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Last Updated : बुधवार, 22 अक्टूबर 2014 (17:07 IST)

कभी बच्चों के मन को भी पढ़ें...

कभी बच्चों के मन को भी पढ़ें... - Budh Vichar
पिछले सप्ताह हमने देखा कि किस प्रकार करोड़ों लोग अपने पाँच-पाँच मिनट का श्रम देश के हित के लिए खर्च करें तो कई वर्षों का परिश्रम इकट्ठा हो जाएगा। इसी बात को हमारे प्रधानमंत्री अक्सर दोहराते हैं। वे कहते हैं कि यदि देश के सवा-सौ करोड़ लोग एक कदम चलें तो देश सवा-सौ करोड़ कदम आगे बढ़ जाएगा। 
 
आइए आज से इस लेख-श्रृंखला को एक नया मोड़ देते हैं। मेरे-आपके जैसे लोगों की प्रतिदिन की ज़िंदगी में झांक कर देखते हैं कि हम उनकी गलतियों से या अच्छे कामों से क्या सीख सकते हैं।  
आइए, आपको मिश्रा जी के परिवार से मिलाता हूँ।  
 
मिश्रा जी एक सरकारी विभाग में छोटे-मोटे अधिकारी हैं। एक बेटी है नीता जिसकी आयु बीस साल है। वह हिस्ट्री में एमए कर रही है। एक बेटा है विवेक जो 27 वर्ष का है और तीन साल से लंदन में काम करता है। 
 
आज दीवाली की छुट्टी है और नीता सुबह से कमरे में बैठकर अपने लैपटाप पर कोई इंगलिश फिल्म देख रही है। श्रीमती मिश्रा रसोई में नाश्ता तयार कर रही थीं जब उन्हें ध्यान आया कि दिवाली के लिए दीये तैयार करने हैं। उन्होंने सोचा कि नीता को कहेंगी एक ट्रंक खोलकर उसमें से दीये निकाले और उन्हें साफ करके चमकाकर रात को जलाने के लिए तैयार करे। 
 
लेकिन जब श्रीमती मिश्रा नीता के पास गईं तो वह लैपटॉप पर कोई इंगलिश फिल्म देख रही थी। उसकी पीठ श्रीमती मिश्रा की ओर थी और उसने सुनने के लिए कानों में ईयर-बड भी लगा रखे थे। इसलिए जब श्रीमती मिश्रा ने पुकारा तो नीता ने सुना नहीं और वह मग्न हो कर फिल्म देखती रही। 
श्रीमती मिश्रा ने एक-दो बार पुकारा। उन्हें गुस्सा आया। उन्होंने खींचकर नीता के कानों में लगी ईयर-बड निकालीं और चिल्लाकर बोलीं, “सुबह, सुबह शुरू हो जाती हो कंप्यूटर ले  कर! घर में क्या हो रहा है इसकी खबर भी कुछ है?“
 
नीता उठ खड़ी हुई और आंखें निकाल कर चिल्लाई , “माम, वाट्स रांग विद यू?”
 
इसके बाद माँ-बेटी की जमकर तू-तू मैं-मैं हुई। श्रीमती मिश्रा ने कहा, “जब हम लोग तेरी उम्र के थे तो अपनी माँ के सामने ज़ुबान खोलने की जुर्रत नहीं पड़ती थी। थर्राते थे हम सब उनसे!”  
 
नीता पलट कर बोली, “वो अलग समय था माँ! तब बच्चे गूंगे-बहरे थे। पुतलों की तरह नचाओ तो नाचते थे। आज के पढ़े-लिखे बच्चों से क्या तुम यह उम्मीद लगाती हो कि वे हर बात तुम से पूछ के करें?”
 
मिश्रा जी शरीफ आदमी हैं। माँ-बेटी की लड़ाई उन्हें अच्छी नहीं लगती। वे ऐसी  स्थिति में उठकर अक्सर अंदर चले जाते हैं और टीवी पर खबरें सुनने लगते हैं। 
 
थोड़ी देर की गहमा-गहमी के बाद श्रीमती मिश्रा “एक दिन भुगतेगी!” यह कहकर रसोई में चली गईं। नीता कुर्सी पर बैठ कर छत को ककटकी लगाकर देखने लगी जैसे बड़ी गहराई से किसी विषय पर सोच रही हो। फिर अचानक उसने अपना मोबाइल फोन घुमाया और किसी से बात करने लगी। 
 
