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Gita Press: गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्‍कार, एक करोड़ की राशि लेने से किया इनकार

कब हुई थी गीता प्रेस की स्‍थापना, क्‍या है इतिहास?

geeta press
Gita Press Gorakhpur : गीता प्रेस गोरखपुर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक किताबों का प्रकाशन है। हिंदू धर्म और संस्‍कृति से संबंधित किताबों का प्रकाशन करता है। इस प्रकाशन में आपको तीन, पांच और सात रुपए तक की कीमत में हिन्‍दू धर्म और संस्‍कृति-परंपरा की किताबें मिल जाएंगी। यह बगैर लाभ के चलने वाला प्रकाशन है। दुनिया इस सबसे बड़े और प्रतिष्ठित धार्मिक किताबों के प्रकाशन गीता प्रेस गोरखपुर (Gita Press Gorakhpur) को इस बार साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी।

यह ऐलान संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी के निर्णय के बाद रविवार को किया गया था। इस बीच गीता प्रेस ने कहा है कि वह सम्मान जरूर स्वीकार करेगा, लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं लेगा। गोरखपुर गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा, ‘हम लोग किसी भी तरह के आर्थिक सहायता या पुरस्कार नहीं लेते हैं, इसलिए इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं'

पहले भी नहीं लिया कोई पुरस्‍कार : दिलचस्‍प है कि कुछ साल पहले गीता प्रेस प्रकाशन के बंद होने की खबर आई थी। कहा गया था कि आर्थिक कमी के चलते प्रकाशन बंद किया जा सकता है। ऐसे में इससे पहले भी गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था। प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि हालांकि इस बार परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान को स्वीकार किया जाएगा। लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपए की धनराशि नहीं ली जाएगी।

गीता प्रेस और गांधी जी का रिश्‍ता : बता दें कि गीता प्रेस से महात्‍मा गांधी का भी खास रिश्‍ता रहा है। गांधी जी ने कल्याण पत्रिका के लिए पहला लेख लिखा था। इससें गांधी जी ने स्वाभाविक शब्द के दुरुपयोग का जिक्र किया था। जिसके बाद उन्होंने कई बार कल्याण के लिए लेख या संदेश लिखे। गांधी जी के निधन के बाद गीता प्रेस में उनके विचार छपते रहे। महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 को गीता प्रेस की गीता प्रवेशिका के लिए भूमिका लिखी थी।

गीता प्रेस की शुरुआत और इतिहास : गीता प्रेस की स्थापना मई 1923 में जयदयाल गोयनका ने कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट में की थी, इसी ट्रस्ट से गीता का प्रकाशन होता था। इसके संस्थापक गोयनका का एक ही उद्देश्य था भगवद् गीता का प्रचार करना। छपाई के दौरान किताबों में गलतियां रह जाती थीं, जिसकी शिकायत गोयनका जी ने प्रेस के मालिक से की तो उन्होने कहा कि इतनी शुद्ध गीता का प्रकाशन चाहिए तो अपनी प्रेस की स्थापना कर लीजिए। जिसके बाद गीता प्रकाशित करने के लिए प्रेस लगाने की बात चली तो गोरखपुर में प्रेस की स्थापना का फैसला किया गया। इसके बाद 29 अप्रैल 1923 को हिन्दी बाजार में 10 रुपए महीने के किराए पर कमरा लेकर गीता का प्रकाशन शुरू किया गया। जिसके बाद धीरे-धीरे गीता प्रेस का निर्माण हुआ। प्रकाशन की शुरुआत कोलकाता से हुई लेकिन बाद में गोरखपुर से होने लगा।

ये किताबें होती हैं प्रकाशित : गीता प्रेस से श्रीमद्भागतगीता, रामचरित मानस, पुराण, उपनिषद सहित 15 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं। इनमें हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया, उड़िया, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेजी, नेपाली आदि भाषाएं शामिल हैं। गीता प्रेस से अब तक लगभग 1850 प्रकार की 92.5 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कई धार्मिक संगठन, संस्‍थांए, मठ, आश्रम आदि गीता प्रेस की किताबें ही खरीदते हैं।

गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाला सबे चर्चित ग्रंथ है कल्याण, युग कल्याण एवं कल्याण कल्पतरू। ये गीता प्रेस द्वारा तीन मासिक पत्र प्रकाशित किए जाते हैं। पत्रिका का प्रकाशन 86 वर्ष पूर्व मुम्बई में शुरू हुआ था और वर्तमान में सबसे अधिक बिकने वाली तथा सबसे पुरानी आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक पत्रिका बन गई है

रामचरित मानस : गीता प्रेस की रामचरितमानस सबसे अधिक बिकती है। यहां के कुल प्रकाशन का 35-40 प्रतिशत हिस्सा रामचरितमानस का है। रामचरितमानस को नौ भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है। गीता प्रेस से छपने वाली किताबों के दाम इतने सस्ते होते हैं कि कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाए कि इतनी मोटी, जिल्द चढ़ी किताब इतने सस्ते में कैसे बिक सकती है।

200 लोग करते हैं काम : गीता प्रेस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य सस्ती, सचित्र, शुद्ध, सजल्दि और सुंदर पुस्तकें छापने के लिए किया गया था। गीता प्रेस में आज आधुनिकतम मशीनों पर लगभग 200 लोग काम करते हैं।

राम-कृष्‍ण के चित्र : गीता प्रेस की एक बड़ी धरोहर है भगवान राम और कृष्ण के जीवन से जुड़े चित्र। इन चित्रों की अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखने की कोशिश की जा रही है।

46 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित: गीता प्रेस के धार्मिक पुस्तकों के विभिन्न संस्करणों में अब तक 46 करोड़ के करीब पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें श्रीमद्भगवद्गीता के बाद, पुराण, उपनिषद आदि ग्रन्थ क्रमवार गिने जा सकते हैं। इसी के साथ ही यहां पर महिलाओं एवं बालपयोगी लाखों किताबें, भक्त चरित्र एवं भजन माला, तुलसी साहित्य लाखों पुस्तकें शामिल हैं|
Edited by navin rangiyal
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