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चाबहार समझौता, चीन-पाक धुरी को माकूल जवाब

चाबहार समझौता, चीन-पाक धुरी को माकूल जवाब - Chabahar port agreement, Narendra Modi, Hassan Rouhani, Iran's government, Government of India
ईरान से चाबहार बंदरगाह समझौता कर भारत ने पाकिस्तान और चीन को माकूल जवाब दिया है। यह भारत के लिए सामरिक और व्यावसायिक दृष्टि से काफी अहम है। इस समझौते के बाद भारत की पहुंच न अफगानिस्तान तक बल्कि मध्य एशिया के अन्य देशों तक हो जाएगी। सबसे अहम बात यह है कि अब अफगानिस्तान जाने के लिए भारत को पाकिस्तान की जरूरत नहीं रहेगी। 
चाबहार का सामरिक महत्व बहुत अधिक है और इसके अंतर्गत अतिरिक्त द्विपक्षीय रिश्तों को बल मिलेगा और वर्ष 2003 में हस्ताक्षरित भारत-ईरान निवेश प्रतिब‍द्धताओं को गहरा बनाएगा और सेज समझौते के तहत तीनों देशों- ईरान, भारत और अफगानिस्तान को इसका कारोबारी लाभ मिलेगा। इस समझौते से पहले की कहानी और भी दिलचस्प है। एक समय पर भौगोलिक दृष्टि से कठोर लेकिन सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्व अफगानिस्तान दो बड़े साम्राज्यों की दिलचस्पी का केन्द्र था।
 
इस भूभाग का लाभ उठाने के लिए उपनिवेशवादी ब्रिटेन और जार के नेतृत्व में रूस इसका लाभ उठाना चाहते थे। बाद में, यह विरासत के जरिए अमेरिका बनाम सोवियत संघ की जोर आजमाइश का अखाड़ा बना था। इस इलाके में पहले मुजाहिदीन पनपे और बाद में यहां तालिबान का परीक्षण स्थल बना रहा और अंत में यह चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ की धुरी बन गया। हाल ही में, चीन-पाकिस्तान ने 46 बिलियन डॉलर से एक आर्थिक गलियारा बना दिया। इसकी शुरुआत चीन के काशी से लेकर पाकिस्तान में बलूचिस्तान के अरब सागर में ग्वादर पोर्ट तक है। चीन इस तरह पाकिस्तान के अशांत प्रदेश बलूचिस्तान तक पहुंच गया है। 
 
ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी में भारत-ईरान-अफगानिस्तान ने चाबहार का विकास किया। वर्ष 2003 में समझौते के तहत भारत ने करीब 218 किमी लम्बी सड़क बिछायी और अफगानिस्तान के डेलारम को उत्तरी ईरान की सीमा पर जरांज से जोड़ा। वर्ष 2003 की संधि के तहत भारत के बॉर्डर रोड्स आर्गनाइजेशन ने जिस 218 किमी लम्बे राजमार्ग का निर्माण किया था और इस पर करीब 600 करोड़ की राशि खर्च की। सड़क को बनने से रोकने के लिए पाक समर्थित तालिबानियों के हमलों में 130 से ज्यादा मजदूर मारे गए।
 
जबकि ईरान ने जरांज से चाबहार बंदरगाह तक सड़क बनाई जो कि ओमान की खाड़ी पर स्थित इस बंदरगाह को पूरा कराया। इसे बनाने के लिए भारत ने जेटी और बर्थस बनाने के लिए 15 करोड़ रुपए की राशि खर्च की। साथ ही, इस परियोजना को पूरी करने के लिए 40 करोड़ रुपए मूल्य की इस्पात की पटरियां भी दीं। जब चाबहार पूरी तरह से विकसित हो जाएगा तो चारों ओर से जमीन से घिरे अफगानिस्तान को ईरान के जरिए एक वैकल्पिक बंदरगाह, बुनियादी संरचनाएं और संपर्क का रास्ता मिल जाएगा। इसके साथ ही, भारत और अफगानिस्तान को ओमान की खाड़ी के इस बंदरगाह पर बड़े पैमाने पर कार्गो हैंडलिंग सुविधाएं भी मिल जाएंगी। 
 
इस प्रकार तीनों देशों को जमीनी और समुद्री मार्ग से एक दूसरे तक पहुंच उपलब्ध हो जाएगी। यहां अरब देशों से तेल, गैस जैसे संसाधनों को बड़े पैमाने पर हासिल किया जा सकेगा तो मध्य एशिया के प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न देशों तक पहुंच हो जाएगी। इसके साथ ही, दोनों पक्षों के बीच प्रतिद्वंद्विता भी शुरू हो जाएगी। प्रभुत्व जमाने के इस खेल में पाकिस्तान और चीन का गठजोड़ चाबहार बंदरगाह को सफल होने से रोकने के लिए आतंकवादी हमलों से लेकर कूटनीति तक के सभी हथियारों का इस्तेमाल करेगा हालांकि तीनों देशों किसी भी तरह से इस परियोजना पर आगे बढ़ने का फैसला लिया है। 
 
तेज विकास का रास्ता तय करने के लिए भारत ने 6.5 बिलियन डॉलर के भुगतान की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। यह ईरान से खरीदे गए कच्चे तेल का मूल्य है, जिसे टर्की के हालबैंक के अनुरोध के अनुरूप यूरो में भुगतान किया जाएगा।
 
उल्लेखनीय है कि भारत ने ईरान से यह क्रूड तक खरीद लिया था जब अमेरिकी सरकार ने ईरान पर परमाणु और कारोबारी प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके सभी प्रकार भुगतानों पर रोक लगा दी गई थी। अब यह प्रतिबंध पूरी तरह से हटा लिए गए हैं, लेकिन जनवरी, 2016 तक ईरान के पास नकदी का संकट था। ईरान न केवल पुराने भुगतानों का निराकरण करेगा वरन भारत के नए प्रस्तावित निवेश का भी स्वागत करेगा।  
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