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Last Modified: शुक्रवार, 3 नवंबर 2023 (15:13 IST)

'शास्त्री विरुद्ध शास्त्री' में पारिवारिक मूल्यों को दिखाने का मौका मिला : शिव पंडित

'शास्त्री विरुद्ध शास्त्री' में पारिवारिक मूल्यों को दिखाने का मौका मिला : शिव पंडित  | Got a chance to show family values in Shastri Virudh Shastri says Shiv Pandit
Shiv Pandit Interview: आपने मेरी फिल्मों की फेहरिस्त देखी होगी तो आपको समझ में आ गया होगा कि मैंने अभी तक ऐसी फिल्में नहीं की है। मैंने क्राइम फिल्म की है, सस्पेंस की है या मैं अल्फा मेल बना हूं, लेकिन बागबान जैसी एकदम पारिवारिक मूल्यों को दिखाने वाली फिल्म करना है। जब इस फिल्म का ऑफर मुझे मिल गया तो मैं बड़ा खुश हो गया कि इस बार कुछ अलग करने वाला हूं। 
 
आपने गौर किया होगा कि साल 1980 से लेकर साल 2000 इन सालों के बीच में कई पारिवारिक फिल्में आई लेकिन 2000 के बाद कुछ यू मौका आया कि सस्पेंस या क्राइम ऐसी फिल्में ज्यादा आईं और ओटीटी में लोगों ने ऐसे ही चीजों को देखना पसंद किया। शास्त्री विरुद्ध शास्त्री एक ऐसी फिल्म है जिसमें कि मुझे अपने पारिवारिक मूल्यों को दिखाने का मौका मिला और इसलिए यह फिल्म मैंने झटपट कर ली। यह कहना है शिव पंडित का जो शास्त्री विरुद्ध शास्त्री में मल्हार शास्त्री के रोल में नजर आने वाले हैं। वेबदुनिया से खास बातचीत करते शिव पंडित से हमने आगे पूछा-
 
फिल्म में दादा और पोते के रिश्ते को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है असल जीवन में आपका और आपके दादा जी का रिश्ता कैसा था
मैं और मेरे दादाजी हम दोनों एक दूसरे को खूब प्यार किया करते थे। मुझे तो मेरी दादी भी उतनी ही याद आती हैं। अब वह दोनों इस दुनिया में नहीं है। लेकिन मुझे खूब प्यार मिला है इन दोनों से। मुझे आज भी याद है कि हमारा घर हुआ करता था, जिसमें एक दालान हुआ करता था और दालान में धूप सेकते हुए दादाजी अपनी कुर्सी पर बैठा करते थे और जैसे ही सुबह सुबह में उठकर उनके पास जाते हरिओम करके इस नाम से बुलाते थे और उसी धूप बैठे हुए कभी किताबें पढ़ते थे कभी गप्पे लड़ाते थे।
 
मेरी दादी की बात कहें तो मैं उनको अम्मीजान कहता था और उनसे भी खूब ज्यादा लाड़ मिला है मुझको। हम लोग पार्टीशन के बाद अमृतसर आए फिर दिल्ली आकर बस गए। तो यह मेरे परिवार की कहानी है और मैं शायद बहुत ही ज्यादा खुश किस्मत रहा हूं कि मुझे ना सिर्फ दादा-दादी बल्कि नाना नानी का भी उतना ही दुलार मिला है। साथ ही आपको यह भी बताना चाहूंगा कि मेरी मेरे पिताजी से बड़े अलग तरीके की रिलेशनशिप रही है। समय के साथ साथ हम लोगों के रिश्ते में कई बदलाव आए हैं। हर बार हमारे रिश्ते का नया रूप ही नजर आता है। आज के समय में वह मेरे काम को बहुत पसंद करते हैं। मेरे क्राफ्ट को बहुत सम्मान देते हैं। लेकिन इसके बावजूद भी अगर आपको लगता है कि हम नहीं लड़ते तो मेरी और मेरे पापा की लड़ाई होती है और होती रहेगी। 
 
फिल्म बात करती है कि माता-पिता व्यस्त होते हैं और बच्चे को इतना समय नहीं दे पाते हैं। आपकी निजी राय क्या है।
मैं इस मामले में निजी नहीं दे सकूंगा क्योंकि मैं एक बहुत अच्छे पारिवारिक माहौल में पला बढ़ा हूं। मेरी मां ने काम नहीं किया। हम तीन भाई बहन है, एक भाई है और गायत्री छोटी बहन है। मैं बीच वाला बेटा हूं तो जब तक गायत्री भी अपनी एक सही उम्र में नहीं पहुंच गई, तब तक मां ने घर के बाहर जॉब करना शुरू नहीं किया। मुझे याद है मेरी मम्मी ने मुझे आर्ट और क्राफ्ट करना सिखाया। ड्राइंग करना सिखाया पढ़ाई में मदद की और फिर जैसे ही लगा कि गायत्री बड़ी हो गई मां ने बाहर निकलकर जॉब करना शुरू की हालांकि बहुत टैलेंटेड रही है, लेकिन जब वह बाहर गई तो उन्होंने प्रोडक्शन इंटर्न की तरह शुरुआत की और फिर अपनी उसी कंपनी में नेशनल मार्केटिंग हेड भी बन गईं। 
 
मुझे फख्र है कि मैं ऐसी मां का बेटा हूं अब जहां तक बात रही आपके सवाल की तो आप जानते ही होंगे कि मुंबई में भी जाने कितने सारे लोग ऐसे हैं जो मुंबई के नहीं है। वह किसी दूसरे प्रदेश या किसी दूसरे शहर से यहां पर आकर बसे हैं। वह पैसा कमाने का नाम कमाने की चाहत में यहां पर आकर रुके हैं। ऐसे में जब उनका कोई बच्चा होता है तो प्रेम शानी हो जाती है।  घर छोटे हैं तो ज्यादा लोगों को लाकर रख नहीं सकते। नौकर चाकर रख नहीं सकते तो ऐसे बच्चों को वह क्रेश में छोड़ते हैं। अब इतना सोच लीजिए कि कभी ऐसा हुआ की देखरेख करने वाली आया है या क्रेश में कुछ हो गया तो कैसे उनका पूरा दिन और दिनचर्या ध्वस्त हो जाती है। यह बहुत सोचने वाली बात है। हमने भी फिल्म में इसी बात को दिखाने की कोशिश की है।
 
इटली और जापान जैसे देशों में नवविवाहित युवक युवतियों ने नई पीढ़ी को जन्म ही नहीं दिया। क्या सोचते हैं
यह बहुत गंभीर विषय है। मेरी एक फिल्म थी नेटफ्लिक्स पर। उसी के वर्ल्ड प्रीमियर के लिए मैं एस्टोनिया नाम के एक देश  गया था। वहां मैंने देखा कि यह बड़ी विकट समस्या है। वहां पर लोग बच्चे नहीं पैदा कर रहे हैं। वहां की सरकार ने इंसेंटिव देना शुरू किए कि आप अगर बच्चा पैदा करेंगे तो हम आपको इंसेंटिव देंगे या इस तरीके की सुविधाएं दिया जाएगी। पढ़ाई लिखाई मुफ्त में कराई जाएगी। बात तो यह भी है कि यूरोप के कुछ देशों ने अभी भी कहना शुरू कर दिया है कि विदेशी पर्यटक आए और यहां पर बच्चों को जन्म दे। बेहद दुखद है ये देखना।
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