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सत्यजित और रवि शंकर ने महज़ 11 घंटों में रचा था "पथेर पांचाली" का पार्श्वसंगीत

सत्यजित और रवि शंकर ने महज़ 11 घंटों में रचा था
सत्‍यजित राय की फिल्‍म "अपराजितो" का एक दृश्‍य है. हरिहर की मृत्‍यु के बाद सर्बजया और अपु बनारस से अपने गांव लौट रहे हैं। ट्रेन की खिड़की के बाहर दृश्‍यालेख बदलता रहता है। अभी धूप-छांव है, अभी सांझ-भोर। लेकिन जैसे ही ट्रेन बंगाल में प्रवेश करती है सहसा साउंडट्रैक पर "पथेर पांचाली" का थीम संगीत बज उठता है। हम स्‍मृति की एक विराट रंगशाला में धकेल दिए जाते हैं।  निश्चिंतिपुर के पोखर-ताल, खेत-चौपाल, धूप के फूल और मेंह के मोती, कांस की सुबहें और सरपत की सांझें हमारे ज़ेहन में कौंध उठती हैं। अपु और दुर्गा का बचपन हमारी कल्‍पना में तैरने लगता है। दोनों इस धुन के बेछोर समुद्रतट पर दौड़े चले जा रहे हैं, अपने अबोध विस्‍मय की उस दिशा में, जो उनके स्‍वप्‍नों का सीमांत है।  
 
यह रवि शंकर की धुन थी, जो सत्‍यजित राय की महान फिल्‍म का अंतर्भाव है। 
 
"पथेर पांचाली" का थीम संगीत पूरी फिल्‍म में अनेक अवसरों पर बजता है। यह एक अनूठी धुन है। दिल की जलतरंग पर बजती और धुंध में लिपटी। हमारी आत्‍मा के झुटपुटों में किसी हूक की तरह गूंजती। इसमें टीस का गाढ़ा रंग है, स्‍मृति का रंगमंच है, लोक की गोधूलि है, राग का दाह है। और तब लगता है कि दिल अगर सितार होता, तो रवि शंकर का देश होता।  
"देश राग"। 
 
यह धुन कैसे रची गई? इसकी एक रोचक कहानी है। 
 
बात 1955 की है। "पथेर पांचाली" की शूटिंग पूरी हो चुकी थी, लेकिन उसका पार्श्‍वसंगीत रचा जाना शेष था। सत्‍यजित को रवि शंकर का नाम सूझा। रवि शंकर तब भी काफी प्रसिद्ध हो चुके थे और विदेश यात्राओं में व्‍यस्‍त रहते थे। सत्‍यजित ने दिल्‍ली स्थित उनके निवास पर पत्र लिखा और "पथेर पांचाली" का पार्श्‍वसंगीत रचने का अनुरोध किया। रवि शंकर राज़ी हो गए। वे दो दिनों के लिए कलकत्‍ता पहुंचे।  एक दिन उनका सितार वादन का कार्यक्रम था। दूसरे दिन सत्‍यजित उनसे मिलने पहुंचे। रवि शंकर ने उनसे मिलते ही कहा : "मानिक, मेरे मन में तुम्‍हारी फिल्‍म के लिए एक थीम संगीत है।" फिर उन्‍होंने वह धुन गुनगुनाकर उन्‍हें सुनाई। सत्‍यजित हैरान रह गए। वह मार्मिक धुन फिल्‍म के लिए पूरी तरह अनुकूल थी। 
 
लेकिन मुसीबत यह थी कि रवि शंकर के पास केवल एक दिन का समय था। सत्‍यजित ने उन्‍हें फिल्‍म के कुछ अंश दिखाए।  प्रख्‍यात बांसुरी वादक आलोक डे से अनुरोध किया कि वे अपने वादकों की मंडली लेकर "रिकॉर्डिंग" के लिए पहुंचें। अपराह्न चार बजे सभी स्‍टूडियो पहुंचे। रवि शंकर ने तय किया कि सितार वे स्‍वयं बजाएंगे। बांसुरी आलोक डे बजाएंगे।  दुर्गा की मृत्‍यु पर सर्बजया के विलाप के दृश्‍य के लिए "तार-शहनाई" बजाना तय किया गया और इसके लिए दक्षिणा रंजन ठाकुर की सेवाएं ली गईं। अन्‍य वाद्यों के रूप में "छमंग" और "कचेरी" का चयन किया गया। ‘रिकॉर्डिंग’ शाम छह बजे शुरू हुई और रातभर जारी रही।  थीम संगीत रवि शंकर के मन में पहले ही था, उसे सितार और बांसुरी पर रिकॉर्ड किया गया। विलाप दृश्‍य के लिए "तार शहनाई" पर "राग पटदीप" में ढाई मिनट का एक टुकड़ा रचा गया। अन्‍य लगभग आधा दर्जन दृश्‍यों के लिए तीन-तीन मिनट के टुकड़े रचे गए। इस तरह मात्र ग्‍यारह घंटों में "पथेर पांचाली" का पार्श्‍व संगीत रचा गया!
 
"पथेर पांचाली" के बाद सत्‍यजित राय ने रवि शंकर के साथ तीन और फिल्‍में कीं : त्रयी की शेष दोनों फिल्‍मों "अपराजितो" और "अपुर संसार" सहित "पारस पत्‍थर"। एक थीम संगीत "अपराजितो" में भी था, "राग जोग" में निबद्ध एक करुण धुन, जो फिल्‍म में दो अवसरों पर बजती है। यह धुन लगभग क्रंदन की तरह है और हमारे मर्म को चींथ डालती है। फिल्‍म में एक अन्‍य अवसर पर "रागेश्री" का एक दिल खुश कर देने वाला टुकड़ा बजता है: बनारस के घाट पर धूप में चमकता, कबूतरों की उड़ान की छांह में कांपता संगीत। 
 
"अपुर संसार" में जब अपूर्ब अपर्णा की मृत्‍यु के बाद अपने अधलिखे उपन्‍यास की पांडुलिपि जंगल में फेंक आता है, तो रवि शंकर पार्श्‍व में चेलो का भर्राया हुआ स्‍वर बजाते हैं। अपूर्ब के अनंत विषाद को गाढ़ा करता यह टुकड़ा विकलता की तरह फैलता है, जिसके अंत में लगभग "पोएटिक रिलीफ़" की तरह बांसुरी बजती है, तितली की तरह हवा में तैरती हुई। 
 
सितार रवि शंकर के लिए महज़ एक साज़ नहीं था, वह उनका "मुकुट" बन गई थी। उनकी यशकाया। दुनिया रवि शंकर को मेहर घराने की "बाज" को अकल्‍पनीय उठानों तक ले जाने के लिए याद रखेगी, लेकिन सत्‍यजित की फिल्‍मों में उन्‍होंने जो पार्श्‍व संगीत रचा है, वह भी हमारे सामूहिक अवचेतन पर हमेशा के लिए अंकित हो चुका है। अपने हिस्‍से के तमाम चंद्रमा खर्च कर देने के बावजूद हम उसे भुला नहीं सकेंगे। 
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