शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025
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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2025 (09:58 IST)

भीतर के अंधकार को मिटाने का पर्व है - विजयादशमी

Gurudev Sri Sri Ravi Shankar Ji
- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी 
 
विजयादशमी का दिन सच्चाई की जीत का है, देव शक्ति की जीत का है। देवासुर संग्राम न केवल संसार में, बल्कि हमारे भीतर भी निरंतर चलता रहता है। इसमें दैवीय गुणों की जीत ही हमारी असली जीत है। तब ही सुख, शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। यदि आसुरी शक्ति की जीत हो, तो दुख और दरिद्रता फैलती है। इसलिए वैदिक परंपरा में दशहरे के दिन एक-दूसरे को बधाई दी जाती है: ‘स्वस्थ रहें, तृप्त रहें, और आपके सभी कार्य सुचारू रूप से आगे बढ़ें।’ALSO READ: विजयादशमी दशहरे पर कौनसे 10 महत्वपूर्ण कार्य करना बहुत जरूरी
 
उत्सव के दौरान बहुत से लोग मौन व्रत रखते हैं, जिसके फलस्वरूप उनके तन-मन की शुद्धि हो जाती है। हमारे पूर्वज इतने मेधावी रहे, उन्होंने हर मौसम के हिसाब से कोई न कोई त्योहार बनाया। जिससे हम एक त्योहार से दूसरे त्योहार में व्यस्त रहें और जीवन में चिंताओं को जगह ही न मिले।
 
सेवा के काम में लग जाएं, तो मन प्रसन्न हो जाता है और यदि अपने बारे में ही दिन-रात सोचते रहते हैं, तो दुःखी होते रहते हैं। ये सोचें - मैं कौन हूं? न मैं शरीर हूं, न मैं बुद्धि हूं, न मैं मन हूं। इस तरह से स्वयं के बारे में विमर्श करने से भी हम प्रसन्न हो जाएंगे, सुखी हो जाएंगे। हम खुद के बारे में कुछ नहीं जानते। हम बीच में ही उलझे रहते हैं, कुछ न कुछ लेकर हम अपने मन में गांठ बनाते जाते हैं। मन के जो ये सारे भ्रम हैं, इसी को माया कहते थे। माया की पकड़ से बचकर हमारे सारे भ्रम दूर हों जाएं, इसके लिए ध्यान करें। उसके लिए ही यह सब उपाय है, त्योहार मनाएं, देवी को पूजें और ये अनुभव करें कि देवी तो हमारे भीतर है - 
 
‘या देवी सर्वभूतेषु…….’
 
चेतना के रूप में वे सबमें है, यह सारा संसार उस चैतन्य सत्ता की ही लीला है। इस बात को हमें बार-बार स्वयं को याद दिलाते रहना चाहिए। 
 
एक घर में एक ही व्यक्ति खुश रहे, ये करीब-करीब असंभव है। जब तक सभी को खुशी नहीं बांटते तब तक एक व्यक्ति भी खुश नहीं रह सकता है, तो इसलिए घर में हर एक व्यक्ति के भीतर ज्ञान, ध्यान, सेवाभाव, प्रसन्नता, त्याग-भाव ये सब जागे, तब जाकर सुखी परिवार, सुखी संसार बनेगा।ALSO READ: Dussehra 2025: दशहरा और विजयादशमी में क्या है अंतर?
 
बार-बार हमको जागना पड़ेगा और बार-बार जगाने के लिए ही तो यह सब उत्सव है। जागो और भागो मत। कुछ पसंद नहीं आए, तो हम भागते हैं। भागने से भाग्य नहीं खुलेगा, जागो तो भाग्य खुल जाएगा। भाग्य यही है कि सारा संसार आपका अपना है। परमात्मा यहीं है, अभी है, हमारे भीतर है। यह विश्वास हमको बार-बार जताते रहना पड़ेगा। बाकी संसार का काम भी साथ में करते रहना चाहिए। जीवन में संतोष तभी उपजेगा, जब हम जीवन में दोनों को संतुलित करते जाएं। व्यावहारिक काम और आध्यात्मिक पहलू इन दोनों में से कोई एक चीज छोड़ दोगे, तो भी जीवन अपूर्ण रह जाएगा। 
 
विजयादशमी का संदेश है - विजय हो - इस दिन अपनी आत्मा को जगाएं, भीतर के अंधकार को मिटाएं और नई ऊर्जा, नई चेतना के साथ आगे बढ़ें।ALSO READ: Dussehra 2025: शमी वृक्ष का पूजन कर मनाएं विजयादशमी, जानें पूजा का महत्व
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