगता है कि मैं गलत लोगों के साथ पर जाऊंगी या गलत काम में लग जाऊंगी तो आइए मेरे साथ रहिए और देखिए मैं किन लोगों से मिल रही हूं किस तरीके के माहौल में हूं? 
 
घर वालों की सोच भी सही थी कि नए शहर में जा रही हूं जिसे हम जानते नहीं, उन माहौल को हम समझते नहीं हमारा कोई रिश्तेदार भी वहां पर नहीं है। यह वह समय था जब मैं अपने आप पर भरोसा करके उन्हें जवाब देते रहे और कहा कि मेरे लिए यह सबसे सही बात है और होता है आपके जिंदगी में आप हिम्मत करते हैं और भगवान का बहुत धन्यवाद कि सही समय पर मैंने हिम्मत दिखाई बना आज आपके सामने ऐसे भी देते हुए नहीं बैठी होती।
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