ताजमहल पर लिटिगेशन तो वैसे भी बहुत सारी दायर है। मैं काफी पढ़ता रहता था। लेकिन एक बार एक दिन जो हमारे प्रोड्यूसर साहब सुरेश झा उन्होंने मुझे कॉल किया और कहा कि क्या इस विषय में तुम जानते हो, मैं नहीं जानता हूं। बहुत ज्यादा मेरे पास रिसर्च नहीं है। तब उन्होंने कहा कि ऐसा करो पूरी रिसर्च करके रखो अच्छा लगा तो इस पर फिल्म बना सकते हैं।
फिर मैंने शुरूआत की और बहुत सारे रिसर्च और इसके ऊपर जितनी खोजबीन की गई है उन सबको इकट्ठा करना शुरू किया। इसमें कई हिस्टोरिकल फैक्ट मैंने पाए और मेरा नतीजा तो यही निकलता है कि यह मंदिर या एक कोई महल रहा होगा। जिसे शाहजहां ने ले लिया। मंदिर वाली बात पर तो मैं ज्यादा जोर नहीं दे सकता, लेकिन हां मुझे लगता है कि यह एक महल रहा होगा।
राजा मानसिंह का महल था एक समय में और बादशाहनामा में भी जब पढ़ें तो इसका जिक्र मिलता है। कि राजा मानसिंह के पोते जय सिंह से इसे शाहजहां ने ले लिया था ताकि इसमें अपनी बेगम को दफनाया जा सके। इसके बाद मैंने और भी कई तथ्यों को देखा। सब जानने और देखने और पढ़ने के बाद मैंने निर्माता से कहा कि हम इसे फिल्म बना सकते हैं। इसकी कहानी और स्क्रिप्टिंग मैंने शुरू कर दी। थोड़ा समय लगा, लेकिन हां फिल्म को मैं तैयार कर सका।
यह कहना है तुषार गोयल का, जो कि 'द ताज स्टोरी' नाम की फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं। फिल्म को लोगों से भरपूर प्रशंसा मिल रही है ऐसे में उन्होंने खासतौर पर से वेबदुनिया से बातचीत की और फिल्म से जुड़े कई पहलुओं पर प्रकाश डाला।
तुषार अपनी बात को जारी रखते हुए बताते हैं, यह विषय बहुत विरोधाभास लेकर आता है। मैं बिल्कुल जानता था कि जब मैं यह फिल्म बनाऊंगा तो हो सकता है यह चीज उल्टी मेरे ऊपर ही आज आए लोग मुझे ताना मारे मुझे बेवकूफ भी कह सकते हैं। लेकिन मैंने जब भी इसके बारे में पढ़ा तो मुझे बहुत पुख्ता सबूत मिले और फिर मुझे लगा कि यह चीज लोगों के सामने आनी ही चाहिए।
लगभग 3 साल मैंने सर्च किया और पाया कि अलग तरीका का नृत्य में लोगों के सामने आना ही चाहिए। यह बातें जो ताजमहल के लिए कही जाती है कि 20 हजार लोगों के या कारीगरों के हाथ काट दिए थे और यह शाहजहां ने अपने प्यार के लिए बनवाया है और ताजमहल प्यार की निशानी है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। कहीं किसी बात का जिक्र या लिखा हुआ नहीं है कि 20 हजार लोगों के हाथ काट दिए गए और ना ही यह कि प्यार के निशानी है।
बल्कि शाहजहां ने तो मुमताज की मृत्यु के बाद और भी निकाह किए थे। अब इतिहासकार तो यह भी बताते हैं कि शाहजहां के अपनी बेटी जहांआरा से भी शायद संबंध रहे हैं। बात तो यह भी मेरे पढ़ने में आती है कि बादशाह नामा में मैंने कोट भी देखे हैं कि जब ताजमहल बनाया जा रहा था तब दक्षिण और गुजरात में बहुत बड़ा अकाल पड़ा था जिसकी वजह से बहुत सारे लोगों की लगभग 70 हजार लोगों की मृत्यु हो गई थी और इतनी बुरी हालत थी कि लोग कुत्ते के मांस को और उनकी हड्डियों को आटे में मिलाकर खा लिया करते थे। जब यह सब बातें पढ़ीं तो मुझे बहुत अजीब लगा और लगा कि यह सब जो तथ्य है जो बादशाहनामा में भी है उसे लोगों के सामने लेकर आऊं।
