रविवार, 5 अक्टूबर 2025
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Written By मनीष शर्मा

अक्ल से पैदल ही फिरते हैं अक्ल के पीछे लट्ठ लिए

अकबर बीरबल दरबारी
ND
एक बार अकबर के दरबारियों को नीचा दिखाने के इरादे से आए एक विदेशी दूत ने कहा- हुजूर, आपके दरबार में बड़े-बड़े अक्लमंद हैं। इसीलिए हमारे महाराज ने मुझे यहाँ एक घड़ाभर अक्ल लाने को भेजा है। अकबर ने उसकी चाल को भाँपते हुए बीरबल को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी।

बीरबल ने कुछ हफ्तों का समय माँगा। इसके बाद उन्होंने छोटे मुँह के कुछ घड़े मँगाकर उन्हें कद्दू की बेल के फूलों पर औंधा रख दिया और एक माली को उनकी देखभाल के लिए लगा दिया।

समय आने पर जब कद्दू घड़े के अंदर उसके नाप के हो गए तो बीरबल ने एक घड़े पर कपड़ा डाला और उसे लेकर दरबार में पहुँचे। इसके बाद उस दूत को बुलाकर बोले- ये लो घड़ाभर अक्ल।
  एक बार अकबर के दरबारियों को नीचा दिखाने के इरादे से आए एक विदेशी दूत ने कहा- हुजूर, आपके दरबार में बड़े-बड़े अक्लमंद हैं। इसीलिए हमारे महाराज ने मुझे यहाँ एक घड़ाभर अक्ल लाने को भेजा है। अकबर ने उसकी चाल को भाँपते हुए बीरबल को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी।      


यह अक्ल तभी काम की रहेगी जब आप घड़े को नुकसान पहुँचाए बिना इसे सही सलामत बाहर निकाल लें। हाँ, इसके बाद हमारा घड़ा वापस भी करवा दीजिएगा। इस पर दूत ने कपड़ा हटाकर घड़े में झाँका तो कद्दू देखकर उस पर घड़ों पानी पड़ गया। बीरबल बोले- आपको और भी अक्ल चाहिए तो हमारे पास ऐसे कई घड़े हैं। दूत को समझ में आ गया कि उसकी योजना का घड़ा फूट चुका है। उसने चुपचाप वहाँ से निकल जाने में ही भलाई समझी।

दोस्तो, बीरबल ने अक्ल के घोड़े दौड़ाकर उस दूत की अक्ल ठिकाने लगा दी वर्ना क्या अक्ल भी कभी घड़ा भरके मिल सकती है। घड़ा भर के तो कद्दू ही मिल सकता है और वही उसे मिला भी। हाँ, अक्ल घड़े में भले ही न मिले, लेकिन घड़ी से जरूर मिलती है, यानी बीतते समय के साथ अनुभव के रूप में, बशर्ते आप दिमाग के दरवाजे खुले रखें। जो घट रहा है उस पर गहन सोच-विचार करें।

यही वह घाट है, जहाँ से आप अक्ल के काल्पनिक घट को भर सकते हैं। बेअक्ली के काम करने वालों के लिए कहा जाता है कि जब अक्ल बँट रही थी तो चलनी लेकर चले गए। दरअसल यहाँ चलनी से आशय एकाग्रता की कमी से होता है। तभी तो आप जहाँ से कि कुछ सीख सकते हैं, जान सकते हैं, उस ओर आपका ध्यान न होकर दूसरी तरफ होता है। तब आपकी समझ कैसे विकसित होगी, होती भी नहीं है।

समझ को विकसित करने के लिए तो आपको ध्यान देना ही होगा। तभी आप हर घटना से अनुभव लेकर अपनी सोचने-विचारने की क्षमता को विकसित करते जाते हैं और इस तरह आपकी अक्ल बढ़ती जाती है। लेकिन बहुत से अक्ल के दुश्मनों को खुद की अक्ल पर यकीन के चलते इस बात का अहसास ही नहीं होता कि वे अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिर रहे हैं यानी सीधे से कहें तो वे अक्ल से पैदल हैं। यदि आपको भी अपनी अक्ल पर अति विश्वास है तो फिर आप भी अक्ल के पुतले ही हैं।

जो व्यक्ति यह समझने लगे कि उससे बढ़कर समझदार कोई नहीं, अक्लदार कोई नहीं, दिमाग वाला कोई नहीं, तो यकीनन उससे बड़ा मूर्ख या अक्ल का अंधा कोई भी नहीं, क्योंकि ऐसा करके वह अपने दिमाग के दरवाजे बंद कर रहा है। निश्चित ही उसकी अक्ल पर पर्दा पड़ चुका है, वर्ना समझदार व्यक्ति तो ऐसी मूर्खता करता ही नहीं, क्योंकि वह जानता है कि अक्ल ऐसी चीज है जिसका विकास हर दम, हर पल होता रहता है।

हाँ, यह बात जरूर है कि सभी के पास अक्ल बराबर नहीं होती। कुछ के पास कम तो कुछ के पास ज्यादा हो सकती है, क्योंकि हर व्यक्ति की चीजों को आत्मसात करने की क्षमता अलग-अलग होती है। इस क्षमता को ध्यान के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। इसलिए इस बात पर ध्यान दो, ध्यान करो।

दूसरी ओर, अक्ल भले ही घड़े में न भरे, लेकिन आपकी समझदारी और नासमझी की वजह से पुण्य और पाप के घड़े जरूर भरते रहते हैं। यदि पाप के घड़े को खाली रखना है तो आपको हमेशा अक्ल से काम लेते हुए लालच जैसी बुरी प्रवृत्ति से बचना होगा, क्योंकि लालच का घड़ा कभी नहीं भरता। इसके चक्कर में पाप का घड़ा जरूर भरकर फूट जाता है। इसलिए संतुष्ट प्रवृत्ति के बनकर पुण्य के घड़े को भरो। यही घड़ा जरूरत पड़ने पर आपके काम आता है।

और अंत में, गर्मियाँ आ चुकी हैं। आज जरूरत है कि हम सभी अक्ल से काम लें और पानी बचाएँ ताकि सभी के लिए जल उपलब्ध हो सके। चलूँ, एक मटका खरीद लाऊँ। उसके शीतल जल की बात ही कुछ और है।