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Written By ND

भाजपा-कांग्रेस में टक्कर

भाजपा-कांग्रेस में टक्कर -
अंबिकापुर। नक्सलवाद व परिसीमन से बदली परिस्थितियों में गृहमंत्री रामविचार नेताम और कांग्रेस उम्मीदवार बृहस्पति सिंह के बीच मुकाबला है।

सरगुजा जिले के पाल विधानसभा सीट से प्रदेश के गृहमंत्री नेताम लगातार चार बार चुनाव जीतकर विधानसभा तक पहुँचने में कामयाब रहे हैं। नये परिसीमन में उनकी सीट विलोपित हो गई। अब वे आरक्षित सीट रामानुजगंज से चुनाव लड़ रहे हैं। सीट विलोपित होने के बाद नेताम क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने विकास के कार्य भी खूब कराए हैं और इसी को चुनावी मुद्दा बनाया है। इसके बाद भी उनके लिए पाँचवीं बार विधायक बनना मुश्किल साबित हो रहा है। इसके कारण नक्सलवाद की समस्या का बढ़ना है। पिछले दिनों हुई नक्सली वारदात से क्षेत्र में माहौल और भी गर्म हो गया है।

इस मुद्दे को कांग्रेसी भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। बलरामपुर में दो महिलाओं की हत्या भी क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। कांग्रेसी इस मुद्दे को प्रदेश की कानून व्यवस्था से जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं। प्रचार के अंतिम दौर में सिंह को एक-एक गाँव जाना पड़ रहा है। पिछले चुनाव में जरूर कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी, लेकिन इस बार पार्टी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नेताम को टक्टर देने वाले बृहस्पति सिंह को ही टिकट दे दिया है।

इस सीट में 1 लाख 45 हजार 2 सौ 44 मतदाता हैं। जिसमें आदिवासी मतदाताओं की संख्या लगभग 70 हजार है। इसके अलावा नये परिसीमन के बाद उनके क्षेत्र में मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं की संख्या भी 15 प्रतिशत से अधिक हो गई है। वाड्रफनगर व बलंगी का कुछ हिस्सा प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र में शामिल हो गया है। यहाँ पर नेताम की स्थिति पिछले चुनाव में काफी मजबूत थी। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार सिंह को भीतरघातियों से खतरा है। इसके अलावा बसपा के बालमुकुंद सिंह व सपा के मिखाईल एक्का ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। हालांकि क्षेत्र में बसपा का ज्यादा जोर नजर नहीं आ रहा है।

सीतापुर में बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा हावी : सरगुजा जिले की एक और आरक्षित सीट सीतापुर में बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा हावी नजर आ रहा है। यहाँ भाजपा ने जशपुर क्षेत्र के गणेश राम भगत को और कांग्रेस ने वर्तमान विधायक अमरजीत भगत को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने से नाराज प्रो. गोपाल राम एक बार फिर चुनाव मैदान में है। उन्होंने 1998 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से ही जीता था। इस बार भी वे कांग्रेस व भाजपा उम्मीदवार पर भारी पड़ रहे हैं। कांग्रेस व भाजपा के कार्यकर्ता भी बाहरी प्रत्याशी उतारने से नाराज हैं, लेकिन खुलकर कोई भी विरोध करने की स्थिति में नजर नहीं आ रहा है। (नईदुनिया)