रशिया के इस वक्त चीन, तुर्की और उत्तर कोरिया से संबंध मजबूत हो रहे हैं। यह तीनों ही देश भारत के शत्रु देश हैं, लेकिन दूसरी ओर भारत ने अमेरिका से अपने संबंध को मजबूत किया है। तीसरी ओर तुर्की वैसे तो नाटो देशों का सदस्य देश है परंतु हाल ही में उसने कई मामलों में रशिया से हाथ मिलाकर रखा है। तुर्की रूस के अमित्र देशों की सूची में नहीं है, लेकिन वह मित्रों की लिस्ट में भी नहीं है। रशिया के मित्र और तटस्थ देशों की लिस्ट अलग-अलग है। तुर्की ने भी रशिया से S- 400 जैसे एयर डिफेंस सिस्टम खरीद रखे हैं। इसके बावजूद तुर्की ने यूक्रेन का पक्ष लेकर रशिया को भड़का भी रखा है। अब हम जानते हैं कि चीन और तुर्की का समर्थक रशिया क्या सच में भारत का दोस्त है?
अमेरिका के कट्टर शत्रु है रशिया और चीन। यदि तुर्की ने पाकिस्तान का साथ देकर भारत को भड़का दिया है तो क्या भारत यदि अमेरिका से अपने संबंध को मजबूत रखता है तो रशिया और चीन खफा नहीं होंगे? यह सवाल सभी के मन में जरूर होगा।
रशिया और चीन ने अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्र में उन्नति के लिए हाथ मिलाया है। दोनों देश अब चंद्रमा पर ऑटोमेटिक न्यूक्लियर एनर्जी स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसी तरह का कार्य भारत भी अमेरिका के साथ मिलकर करने की तैयारी कर रहा है।
संकट काल में नहीं दिया अमेरिका ने साथ:
भारत के संबंध अमेरिका और रशिया के साथ रहे हैं लेकिन जब भी संकट काल आया तो अमेरिका ने भारत का साथ नहीं दिया। रशिया संकट काल में हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा। यदि इतिहास के पन्ने पलटकर देखेंगे तो 1971 की लड़ाई में रशिया ने भारत का साथ दिया था जबकि अमेरिका ने पाकिस्तान का। उस दौरान रूस ने भारत के साथ सैन्य संधि की और संयुक्त राष्ट्र में भी भारत का समर्थन किया।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय जब परमाणु परीक्षण किया गया तब अमेरिका ने इसका विरोध किया लेकिन रशिया ने इसका समर्थन किया। इसी प्रकार जब कारगिल युद्ध हुआ तो अमेरिका ने भारत पर इस युद्ध को रोकने का दबाव बनाया ताकि वह पाकिस्तान को बचा सके लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका के सामने नहीं झुके। इसके बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को पहली बार फटकार लगाई। इसके विपरीत, रूस ने भारत को हथियार, महत्वपूर्ण जानकारी और रणनीतिक सहयोग प्रदान किया।
रूस ने कई बार संयुक्त राष्ट्र में भारत का कई मामलों में समर्थन किया है चाहे वह कश्मीर का मुद्दा हो या पाकिस्तान का। संयुक्त राष्ट्र में भी रशिया ने अपने वीटो का उपयोग करके भारत को कई बार बचाया। रूस ने भारत को बेहद महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण प्रदान किए हैं, जैसे कि सुखोई-30 वायुसेना विमान, तंक और युद्ध नौसेना उपकरण। रूस और भारत के बीच आर्थिक सहयोग के कई क्षेत्र हैं, जैसे कि ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, और व्यापार। भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा जिसके चलते ही हाल ही में भारत ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल से अपने शहरों की रक्षा की। भारत के युद्धक साजो सामान में आधे से ज्यादा स्टॉक रूसी मूल का है।
भारत का अमेरिका की ओर झुकाव:
वर्ष 2014 के बाद से वर्तमान में भारत का अमेरिका की ओर झुकाव बड़ा है, लेकिन जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर होता है ऐसे समय अमेरिका का रूख पाकिस्तान की ओर ही ज्यादा रहता है। ऐसे में भारत को समझना होगा कि यदि रूस को लगेगा की उसका हित अब भारत के साथ नहीं है और वह अमेरिका का चेला बन गया है तो वो चीनी ब्लॉक में पूरी तरह चला जाएगा। ऐसे में भारत पूरे विश्व में अकेला पड़ जाएगा, क्योंकि अतीत में और वर्तमान में दोनों ही समय में रशिया आज भी भारत के साथ खड़ा है भले ही उसकी दोस्ती चीन से हो या तुर्की से लेकिन जब भी भारत पाकिस्तान के युद्ध की बात होगी तो रशिया ही साथ देगा।
अमेरिका की दोहरी नीति:
अमेरिका की विदेश नीति क्षेत्रों के अनुसार विभाजित है। मध्य एशिया में वह यहूदियों के साथ और मुस्लिमों के विरोध में है तो दूसरी ओर दक्षिण एशिया में मुस्लिमों के साथ और हिंदू एवं बौद्धों के विरोध में खड़ा है। उसने 80 के दशक में मुजाहिदीनों का उपयोग करके अफगानिस्तान में सोवियत संघ को टक्कर देकर तालिबान की सत्ता कायम की जिसमें पाकिस्तान ने उसका भरपूर साथ दिया। इसी के पुरस्कार के रूप में उसने 90 के दशक में कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान की हर हरकत को नजरअंदाज किया। दूसरी ओर उसने रूस में चेचन विद्रोहियों को अप्रत्यक्ष रूप से भड़काया और तीसरी ओर चीन के शिनजियांग प्रांत में पाकिस्तान के माध्यम से उइगर मुस्लिमों को विद्रोही बनाया। यानी उसने अप्रत्यक्ष रूप से भारत के कश्मीर, रशिया के चेचन और चीन के शिनजियांग प्रांत को अस्थिर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
उल्लेखनीय है कि चेचन्या रूस के दक्षिणी हिस्से में स्थित गणराज्य है, जो मुख्यतः मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। स्थानीय अलगाववादियों और रूसी सैनिकों के बीच बरसों से जारी लड़ाई ने चेचन्या को बर्बाद कर दिया है। कुछ वर्षों पूर्व ही पुतिन ने स्पष्ट कर दिया कि पश्चिम को चेचन्या के मामले में हस्तक्षेप की अपेक्षा इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि यदि इस्लामी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को रोका नहीं गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
चीन का प्रांत शिनजियांग एक मुस्लिम बहुल प्रांत है। जबसे यह मुस्लिम बहुल हुआ है तभी से वहां के बौद्धों, तिब्बतियों आदि अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल हो गया है। अब यहां छोटे-छोटे गुटों में आतंकवाद पनप चुका है, जो चीन से आजादी की मांग करते हैं। चीन के शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर समुदाय के लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं। पाकिस्तान इससे इनकार करता रहा है कि उसका इसमें कोई हाथ नहीं लेकिन पाकिस्तान के नॉर्दन रीजन से ही शिनजियांग में हमले की प्लानिंग बनती रही है। चीन यह सब जानते हुए भी पाकिस्तान के साथ इसलिए खड़ा है क्योंकि उसे भारत के खिलाफ दूसरे छोर का साथी चाहिए। दूसरी ओर अमेरिका भी पाकिस्तान के साथ है। ऐसे में भारत को यह समझना होगा कि उसका दोस्त सिर्फ रशिया ही है। यानी भारत के ऊपर ही यह निर्भर है कि भविष्य में भी रशिया उसका दोस्त रहेगा या नहीं।
- Anirudh Joshi