बिहार चुनाव मेंं सरकारी नौकरी का चुनावी दांव क्या बनेगा गेमचेंजर?
बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान (6 नवंबर) में अब एक हफ्ते से भी कम का समय बचा है, ऐसे में अब सियासी दल वोटरों को रिझाने में अपनी पूरी ताकत झोंकं दी है। बिहार चुनाव में सभी राजनीतिक दल पौन दो करोड़ युवा वोटरों को साधने की पूरी कोशिश कर रहे है। बिहार के कुल 7 करोड़, 43 लाख 55 हजार 976 वोटर्स में 20-29 आयु वर्ग के मतदाता एक करोड़ 63 लाख 25 हजार 614 है। वहीं 18 से 19 आयु वर्ग के मतदाता 14 लाख एक हजार 150 हैं। इसमें 18-19 आयु वर्ग की महिला मतदाता 5,84,115 हैं। इस प्रकार युवा मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 77 लाख 26 हजार 879 है। ऐसे में चुनाव में यूथ फैक्टर्स को साधने के लिए महागठबंधन और NDA अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है।
हर घर सरकारी नौकरी का चुनावी दांव-बिहार चुनाव में महागठबंधन की ओऱ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने चुनाव के लिए संकल्प पत्र जारी करते हुए हर घर में सरकारी नौकरी का दांव चला है। तेजस्वी यादव अपने चुनावी मंच पर बिहार मे इस बार युवा सरकार बनाने का दावा करते है। तेजस्वी यादव कहते है कि सरकार बनते ही 20 दिन के अंदर कानून बनाया जाएगा कि जिन परिवार में कोई सरकारी नौकरी नहीं है, उन परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी। दरअसल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी तेजस्वी यादव ने 10 लाख सरकारी नौकरी देने का दांव चला था और इसका उन्हें फायदा भी हुआ था।
तेजस्वी यादव कहते है कि बिहार में 17 महीने के अपने कार्यकाल में उन्होंने पांच लाख युवाओं को नौकरी दी। इसके साथ महागठबंधन ने वादा किया है कि सवा करोड़ से ज्यादा रोजगार का सृजन किया जाएगा, इसके साथ ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं को प्रतिमाह 2 हजार और 3 हजार बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। अभ्यर्थियों के लिए परीक्षा फॉर्म शुल्क समाप्त किया जाएगा. सरकारी संस्थानों में इंटर्नशिप हेतु न्यूनतम स्टाइपेंड सुनिश्चित किया जाएगा। महागठबंधन के घोषणा पत्र में राज्य की सभी जीविका दीदियों को स्थायी करने का वादा किया गया है और उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की बात कही गई है. जीविका दीदियों का उनका वेतन भी 30 हजार करने का वादा किया गया है. सभी संविदाकर्मियों और आउटसोर्सिंग पर कार्य़रत कर्मचारियों को स्थाई करने का वादा किया गया है. सामाजिक सुरक्षा पेंशन के अंतर्गत विधवा और वृद्धजनों को 1500 मासिक पेंशन दी जाएगी. हर साल 200 की वृद्ध की जाएगी. दिव्यांगजनों को 3000 मासिक पेंशन की जाएगी।
सरकारी नौकरी देने का वादा बनेगा गेमचेंजर- बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों ने ही जिस तरह से सरकारी नौकरी का चुनावी दांव चला है वह क्या बिहार चुनाव मे गेमचेंजर साबित होगा। बिहार चुनाव को लेकर एक सर्वे में तेजस्वी यादव के हर घर नौकरी वाले वायदे पर 38.1 फीसदी लोगों ने इसे अच्छा कदम बताया है वहीं 48 फीसदी लोगों ने इसे महज एक चुनावी वादा बताया है।
विधानसभा चुनाव मे तेजस्वी यादव के हर घर नौकरी वाले चुनावी दांव पर आखिर बिहार के युवा क्या सोचते है इसको लेकर 'वेबदुनिया' ने बिहार के युवाओ से बात की। पटना में रहने वाले युवा आनंद कौशल कहते है कि तेजस्वी यादव के हर घर सरकारी नौकरी देने के चुनावी वादे को लेकर युवाओं में असर तो देखा जा रहा है लेकिन यह लागू कैसे होगा इसको लेकर युवाओं में संशय है। वह कहते है कि बिहार में आज बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है और रोजगार की तलाश में लाखों की संख्या में बिहार के युवा अन्य राज्यों में पलायन करते है, ऐसे में अगर युवाओं को बिहार में ही नौकरी के अवसर मिलेंगे तो कौन बाहर जाना चाहेगा।
वहीं पटना में रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले पारुल राय कहती है कि राजनीतिक दलों को युवाओं की याद केवल चुनाव के समय ही क्यों आती है, यह सबसे बड़ा सवाल है। वह पिछले चार सालों से तैयारी कर रही है लेकिन अब तक उन्हें नौकरी नहीं मिली है। वहीं तेजस्वी यादव के हर घर सरकारी नौकरी के वादे पर पारुल कहती है कि घोषणा तो अच्छी है लेकिन इसको लागू कैसे किया जाएगा इसको लेकर कई तरह के सवाल है। वह कहती हैं कि अगर तेजस्वी यादव कानून बनाने की बात कह रहे है तो उन्हें पूरा प्लान भी युवाओं के सामने रखना चाहिए, क्यों 3 करोड़ परिवार के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा कोई आसान काम नहीं है।
पटना कॉलेज के पूर्व प्रिसिंपल एनके चौधरी कहते है कि ढाई करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी देने के लिए इतने पद सृजित करने होंगे, यह पद कहां सृजित होंगे यहीं सबसे बड़ा सवाल है। वह कहते है कि तेजस्वी यादव सरकारी नौकरी देने की बात कह रहे है, इसके लिए पूरा प्लान तैयार करना होगा और एक बड़े बजट की जरूरत होगी और वर्तमान हालत में यह किसी तरह संभव नहीं है। अगर तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार सरकारी नौकरी देने का वादा कर रहे है तो इसके लिए उन्हें एक ब्लू प्रिंट जनता के सामने लाना चाहिए। वह आगे कहते है कि सरकारी नौकरी और रोजगार देने में बहुत अंतर है। ऐसे में करोड़ों की संख्या में सरकारी नौकरी देने का वादा केवल चुनावी घोषणा से ज्यादा कुछ नहीं है।