उत्तरप्रदेश ही नहीं बिहार झारखंड और कहना चाहिए पूरी हिंदी पट्टी में मोदी का जबरदस्त क्रेज़ है, इसमें
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कोई शक नहीं। लोग उनका भाषण सुनने खुद होकर भले न जाएं, पर वोट उन्हें देने का मन बना चुके हैं। इस हल्ले में कई ऐसे लोग भी चुनाव जीत जाएंगे, जो मोदी नहीं होते, तो शर्तिया हार जाते। अभी यूपी में जो रेकार्डतोड़ वोटिंग हुई है, उसका फायदा मोदी के चलते भाजपा को ही मिलने वाला है। आगे जहां-जहां मतदान है, वहां भी खूब मतदान होगा, ऐसी संभावना है और उसका फायदा भाजपा मिलेगा, इसकी भी उम्मीद है।
नरेंद्र मोदी का उभार क्या महज इत्तफाक है? क्या वाकई मोदी के कारण इलाकाई पार्टियों का वजूद खतरे में है? दोनों सवालों का जवाब फिलहाल हां है। मोदी का उभार मनमोहनसिंह जैसे नेता के कारण हुआ, जो व्यक्तित्वविहीन हैं। देश ऐसे नेता को पसंद नहीं करता, जिसकी अपनी कोई हैसियत, कोई शख्सियत न हो। फिर चाहे ऐसा आदमी कितना ही काबिल क्यों न हो।
देश ऐसे आदमी को भी पसंद नहीं करता, जो अरविंद केजरीवाल की तरह कुर्सी छोड़ दे। देश पसंद करता है मोदी जैसे शख्स को, जिसने गुजरात दंगों पर माफी नहीं मांगी तो नहीं मांगी। दुख जताने की बात आई तो कह दिया कि कुत्ते का पिल्ला भी मरे तो दुख होता है। मोदी ने इस तरह से हिंदुत्व समर्थकों का दिल जीता और कथित सुशासन से युवा और पढ़े-लिखे लोगों को अपनी तरफ कर लिया। दिल में हिंदुत्व की भावना रखने वाले भी कहने लगे कि हम तो मोदी के विकास के लिए भाजपा को वोट देंगे। ऐसा कोई दूसरा नेता भाजपा के संक्षिप्त इतिहास में है ही नहीं, जो दोनों मोर्चों पर इतना कामयाब हो।
मगर कुछ संशय अभी भी बाकी हैं। क्या एनडीए को इतनी सीटें मिल पाएंगी कि मोदी आराम से प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकें? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो क्या होगा? जोड़-तोड़ होगी तो क्या चुनाव के पहले मोदी की मुखालफत कर रहे लोग मोदी के पीएम बनने पर उन्हें समर्थन देंगे? इससे भी बड़ी आशंका यह है कि मोदी यदि पीएम बन गए तो सवा सौ करोड़ लोगों की उम्मीदों पर कैसे खरे उतरेंगे? गैस के दाम दोगुने होने को हैं। चुनाव के बाद हो जाएंगे, जिसका असर हर चीज़ पर पड़ेगा।
लोग कहेंगे मोदी के आते ही महंगाई बढ़ गई। इससे आगे चलते हैं। मोदी ने पूरे देश को इस तरह सम्मोहित किया है कि आप मुझे प्रधानमंत्री बनाइए तो सही, आपका हर कष्ट दूर न हो जाए तो कहना। मगर क्या इतने बड़े देश में ऐसा करना संभव है? लाखों गांवों में सड़क, बिजली, पानी देना क्या मुमकिन है? रातों-रात सरकारी महकमों में पैठा भ्रष्टाचार क्या एक मोदी के आने से दूर हो जाएगा? करोड़ों लोगों को क्या रातों रात या दो ढाई बरस के अंदर भी रोज़गार मिल सकेगा? लोगों की अपेक्षाएं इतनी ज्यादा हैं कि पूरी नहीं हो सकतीं।
एक बार मोदी के पीएम बन जाने के बाद जनता यह बहाना नहीं सुनेगी कि हमें पूर्ण बहुमत नहीं मिला, इसलिए हम कुछ नहीं कर पाए। अटल बिहारी के समय यह गलती हो चुकी है। मुद्दे पीछे रख कर सत्ता हासिल कर ली थी, तो दस साल सत्ता से दूर हुए हो चुके हैं। अगर मोदी जनता की अपेक्षाएं पूरी नहीं कर पाए तो शायद यह वाला वनवास और लंबा होगा। फिलहाल तो मोदी ने यूपी के सारे जातीय समीकरण बिगाड़ दिये हैं। अच्छा यह है कि लोग जात-पात से उपर उठकर वोट देना सीख रहे हैं। काश कि वे धर्म के ऊपर भी उठ पाएं।