सिंधु-सरस्वती घाटी की सभ्यता की प्राचीनता और उसकी अबूझ भाषा का रहस्य अभी भी बरकरार है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह दुनिया की सबसे सभ्य और विकसित सभ्यता थी। सिंधु नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजो दड़ो के अलावा इस संपूर्ण घाटी में और भी कई नगरों के प्रमाण मिले हैं। अभी सरस्वती की सभ्यता के रहस्य पर से पर्दा उठना बाकी है। हालांकि अब तक खोजे गए प्रमाणों से ज्ञात ज्ञान पर एक नजर...
वैदिक सभ्यता जहां मंत्रजापी-पूजापाठी सभ्यता थी और यज्ञ-हवन-पूजन उनकी जीवन पद्धति का अनिवार्य हिस्सा थे, वहीं हड़प्पायुगीन सभ्यता पर ऐसे कोई धार्मिक अतिरंजित प्रभाव दिखाई नहीं देते।
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यह ज़रूर माना जाता है कि सिंधु घाटी में एक सर्वोच्च ईश्वर की परिकल्पना थी और एक सर्वोच्च मातृका देवी की भी। मोहनजोदड़ो के स्नानागार के बारे में माना जाता है कि उसका उपयोग शुद्धिकरण संबंधी किसी धार्मिक रीति के निर्वाह के लिए किया जाता होगा। मोहनजोदड़ो से मिली मुहरों पर पशुपति की आकृति भी अंकित है, जिसका संबंध नवरुद्र शिव से बताया गया है और इसके भी संकेत हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता में मृतकों का दाह-संस्कार किया जाता था। लेकिन मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से कोई भव्य उपासनागृह बरामद नहीं हुए हैं और अमूमन यह आम धारणा है कि हड़प्पाकालीन सभ्यता एक नागरी सभ्यता थी, जिसके जीवन पर धर्म का अधिक हस्तक्षेप नहीं था।
यह रोचक है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1940 के दशक के प्रारंभ में लिखी गई अपनी पुस्तक "द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया" में सिंधु घाटी सभ्यता को एक 'सेकुलर' सभ्यता कहकर पुकारा है। और इस एक संदर्भ में उनसे सहमत होने को जी करता है, क्योंकि "सेकुलरिज्म" राज्यसत्ता द्वारा घोषित "स्वांग" नहीं होता, वह प्रजा द्वारा अपनी जीवन-शैली में दिखाई जाने वाली एक विश्व-दृष्टि होती है।
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