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Written By Author राम यादव
Last Updated : शनिवार, 6 मई 2023 (10:01 IST)

ब्रिटेन में क्यों हो रहा है किंग चार्ल्स और राजशाही का विरोध?

ब्रिटेन में क्यों हो रहा है किंग चार्ल्स और राजशाही का विरोध? - Why is King Charles and the monarchy being opposed in Britain?
बहुत ही लंबी प्रतीक्षा के बाद चार्ल्स तृतीय (Charles III) ब्रिटेन के राजा (king of Britain) बन पाए हैं। शनिवार, 6 मई को उनका राज्याभिषेक भी हो जाएगा। कई विदेशी राजा-रानियों की उपस्थिति उनके राज्याभिषेक समारोह की शोभा बढ़ाएगी। बधाइयों और शुभकामनाओं की वर्षा होगी। लेकिन जिस प्रजा के वे राजा बने हैं, उसमें एक ऐसा भी वर्ग है, जो ब्रिटेन में अब राजशाही (monarchy) की जगह लोकशाही (democracy) चाहता है। इस वर्ग की ओर से विरोध प्रदर्शन भी होंगे।
 
ब्रिटेन के लंबे और दमनकारी इतिहास ने वहां मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले ऐसे लोग भी पैदा किए हैं, जो प्रजा रहते-रहते अब ऊब गए हैं। वे राजा और प्रजा के बीच दूरी का अंत चाहते हैं। चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक का स्वागत करने के लिए वे ऐसे पोस्टर और बैनर तैयार किए बैठे हैं, जिन पर राजशाही का अंत करने के तरह-तरह के नारे लिखे हुए हैं। उन्हें शिकायत है कि ब्रिटेन के राजघराने की अथाह अमीरी उसकी अपनी कमाई नहीं, करदाता प्रजा की मेहनत का फल है।
 
राजघराना क़ानून से ऊपर है
 
राजशाही के इन विरोधियों को सबसे अधिक कष्ट इस बात से है कि ब्रिटेन में 'किंग्स कॉन्सेन्ट' (राजा की सहमति) नाम की एक ऐसी गोपनीय व्यवस्था है, जो राजा या रानी के उत्तराधिकारियों को यह अधिकार देती है कि वे संसद में पेश होने वाले ऐसे विधेयकों को पहले ही देख और उन्हें 'वीटो' (निषिद्ध) कर सकते हैं, जो उनकी चल-अचल संपत्तियों से संबंधित हों।
 
इसका सीधा-सा अर्थ यही हुआ कि जो कोई राजघराने का सदस्य है, वह क़ानून से ऊपर है। रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के जीवनकाल में इस व्यवस्था को लेकर यदि कोई विरोध नहीं हुआ तो इसका यह मतलब नहीं कि उसका कभी विरोध नहीं होगा।
 
यह भी सच है कि रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के निधन के साथ ब्रिटेन में एक प्रकार से एक नया कालखंड, एक नया युग शुरू हुआ है। लोग पिछली परिपाटियों को ही आंख मूंदकर स्वीकार करने से झिझकने लगे हैं। पिछले वर्ष नवंबर में चार्ल्स जब एक आधिकारिक कारण से यॉर्क शहर में गए तो 23 साल के एक युवक नें वहां उन पर अंडे फेंके। उसे 100 घंटे तक सार्वजनिक हित में काम करने की सज़ा सुनाई गई।
 
राजशाही का घटता समर्थन
 
ब्रिटेन की युवा पीढ़ी की दृष्टि से वहां राजशाही, सामाजिक अन्याय का पर्याय है। ब्रिटेन के कई समाजशास्त्री भी मानने लगे हैं कि राजशाही के प्रति जनसमर्थन लगातार घटता जा रहा है। जनमत सर्वेक्षण भी यही रुझान दिखाते हैं।
 
