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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 9 दिसंबर 2013 (22:31 IST)

सपने बेचती है 'आप' : शीला दीक्षित

सपने बेचती है ''आप'' : शीला दीक्षित -
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नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में राजधानी के विधानसभा चुनाव में हैरान कर देने वाला प्रदर्शन करने वाली 'आप आदमी पार्टी' के बारे में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कहना है कि वह सपने बेचती है।

शीला नहीं जानतीं कि ऐसा क्या था, जिसकी वजह से आप ने करिश्माई प्रदर्शन करते हुए 28 सीटें जीत लीं, कांग्रेस 8 पर सिमट गई और 70 सदस्‍यीय विधानसभा में भाजपा 31 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में तो उभरी, लेकिन बहुमत के लिए जरूरी 36 सीटों के जादुई आंकड़े से पीछे रह गई।

इस बारे में कुछ पल सोचने के बाद कांग्रेस की अनुभवी नेता कहती हैं, मुझे लगता है यह उन सपनों की वजह से हुआ जो उन्होंने दिखाए। उन्होंने 15 वर्ष तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर देश की राजधानी पर राज किया है।

उनका कहना था, आप सपने नहीं बना सकते, आप सपने नहीं बेच सकते, लेकिन उन्होंने ऐसा किया। यह पूछे जाने पर कि क्या आप का सुरूर रहेगा, उन्होंने कहा, एक बार ऐसा हो सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि ऐसा हमेशा चलेगा। सपनों की भी तो परख होगी।

शीला ने कहा कि मिसाल के तौर पर आप ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आई तो बिजली के दामों में 50 प्रतिशत कटौती कर देगी, इसी तरह भाजपा ने 30 प्रतिशत कटौती का वादा किया है। आप ने रामलीला मैदान में विधानसभा का सत्र बुलाने की बात कही है, जहां लोकपाल बिल पास किया जाएगा।

दीक्षित ने कहा कि वह सैकड़ों बार स्पष्ट कर चुकी हैं कि उनकी सरकार भ्रष्ट नहीं है और बिजली के दाम बिजली नियामक डीईआरसी निर्धारित करता है। लेकिन लोगों को यह समझ नहीं आता। इससे भी ज्यादा यहां दोहरा सत्ता विरोध था। लोग केन्द्र सरकार से नाराज थे और साथ ही दिल्ली सरकार से नाराज थे।

यह पूछे जाने पर कि कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के वादे के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद को किस तरह बदलेगी, उन्होंने कहा कि पार्टी को ऐसे कार्यकर्ताओं की जरूरत है, जो समर्पित हों। दीक्षित ने कहा कि केजरीवाल के पास भाड़े के कार्यकर्ता थे, क्या यही भविष्य है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को सारे विकल्पों पर विचार करना होगा।

उन्होंने सवाल किया, क्या किसी एक दल और उसकी विचाराधारा के प्रति समर्पित होने के दिन बीत गए हैं या अभी बाकी हैं? ऐसे सवाल हैं, जिनके हमें जवाब देने होंगे और जवाब ढूंढने होंगे। (भाषा)