हिन्दी : अपनी ही धरती पर उपेक्षिता क्यों
- अजहर हाशमी
भाषाओं के उद्यान में हिन्दी ऐसा पुष्प है जो माधुर्य, सौंदर्य और सुगंध से भरपूर है। माधुर्य के कारण हिन्दी मिष्ट है। सौंदर्य के कारण हिन्दी शिष्ट है। सुगंध के कारण हिन्दी विशिष्ट है। माधुर्य, हिन्दी का शिवम् है। सौंदर्य, हिन्दी का सुंदरम् है। सुगंध,हिन्दी का सत्यम् है। हिन्दी की वर्णमाला में ही वह सामर्थ्य है कि वह संसार की किसी भी बोली और भाषा को ज्यों-का-त्यों लिखित रूप दे सकती है। हिन्दी का व्यक्तित्व वर्णमाला में विराट है। व्यक्तित्व की विराटता से तात्पर्य हिन्दी वर्णमाला का विशद् होना नहीं है अपितु ग्राता का यह गुण है जिसके अंतर्गत किसी भी भाषा या बोली के उच्चारण को जस-का-तस पेश किया जाता है। फ्रेंच भाषा मादक है परंतु आकर्षक और मोहक नहीं। इटेलियन भाषा आकर्षक है परंतु मादक और मोहक नहीं। चीनी भाषा न तो मादक है, न आकर्षक और न मोहक। हिन्दी भाषा मादक भी है, आकर्षक भी है और मोहक भी है। तभी तो रूस के वरान्निकोव और बेल्जियम के बुल्के भारत आकर हिन्दी को समर्पित हो गए।