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  4. weather becomes a villain for the farmers, these measures can reduce the loss
Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

किसानों के लिए खलनायक बनता मौसम, इन उपायों से कम हो सकता है नुकसान

Agriculture
अतिवृष्टि हो या अनावृष्टि, अत्यधिक गर्मी हो या हाड़ जमा देने वाली ठंड, किसानों को तो हर हाल में नुकसान ही उठाना पड़ता है। अब ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते किसानों के सामने नया खतरा मंडरा रहा है। लगातार बढ़ते तापमान से उपज का उत्पादन और गुणवत्ता पर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। रबी की फसल उम्मीद से कम हो सकती है। गर्मी से तो फसलों को नुकसान कम हुआ, लेकिन कई राज्यों में बेमौसम बारिश ने रबी की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। अचानक आई बेमौसम बारिश और ओलों ने फसलों को आड़ा कर दिया। 
विशेषज्ञों की मानें तो गर्मियों की फसलों के लिए अनुकूल तापमान 35 डिग्री सेल्सियस होता है। यदि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंचता है, तो इससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है। मुंबई इलाके में ही तापमान मार्च माह में 2 बार 40 डिग्री के आसपास पहुंच चुका है। ज्यादा गर्मी के कारण मौसमी सब्जियों में कीट और रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। इससे सीधा नुकसान किसानों को ही होता है। चूंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। ऐसे में उपज कम होती है तो व्यापार पर भी इसका नकारात्मक असर होता है। 
 
हालांकि सरकार इस मामले में सीधे कहने से कुछ भी बच रही है, लेकिन साल 2022 के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में हुई वृद्धि ने 9 राज्यों- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू -कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में फसलों, फलों, सब्जियों और जानवरों को बुरी तरह से प्रभावित किया था। साल 2022 के मार्च और मार्च महीने में ज्यादा तापमान के कारण गेहूं और आम की पैदावार पर बुरा असर पड़ा था।
सरकार को रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद : केन्द्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने हाल ही में कहा था कि तापमान थोड़ा अधिक होने के बावजूद गेहूं की फसल को नुकसान होने की आशंका नहीं है। उन्होंने भरोसा जताया कि जून को समाप्त होने वाले इस फसल वर्ष (2022-23) में 11.2 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन होगा। चोपड़ा के मुताबिक सूखे गेहूं या गेहूं की फसल के बारे में प्रतिकूल परिस्थितियों की कोई रिपोर्ट नहीं है। तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, लेकिन तथ्य यह है कि यह गेहूं पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा।
 
कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, इस फसल वर्ष 11 करोड़ 21.8 लाख टन गेहूं उत्पादन होने की उम्मीद है। अत्यधिक गर्मी के कारण भारत का गेहूं उत्पादन फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में पिछले वर्ष के 10 करोड़ 95.9 लाख टन से घटकर 10 करोड़ 77.4 लाख टन रह गया था। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, गर्मी का फसल पर कोई असर नहीं होता।
2050 तक खाद्य आपूर्ति में कमी : वैश्विक तापमान और भोजन की स्थिति पर एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग से पड़ने वालों प्रभावों के चलते 2050 में पानी की कमी और गर्मी के कारण खाद्य आपूर्ति में 16 फीसदी से अधिक की कमी हो सकती है। इसके उलट देश की जनसंख्या में भी वृद्धि होगी। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए अभी से ही रणनीति तैयार करनी होगी। 
 
होलकर विज्ञान महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. राम श्रीवास्तव कहते हैं कि निश्चित ही बढ़ते तापमान का फसलों पर विपरीत असर होता है। यदि अल्ट्रावायलेट किरणें पृथ्वी पर आएंगी तो फसल का क्लोरोफिल खत्म होगा। पत्तियां झड़ जाएंगी। इससे फसलों के उत्पादन पर भी असर होगा। 
हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि इस संकट का सबसे ज्यादा असर चीन पर होगा, जहां खाद्य आपूर्ति में 22.4 फीसदी की कमी आ सकती है। दक्षिण अमेरिका में यह कमी 19.4 प्रतिशत तक हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई एशियाई देश, जो इस समय खाद्य निर्यातक हैं, वे 2050 तक खाद्य आयातक बन जाएंगे। पानी की बढ़ती मांग और सिकुड़ते जल स्रोतों के कारण जल संकट का सामना भी करना पड़ सकता है। 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत जल संकट के मामले में 13वें नंबर पर रहा था। 
 