कुछ समय बाद जब श्रीमती मिश्रा नीता को नाश्ते के लिए बुलाने आईं तो उन्होंने देखा कि वह फोन पर है। श्रीमती मिश्रा जान गईं कि वह टिंकू से बात कर रही होगी। श्रीमती मिश्रा को उसका टिंकू से बात करना बिल्कुल नहीं भाता। वैसे तो नीता कहती है कि टिंकू केवल उसका दोस्त है, लेकिन सभी जानते हैं कि बात काफी आगे बढ़ चुकी है। 
 
पहले नीता को भी टिंकू अच्छा नहीं लगता था। उसे लगता था कि वह लोफ़र-सा है। वह नीता से हेलो-हाय करने की कोशिश करता तो वह डपट देती। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि जब भी वह किसी बात से परेशान होती तो टिंकू उससे अच्छी बातें करता और उसके मन की परेशानी को दूर कर देता। रोती-रोती को हँसा देता। उसे यह एहसास दिलाता कि वह बहुत गुणी है और अच्छे स्वभाव की है। धीरे-धीरे टिंकू नीता के परेशानी के क्षणों में एक दवा जैसा बन गया। 
 
टिंकू की बहुत सी आदतें अभी भी नीता को पसंद नहीं हैं। वह जब दोस्तों के साथ पीने बैठता है तो सब सीमाएं तोड़ देता है। नीता के अलावा दूसरी लड़कियों में भी उसकी रुचि नीता को तंग करती है। कई बार तो उसने टिंकू से रिश्ता तोड़ने की भी सोची है, लेकिन केवल एक बात उसे फिर से उसके पास खींच लाती है- वह उसे हर तरह की स्थिति में से उबार कर बाहर निकालता है और उसे बहुत अच्छा महसूस कराता है। चाहे नीता की ही गलती रही हो, फिर भी उसे ऐसा महसूस कराता है जैसे गलती उसकी नहीं किसी दूसरे की थी। 
 
इस समय वह टिंकू के साथ फोन पर अपनी ही माँ की बुराई कर रही थी। श्रीमती मिश्रा भी जानती थीं कि उन्हीं के बारे बात हो रही है। 
 
विश्लेषण : इस सारे विषय पर आपके विचार क्या हैं, बताइए। क्या ऐसा नहीं लगता कि नीता टिंकू की ओर सिर्फ इस लिए खिंच रही है कि वह परेशानी के समय उसके मानसिक घावों की मरहम-पट्टी करता है? यदि नीता और टिंकू का रिश्ता एक दिन शादी में बदल गया तो क्या टिंकू का यह गुण दोनों को अच्छा दाम्पत्य जीवन देने के लिए काफी होगा? हमारे इर्द-गिर्द क्या बहुत से ऐसे रिश्ते नहीं बन जाते जो केवल एकाध ज़रूरत पर ही आधारित होते हैं और इसी कारण जल्दी ही उनमें दरारें दिखाई देने लगती हैं?
 
श्रीमती मिश्रा को नीता का टिंकू से रिश्ता अच्छा नहीं लगता। लेकिन, क्या श्रीमती मिश्रा ने कभी अपनी बेटी के साथ सहेली की तरह बैठकर उसके मन को पढ़ने की कोशिश की कि उसकी बेटी को टिंकू की दोस्ती की आवश्यकता क्यों महसूस होती है? क्या उसकी इस भावनात्मक आवश्यकता को श्रीमती मिश्रा ही पूरा नहीं कर सकतीं? शायद ऐसा करने के लिए उन्हें सबसे पहले यह डायलाग छोड़ना पड़ेगा कि वह अपने जमाने में कैसी आज्ञाकारी थीं। अक्सर हम अपने बच्चों को यह रास्ता दिखाने की बजाए कि उन्हें कैसा बनना चाहिए इस बात के लिए कोसते हैं कि उनमें क्या-क्या खराबियाँ हैं। 
 
अब मिश्रा जी के बारे में भी एक बात कर लेते हैं। आपको नहीं लगता कि मिश्रा जी को स्थिति से पलायन कर के टीवी देखना शुरू करने की बजाए स्थिति को अपने हाथ में लेकर सही करने का प्रयास करना चाहिए? 
 
अपने विचार मुझे बताइए और यह भी बताइए कि एक स्थिति का वर्णन कर उसका विश्लेषण करने का मेरा यह ढंग आपको कैसा लगा। 
 
एक पाठक ने लिखा है कि मैं अपने किसी लेख में बताऊँ कि युवक-युवतियों को अपने करियर को किस प्रकार प्लान करना चाहिए। आगामी किसी लेख में अवश्य इस विषय पर लिखूंगा। इसी प्रकार यदि आप भी चाहते हैं कि मैं किसी विशेष विषय पर लिखूँ तो मुझे [email protected] बताइए।