- आपकी हाइट 172 सेमी. है तो पेट की मोटाई 86 सेमी. से ज्यादा नहीं होना चाहिए
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'ओबेसिटी एंड डायबिटीज " विषय पर शहर में दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन
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डायबिटिज को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लेते लोग, बाद में खतरनाक हो जाती है स्थिति
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स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता नहीं होना सबसे बड़ी समस्या
इंदौर, हमारे देश में दो तिहाई आबादी की शुगर कंट्रोल में नहीं है। पश्चिमी देशों में जहां लोग 60 वर्ष की उम्र में डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं, वहीं हमारे देश में 40-45 वर्ष में ही इसकी जद में आ रहे हैं।
इसका प्रमुख कारण है मोटापा, जिसके प्रति लोग गंभीर नहीं हैं। डायबिटीज और ओबेसिटी (मोटापा) से जुड़ी यह खास जानकारी ऑल इंडिया एसोसिएशन फॉर एडवांसिंग रिसर्च इन ओबेसिटी के अध्यक्ष डॉ. बंशी साबू ने इंदौर आने पर दी।
उन्होंने कहा कि पेट का भार ज्यादा बढ़ा तो समझ लीजिए आप खतरे में हैं। आपके पेट की गोलाई, आपकी कुल लंबाई के आधे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। मोटापा डायबिटीज का ड्राइवर है, जो इस घातक बीमारी को आप तक पहुंचाता है।
'डायबिटीज और मोटापा" विषय पर बात करने के दौरान इंदौर के प्रसिद्ध डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. भरत साबू ने भी महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
इलाज से बेहतर है बीमारी को होने से रोकना
डॉ. बंशी साबू रिसर्च सोसायटी फॉर दि स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया के पूर्व अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने डायबिटीज के विभिन्न कारणों और इससे बचने के उपायों के बारे में बताते हुए कहा कि किसी भी बीमारी के हो जाने के बाद इलाज करवाने से ज्यादा बेहतर है कि हम उसे होने से रोकें। डायबिटीज के मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए। इसका शिकार होने वाले अधिकतर मरीज शुरुआती दौर में इसे गंभीरता से नहीं लेते और जब वे इसकी सुध लेते हैं तब तक आंख, किडनी और लीवर बुरी तरह प्रभावित हो चुके होते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम स्वास्थ्य और बीमारी के प्रति सचेत रहें।
दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस में तकनीक पर चर्चा में डॉ. बंशी साबू ने बताया कि डायबिटीज के इलाज व सावधानियों के लिए जिन तकनीकों का इस्तेमाल होना चाहिए, वो आज भी नहीं हो रही है।
इस कमी को दूर करने के लिए कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। डायबिटीज के मरीजों की संख्या कम करने और बीमारी के शुरुआती दौर में ही इलाज शुरू करने की प्रेरणा देने के लिए एसोसिएशन द्वारा कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
हाल ही में 'डिफ़ीट डायबिटीज" अभियान चलाया गया, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही दिन में एक मिलियन लोगों का शुगर टेस्ट किया गया। यही नहीं इस दौरान तीन महीने में 100 मिलियन लोगों तक जागरूकता का संदेश पहुंचाया गया।
आर्थिक समस्या नहीं, जागरुकता की कमी पड़ रही भारी
डायबिटिज जैसी बीमारियों की जांच और इलाज के नाम पर हमारे देश में आर्थिक समस्या का हवाला दिया जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि आर्थिक कमजोरी नहीं बल्कि जागरुकता की कमी बीमारी बढ़ने का कारण है।
लोग अपनी बीमारी और उसके निदान के लिए जागरूक नहीं हैं। उदाहरण के रूप में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति अपने बड़े भाई को कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल ले जाता है और बाहर बैठकर वहीं सिगरेट पीता है। उसे मालूम है कि धूम्रपान से कैंसर होता है। फिर भी लापरवाही बरतता है।
हम बेकार के कामों के खर्च करते हैं लेकिन अपनी सेहत पर खर्च करने में आर्थिक कमजोरी का हवाला देते हैं। यूरोपीय देशों से न सिर्फ हमारे देश की आबादी ज्यादा है बल्कि सम्पन्न लोगों की संख्या भी ज्यादा है। जरूरत है तो सिर्फ जागरूकता की।
30 वर्ष की उम्र से नियिमत जांच करवाएं, लाइफस्टाइल का ख्याल रखें
प्रसिद्ध डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. भरत साबू ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एडवायजरी के साथ ही अन्य रिसर्च पेपर और जनरल्स में भी यह प्रकाशित हो चुका है कि 30 वर्ष की उम्र के बाद हार्मोन लेवल कम-ज्यादा होने के कारण स्वास्थ्य में कई तरह के बदलाव होते हैं और डायबिटिज का खतरा बढ़ जाता है।
इसलिए इस उम्र को पार करने वाले लोगों को वर्ष में एक बार डायबिटिज की जांच जरूर करवाना चाहिए। ताकि सही समय पर बीमारी का पता चले और खतरा बढ़ने से पहले ही उसे नियंत्रित किया जा सके। इसके साथ ही जरूरी यह है कि हम अपने खानपान और व्यायाम का भी ध्यान रखें।
तले-गले, हैवी कॉलेस्ट्रॉल वाले घातक खाद्य पदार्थों को छोड़कर हरी सब्जियां, फल, दूध, ज्यूस और पोषक तत्व वाला आहार लेना चाहिए। नियमित रूप से क्षमता के मुताबिक पैदल चलना चाहिए, योग और व्यायाम करना चाहिए ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर बीमारी से लड़कर जीता जा सके।