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  4. what is the condition of Indian muslims who went to pakistan during the partition of 1947
Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 28 मई 2025 (14:37 IST)

1947 के विभाजन के समय पाकिस्तान गए भारतीय मुस्लिमों के क्या हैं हालात?

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Who are the Muhajirs: पाकिस्तानी नेता अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारत से पाकिस्तान गए मुहाजिर समुदाय के लिए भी इसी तरह के समर्थन की आवाज उठाने का अनुरोध किया है। इसके बाद एक बार फिर से मोहाजिरों की चर्चा होने लगी है। दरअसल, भारत को विभाजित करके धर्म के आधार पर एक नया देश बना पाकिस्तान। भारत के कई मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। हो सकता है कि उनके मन में यह रहा हो कि वे अपने इस्लामिक मुल्क में अपने तरीके से जीवन यापन करके तरक्की करेंगे। इस मुसलमानों में से अधिकतर वे मुसलमान थे जो बंटवारे के पक्षधर थे और जिनकी सोच कट्टरंपथी थी, लेकिन 15 साल में ही उन्हें समझ में आ गया कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी।
 
किसे कहते हैं मोहाजिर?
मोहाजिर उन मुसलमानों को पुकारा जाता है, जो विभाजन के समय साल 1947 में भारत से पाकिस्तान आकर बस गए थे। 'मुहाजिर' अरबी मूल का एक शब्द है जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान में विभिन्न नृजातीय मूलों वाले मुस्लिम प्रवासियों और उनके उन वंशजों के लिए किया जाता है, जो बंटवारे के बाद भारत से यहां आए। डब्ल्यूएमसी के अनुसार लगभग 5 करोड़ मुहाजिर कराची, हैदराबाद और सिन्ध प्रांत के अन्य शहरी इलाकों में रहते हैं। ये लो भारत के देश के विभाजन के बाद उत्तरप्रदेश, दिल्ली और मध्यप्रदेश से सरहद के उस पार जाकर बसे थे। ये ज्यादातर पंजाब और सिन्ध प्रांत में बसे थे। सिन्ध प्रांत के कराची और हैदराबाद में मुहाजिर सबसे ज्यादा हैं।
 
क्या हाल है मोहाजिरों के?
भारत के बंटवारे के समय हिन्दुस्तान से पाकिस्तान गए मुसलमानों का दर्द कोई नहीं जानता। अपनी आंखों में नए मुल्क का ख्वाब लेकर गए इन मुसलमानों को आज भी मुहाजिर माना जाता है। उस दौर में जो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) है, वहां भी मुहाजिरों की हालात खराब है। उन्हें बांग्लादेश में बिहारी मुसलमान कहा जाता है।
 
आज के पाकिस्तान में हिन्दुस्तान से गए मुसलमान आबादी का करीब 50 फीसदी हिस्सा बेहद गरीबी और अशिक्षा में जीवन बिता रहा है, जो पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत की राजधानी कराची और आसपास के गांवों में रह रहा है। इनमें से बहुत सारे लोग जिस हालत में आए थे आज भी उसी हालत में कराची की मैली-कुचैली गलियों में जीवन बिता रहे हैं। गरीबी से जूझते ये लोग बड़ी संख्या में कराची के गुज्जर नाला, ओरंगी टाउन, अलीगढ़ कॉलोनी, बिहार कॉलोनी और सुर्जानी इलाकों में रहते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ये पाकिस्तान की आबादी का लगभग 8 प्रतिशत रह गए हैं।
 
कई वर्षों तक स्थानीय सिन्धी मुसलमानों द्वारा उन्हें प्रताड़ित करने और सरकार द्वारा उपेक्षा किए जाने के बाद इन लोगों ने अपना एक संगठन बनाया जिसका नाम है मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम)। कराची में यह मुहाजिरों का प्रभावशाली संगठन है। इसका उद्देश्य है हिन्दुस्तानी मुसलमानों को उनका हक दिलाना। यह एक राजनीतिक संगठन है। स्थानीय सिन्धियों और मुहाजिरों के बीच वर्षों तक खूनी संघर्ष चलता रहा जिसके चलते वहां के लाखों सिन्धी हिन्दुओं ने अपना मुल्क छोड़कर भारत में शरण ले रखी है। विभाजन को आज 78 साल हो गए हैं लेकिन बंटवारे का दर्द किसी न किसी रूप में यहां आज भी महसूस किया जा सकता है। 
 
मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट:
पाकिस्तान की पार्टी मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के संस्थापक अल्ताफ़ हुसैन लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। 1992 से ही वे लंदन से अपनी पार्टी का संचालन कर रहे हैं। एमक्यूएम में सबसे ज़्यादा संख्या मोहाजिरों की है।
 
पाकिस्तान में अपनी घोर अनदेखी और अपमान से उबरने और अपने हितों की सुरक्षा करने के लिए इन मुहाजिर नाम के भारतीय मुसलमानों ने अपनी बहुलता वाले सिन्ध प्रांत को एक अलग स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) संगठन बनाकर अपना स्वतंत्रता संघर्ष शुरू किया था जिससे एक बार समूची कराची और समूचा सिन्ध तक हिल गए थे। यह आंदोलन आज भी जारी है। 
 
लंदन में निर्वासन में रह रहे एमक्यूएम नेता अल्ताफ हुसैन ने पाकिस्तानी मीडिया की तीखी आलोचना करते हुए कहा था कि पाकिस्तान पूरी दुनिया के लिए कैंसर है। उनके इस बयान से पाकिस्तान भड़क गया और वहां की पुलिस ने सैकड़ों मुहाजिरों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
 
एमक्यूएम संस्थापक अल्ताफ हुसैन और अन्य प्रमुख नेता आज निर्वासन में लंदन में रह रहे हैं जिन्हें पाकिस्तान की ओर से निरंतर जान का खतरा बना रहता है। गत दिनों लंदन में ही रह रहे एमक्यूएम के एक अन्य संस्थापक नेता इमरान फारुक की उनके आवास के बाहर ही अज्ञात हमलावरों ने नृशंस हत्या कर दी। इससे पहले अगस्त माह में कराची में एक एमक्यूएम सांसद रजा हैदर की हत्या कर दी गई थी। एक सोची-समझी रणनीति के तहत धीरे-धीरे करके महाजिरों के नेताओं की हत्या किए जाने का दौर जारी है।
 
अल्ताफ हुसैन ने अमेरिका से अपील की है कि वो कराची में एक दल भेजकर पता लगाएं कि वहां किस कदर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग और इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के समर्थक भारत से गए मुसलमानों अर्थात मुहाजिरों (शरणार्थियों) को देशद्रोही मानते हैं। यहां तक कि पाकिस्तानी मुस्लिमों का मानना है कि भारत से आए ये मुस्लिम लोग भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के एजेंट हैं। हाल ही में यूएन के सामने प्रदर्शन कर रहे एक प्रदर्शनकारी मोहम्मद अरशद हुसैन ने बताया कि 5 करोड़ मुहाजिर और उनकी राजनीतिक पार्टियों को पाकिस्तान की रूलिंग पार्टी भारत का एजेंट बताती है। पाकिस्तान द्वारा एमक्यूएम के प्रमुख अल्ताफ हुसैन के खिलाफ उनके कथित भड़काऊ भाषण के लिए राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किए जाने के बाद अमेरिका ने कहा है कि लोकतंत्र में गंभीर विचारों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए न कि दबाया जाना चाहिए।
 
अल्ताफ हुसैन ने कहा कि हमारे साथ पाकिस्तान में अछूतों की तरह बर्ताव किया जाता है। इसकी वजह से हमें इंसाफ और सुरक्षा नहीं मिल पाती। किसी विकल्प के नहीं होने पर हमने काफी सोच-विचार कर दुनिया को अपनी तकलीफों के बारे में बताने का फैसला किया। इसके लिए यूएन से बेहतर जगह नहीं हो सकती थी।
 
बीते दिनों यूके और यूएस में मुहाजिरों की तादाद तेजी से बढ़ी है। इसके पीछे कराची में एमक्यूएम पर पाकिस्तान रेंजर्स की लगातार हो रही एकतरफा कार्रवाई बताई जा रही है। इन संगठनों ने यूके, यूएस और भारत के कई नेताओं से मिलकर अपनी परेशानी पर बात की है। भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस मामले में बातचीत का विकल्प खुला रखा है। यूएस के कुछ बड़े नेताओं ने भी पाकिस्तान से कहा है कि बलूचिस्तानी नागरिक को अपने फैसले लेने दें। (एजेसी)
 
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