'यूगॉव' (YouGov) नाम की मत सर्वेक्षण संस्था ने 2013 में पाया कि उस समय ब्रिटेन के 75 प्रतिशत नागरिक राजशाही के पक्ष में थे, जबकि इस समय यह समर्थन घटते-घटते 58 प्रतिशत पर आ गया है। सारे संकेत यही हैं कि समय बीतने के साथ यह अनुपात घटता ही जाएगा। 18 से 24 साल तक के युवजनों के बीच यह समर्थन पिछले 10 वर्षों में 64 प्रतिशत से घटते-घटते अब केवल 32 प्रतिशत रह गया है।
 
राजशाही की खटिया खड़ी करने के लिए ब्रिटेन में 'रिपब्लिक' (गणतंत्र) नाम का एक अभियान भी चल पड़ा है। उसके मुखिया ग्रैहम स्मिथ का मानना है कि राजशाही तो राजा चार्ल्स के जीवनकाल में ही ख़त्म हो जाएगी। उनका आंदोलन जनता द्वारा निर्वाचित किसी राष्ट्रपति को ब्रिटेन में सत्ता के शिखर पर देखना चाहता है।
 
राजघराना 'भ्रष्ट' है
 
राजघराने के बारे में स्मिथ का मत है कि यह कहना बहुत दूर की कौड़ी नहीं होगा कि वह 'भ्रष्ट है।' राजघाराने के लोग निजी ख़र्चों के लिए 'हमेशा सार्वजनिक धन का उपयोग करते हैं।' अपने घराने के नाम का लाभ उठाते हुए वे बहुत सारे 'क़ानूनों की अनदेखी करते हैं।' कर इत्यादि तो वे देते ही नहीं।
 
चार्ल्स को वसीयत में जो संपत्ति मिली है, उसके लिए उनके द्वारा कुछेक करोड़ पाउंड कर दिया जाना चाहिए। लेकिन राजा के लिए वसीयत-कर देने का प्रावधान ही नहीं है। ब्रिटेन में राजशाही का कब और कैसे अंत होगा, इस बारे में ग्रैहम स्मिथ आश्वस्त हैं कि जैसे ही जनता का बहुमत इसके पक्ष में होता दिखेगा, देश में एक जनमत संग्रह करवाया जा सकता है। जनमत संग्रह के परिणाम के आधार पर संसद एक विधेयक पारित कर ब्रिटेन को विधिवत गणतंत्र घोषित कर सकती है।
 
चार्ल्स से क्षमा-याचना की मांग
 
राजा चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक को लेकर वहां की जनता के एक वर्ग को ही आपत्ति नहीं है, विशेषकर कैरीबियन सागर वाले उन द्वीप-देशों के लोगों को भी शिकायत है, जो भारत की तरह अतीत में ब्रिटेन के उपनिवेश रह चुके हैं। वे चाहते हैं कि ब्रिटिश उपनिवेशकाल में सदियों तक उन्हें जो नस्लवादी भेदभाव झेलना पड़ा, चार्ल्स उसके लिए क्षमा-याचना करें।
 
अधिकतर कैरीबियाई देश ब्रिटेन की अधीनता से स्वतंत्र होने के बाद भारत की तरह ही ब्रिटिश राष्टमंडल (कॉमनवेल्थ) के सदस्य बन गए। कई ने तो यह भी मान लिया कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड या कैनेडा की तरह ही ब्रिटिश राजमुकुटधारी ही उनका भी राष्ट्राध्यक्ष होगा।
 
किंतु बार्बेडोस ने ब्रिटिश ताज के विरोध में अपना एक अलग राष्ट्रपति चुना। 30 नवंबर 2021 को अपने यहां ब्रिटेन के झंडे यूनियन जैक को नीचे उतार दिया और अपने आपको एक गणतंत्र घोषित कर दिया। कैरिबियाई देशों के बहुत से लोग ब्रिटेन में भी रहते हैं। वे भी यही चाहते हैं कि औपनिवेशिक काल में उनके लोगों को जो भेदभाव और अत्याचार झेलने पड़े हैं, ब्रिटेन का राजा उसके लिए क्षमा-याचना करे।

Edited by: Ravindra Gupta
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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