एक बात सोचने में यह भी आती है कि यह फिल्म बनने के बाद से क्या जो पर्यटक ताजमहल देखने आ रहे हैं, उनकी सोच पर कोई प्रहार होगा।
हमने यह सोच कर तो बिल्कुल भी फिल्म नहीं बनाई है। अगर आप फिल्म देखेंगे भी तो हम ने यही कहा है कि जो हमें टेक्स्ट बुक में पढ़ाया जाता है। पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है कि यह ताजमहल जो है शाहजहां ने बनाया है, ऐसा बिलकुल ना लिखें। तथ्य है यह समझने के लिए और मानने के लिए और साबित करने के लिए कि यह ताजमहल दरअसल राजा मानसिंह का खुद का महल हुआ करता था।
तो गलत बात पाठ्यक्रम में ना पढ़ाई जाए। ना बच्चों को पढ़ाई जाए। साथ ही ताजमहल जो देखने आते हैं, वह प्यार की निशानी है यह मानकर देखने नहीं आते हैं बल्कि इसकी भव्य होने की वजह से देखने आते हैं। इसके आर्किटेक्चर को देखने के लिए आते हैं। कितने सुंदर तरीके से बनाया गया है। यह इमारत कितनी बड़ी और आकर्षक है, यह देखने आते हैं। और इसमें जो बताया गया है अभी तक हमें किए इस्लामी तरीके से बनाई गई इमारत है तो नहीं यह भारतीय आर्किटेक्चर है। इस बात को हमारी जितने भी पाठ्यक्रम है, उसमें सम्मिलित किया जाए। हम यह कहना चाहते हैं किसी भी तरीके से हम इस भव्य इमारत को देखने आने वाले पर्यटकों पर कोई बुरा असर नहीं छोड़ना चाहते।
तो प्रहार किस पर है उस विचारधारा पर जो कहता है कि ताजमहल प्यार के निशानी है या उन लोगों की सोच पर जो यह मानने को तैयार ही नहीं है कि एक ही सिक्के के दो पहलू हो सकते हैं।
यह प्रहार उन दोनों पर है। उन वामपंथी विचारधारा वाले इतिहासकारों पर भी हैं जिन्होंने हमारे देश के बारे में ऐसी बातें लिखी, जहां पर हमें मुगल इतिहास तो बहुत पढ़ाया गया। लेकिन महाराणा प्रताप या फिर छत्रपति शिवाजी राजे जैसा इतिहास पढ़ा ही नहीं गया। कई बार यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश की कि शिवाजी महाराज जो है वह एक भगोड़े है कि वह औरंगजेब की जेल से भाग निकले थे।
ऐसे लोग इस दुनिया में रहेंगे। उनका कुछ नहीं कर सकते और मैं प्रहार उन लोगों पर भी करना चाहता हूं जो चाहते ही नहीं कि सिक्के के दूसरे पहलू को दिखाया जाए। यह वह लोग हैं जो आज के समय में हमें मिलते हैं और वह किसी बच्चे की तरह काम करते हैं कि मैंने अपनी बात कह दी। अब जब कोई दूसरा कहने जाएगा तो मैं अपने कान बंद कर लूंगा। मुझे मानना ही नहीं है उस बात को।
आगे किस तरीके की फिल्म की हम आपसे अपेक्षा कर सकते हैं?
मुझे रिसर्च ओरिएंटेड फिल्में ही पसंद आती है। कई सारे ऐसे विषय मुझे मिले हैं जिस पर मैं अध्ययन कर रहा हूं और ऐसी पहले बनाऊंगा जो सच्चाई को बाहर लाएं। मैं एक फिल्मकार हूं और मेरे लिए बहुत जरूरी है कि सच्चाई और सच लोगों के सामने लाया जा सके। लोगों को मेरे तरीके की फिल्में अच्छी भी लग रही है और यह मेरी जिम्मेदारी भी बन गई है।