कृषि वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश चंद्र शर्मा कहते हैं कि वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड बढ़ने के कारण गर्मी बढ़ती है। पहले पहाड़ों और मैदानों में पेड़ों की संख्या काफी ज्यादा थी। दूसरी ओर, फैक्ट्रयां, मिलें, वाहन लगातार कार्बन का उत्सर्जन कर रहे हैं। यही कारण है कि गर्मी भी बढ़ लगातार बढ़ रही है। डॉ. शर्मा कहते हैं कि भारत की 60-70 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है। अधिक तापमान का फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर असर पड़ता है। 
डॉ. शर्मा कहते हैं कि अत्यधिक गर्मी से फसलों का दाना छोटा रह जाता है। आयरन और जिंक में कमी आ जाती है। इसका भी उत्पादन पर असर होता है। देर से बोई गई फसलों को ज्यादा नुकसान होता है। अधिक तापमान से फसलों पर रोग और कीटों का आक्रमण भी ज्यादा होता है। 
 
हजारों किसानों की फसल खराब : मध्यप्रदेश और राजस्थान में बेमौसम बारिश और ओलों के कारण हजारों की संख्या में किसानों की फसलें खराब हुई हैं। मध्यप्रदेश के ही 19 जिलों में 500 से ज्यादा गांवों में करीब 34 हजार किेसानों की लगभग 39 हजार हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचा है। कई जिलों में तो किसानों की 25 फीसदी से ज्यादा फसल खराब हो गई है। 
 
दूसरी ओर राजस्थान में भी जीरे और ईसबगोल की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। एक अनुमान के मुताबिक किसानों को बेमौसम बारिश से 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान होने की आशंका है। 
 
कृषक ईश्वर सिंह चौहान का कहना है कि मौसम नवंबर और दिसंबर में काफी गर्म रहा। इससे फसल को नुकसान हुआ। जनवरी में ठंड से फसल संभली, लेकिन मार्च में पानी और ओले गिरने से फसल आड़ी पड़ गई और उससे किसानों को काफी नुकसान हुआ। कटाई से ठीक पहले आई बारिश के कारण फसल का उत्पादन 20 से 25 प्रतिशत कम हो सकता है।
 
उन्होंने कहा कि किसानों को मौसम की मार तो झेलनी ही पड़ती है, फसल के समय अनाज के दामों में भी गिरावट आ जाती है। गेहूं के भाव जो कुछ समय पहले 2500 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास थे, अब वहीं गेहूं 1800 से 2000 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। 
 
विपरीत मौसम के असर से निजात पाने के लिए किसान कुछ उपाय भी कर सकते हैं। इससे न सिर्फ उनका उत्पादन बढ़ेगा बल्कि खर्चे भी कम किए जा सकते हैं। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी स्वीकार किया है कि जलवायु परिवर्तन जैसी विभिन्न चुनौतियां आज हमारे सामने हैं। प्राकृतिक आपदाओं से किसानों की खड़ी फसल को होने वाले नुकसान की चुनौती का भी हम सामना कर रहे हैं। 
 
किसानों को नुकसान से बचने के उपाय बताते हुए डॉ. शर्मा कहते हैं कि कृषि क्रियाओं को समय पर संपन्न करने के साथ ही खेतों में क्यारी बनाकर पानी दें, ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें। इससे कम पानी में अच्छी फसल ली जा सकती है। जैविक एवं हरी खाद का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। जैविक खाद मिट्‍टी की संरचना को सही रखती है, साथ ही लंबे समय तक मिट्‍टी में नमी बनी रहती है। रासायनिक खाद का कम से कम उपयोग करें। कम समय में अधिक उपज देने वाली फसलों की बुवाई करें। 
 
उन्होंने कहा कि शासन के स्तर पर भी प्रयास किए जाने चाहिए ताकि कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन कम हो। इसके लिए पेड़-पौधे अधिकाधिक मात्रा में लगाए जाने चाहिए। साथ फैक्ट्रियों और वाहनों से निकलने वाले कार्बन का उत्सर्जन कम हो, इस दिशा में भी प्रयास किए जाने की जरूरत है। 
 
दरअसल, यह समस्या सिर्फ किसान भाइयों की ही नहीं है। यदि समय रहते हमने पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो इसका असर हमें हर क्षेत्र में देखने को मिलेगा। बढ़ते तापमान का असर न सिर्फ अनाज और दलहन की फसलों पर बल्कि फल और सब्जियों पर भी देखने को मिल सकता है।
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