भोपाल। कोरोना के चलते सीबीएसई समेत राज्यों की 12वीं बोर्ड की परीक्षाएं रद्द कर दी गई है। 12वीं बोर्ड के बच्चों का रिजल्ट अब उनके पिछले प्रदर्शन के आधार पर घोषित होगा। परीक्षाओं के रद्द होने के बाद बच्चों और अभिभावक के बीच दो तरह के रिएक्शन देखे जा रहे है। करियर के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण 12वीं बोर्ड की परीक्षा रद्द होने से कुछ ऐसे बच्चे जो साल भर से एग्जाम को लेकर कड़ी मेहनत कर रहे थे वह अब डिप्रेशन और अवसाद में भी नजर आ रहे है।
वेबदुनियासे बातचीत में मनोचिकित्सक और काउंसलर डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कोरोना काल में सामान्य तौर पर बच्चे पहले से ही किसी न किसी तरह एक डिप्रेशन के वातावरण से घिरे हुए है,ऐसे में अब जब 12 वीं बोर्ड की परीक्षाओं को रद्द किया गया है तो इसका असर बच्चों पर देखने को मिलेगा। वह कहते हैं कि बच्चे पूरे साल बोर्ड एग्जाम की तैयारी कर अच्छे परसेंटेज लाकर टॉप की यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने को सोच रहे थे,ऐसे में अब परीक्षा रद्द होने से उनमें निराशा होना स्वाभाविक भी है।
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि कोरोना काल का सीधा असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है और ऐसे बच्चे जो 12वीं की परीक्षा देने वाले थे और अपने कॉरियर को प्लान कर रहे थे उन पर बहुत निगेटिव प्रभाव पड़ा है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते मेडिकल, इजनियिरिंग के एंट्रेस एग्जाम लगातार टलते जा रहे है और यूनिवर्सिटीज में एडमिशन की प्रकिया भी लेट है ऐसे में पैरेंट्स को संवाद बनाए रखना बेहद जरुरी है।
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि बच्चों में अपने कैरियर के प्रति एक अलग तरह की एंजाइटी होती है और वह अपने नंबरों और परसेंटेज को लेकर बहुत अधिक चिंतित होते हैं और अचानक से बच्चों में अनिद्रा और घबराहट की शिकायतें बहुत बढ़ जाती है। ऐसे में पैरेटेंस की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है और उनको बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं ऐसे में बच्चों समझना होगा कि यह वह समय है जब परीक्षा से ज्यादा जीवन की परीक्षा का समय है। ऐसे में अब पैरेंटस की भूमिका बहुत बढ़ जाती है कि वह अपने बच्चों को समझाए।
डॉक्टर सत्यकांत कुछ महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में कोरोनाकाल ने हमको कई सबक दिए है और यह सोचने का मौका भी दिया है कि क्यों न हम परसेंटेज से ज्यादा स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान दें। वह कहते है कि यूनिवर्सिटीज से ग्रेडिग सिस्टम को खत्म कर एक सामान स्तर पर लाने के लिए सरकारों और शिक्षाविदों को कोई रणनीति बनानी ही होगी।
वहीं डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि अब सरकारों को स्कूल,कॉलेज को कैसे शुरु करे इस पर मंथन करना होगा क्यों कि ऑनलाइन शिक्षा से शिक्षा की गुणवत्ता तो प्रभावित हुई है वहीं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके लिए सरकार को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ स्कूलों को खोलने पर विचार करना चाहिए।
वह उदाहरण देते हुए कहते हैं कि बंगलोर के नामी कॉलेज में 2020 में एमबीए में दाखिला लेनी वाली पूजा इस बात से काफी परेशान हैं कि उनका पूरा कोर्स ऑनलाइन ही हो जाएगा,व्यावहारिक ज्ञान लिए बिना ही उनकी डिग्री पूरी हो जाएगी।
भविष्य की आशंका को लेकर बच्चें निराशा, चिड़चिड़ेपन एवं फ्लैशबैक जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन रोगों के सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं मन का लगातार दुखी रहना,चिंता से घिरे रहना, नींद की आदतों में बदलाव, गुस्सा, ओवरथिंकिंग, स्वयं को नुकसान पहुंचाने के विचार आना आदि।