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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 26 मार्च 2022 (07:54 IST)

योगी 2.0: कैबिनेट में 22 मंत्रियों को नहीं मिली जगह, क्या रहे 5 बड़े कारण

योगी 2.0: कैबिनेट में 22 मंत्रियों को नहीं मिली जगह, क्या रहे 5 बड़े कारण - Yogi 2.0 :  Why 22 ministers dropped from yogi cabinet
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
योगी आदित्यनाथ ने बीते शुक्रवार शाम लखनऊ के इकाना स्टेडियम में भारतीय जनता पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं के बीच दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है।
 
योगी आदित्यनाथ के साथ इस सरकार में केशव प्रसाद मौर्या और ब्रजेश पाठक ने उप-मुख्यमंत्री और दर्जनों अन्य मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। इस सरकार में नए चेहरों के रूप में पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण से लेकर पूर्व आईएएस अधिकारी अरविंद शर्मा से लेकर दानिश आज़ाद अंसारी जैसे नए चेहरों को जगह मिली है।
 
इसके साथ ही पिछली सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे दिनेश शर्मा से लेकर सतीश महाना और सिद्धार्थ नाथ सिंह एवं आशुतोष टंडन जैसे बड़े नेताओं समेत पिछली सरकार में मंत्री रहे कुल 22 नेताओं को इस कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है।
 
हालांकि, चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार किन नेताओं का पत्ता कट सकता है। लेकिन शुक्रवार शाम होते-होते स्थिति साफ़ हो गई और पता चल गया कि बीजेपी ने इस बार अपने किस नेता को गद्दी पर बैठाने का मन बनाया है।
 
लेकिन जब उन नेताओं के नाम सामने आना शुरू हुए जिनके नाम काटे हैं तो आश्चर्य जताया गया कि राजनीतिक रूप से सक्रिय और मज़बूत माने जाने वाले नेता सतीश महाना से लेकर योगी आदित्यनाथ के क़रीबी नेताओं को मंत्री पद क्यों नहीं मिला।
 
बीबीसी ने बीजेपी की राजनीतिक रणनीतियों पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह और वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्त से बात करके इस फ़ैसले के लिए ज़िम्मेदार पांच अहम कारणों को समझने की कोशिश की है।
 
नेताओं का ख़राब प्रदर्शन
चुनाव के नतीजे आने के बाद से बीजेपी के नेता ये कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की जनता ने उनके काम को देखते हुए एक बार फिर उनपर भरोसा जताया है।
 
बीजेपी की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह मानते हैं कि इन 22 नेताओं में से कई लोगों को मंत्रीमंडल में नहीं रखे जाने के पीछे ये वजह ज़िम्मेदार है।
 
वह कहते हैं, "इन नेताओं के मंत्रीमंडल में नहीं होने पर अगर किसी को आश्चर्य हो रहा है तो उन्होंने चुनाव अभियान पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। चुनाव अभियान के दौरान इनमें से ज़्यादातर लोगों के ख़िलाफ़ स्थानीय स्तर पर इतनी नाराज़गी थी कि इससे पार्टी को परेशान हो रही थी। बड़ी मुश्किल से मोदी और योगी के नाम पर ये जीतकर आए हैं।"
 
"अगर लोग विधायक और मंत्री के रूप में इनके प्रदर्शन पर वोट देते तो ये चुनाव भी जीतकर नहीं आ पाते, जैसे कई लोग चुनाव नहीं जीत पाए हैं। ऐसे में इन्हें हटाने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। शिकायतें पहले से थीं, लेकिन बीच में कोरोना आ गया, जिसकी वजह से सब टल गया, इसके बाद फिर चुनाव नज़दीक आने की वजह से। ऐसे में इनको हटाए जाने के संकेत काफ़ी समय से मिल रहे थे।"
 
वो कहते हैं, "दूसरा, पिछले आठ साल से जिस तरह मोदी और शाह सरकार चला रहे हैं, उससे सबके लिए संदेश यही है कि कोई भी ऐसा नहीं है जिसके बिना सरकार नहीं चल सकती। ऐसे में या तो प्रदर्शन करिए या फिर किनारे बैठ जाइए। उनका संदेश साफ है- जो प्रदर्शन करेगा वो रहेगा, जो नहीं करेगा उसे जाना होगा। और ये आज मंत्री बनने वाले नेताओं के लिए भी सबक है कि ये मत सोचिए कि हम लोकप्रिय हैं या फलां नेता के क़रीबी हैं, इसलिए बच जाएंगे।"
 
अपनी बात समझाते हुए प्रदीप सिंह, सिद्धार्थ नाथ सिंह का उदाहरण देते हैं जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने बीजेपी और निषाद पार्टी के बीच गठजोड़ को मज़बूती दी।
 
वे कहते हैं, "सिद्धार्थ नाथ सिंह का विभाग बदला गया था, इसी से उन्हें संकेत दिया गया था। स्वास्थ्य मंत्रालय से उनको हटाया गया। पार्टी वही कर रही है जो किसी भी राजनीतिक दल में होना चाहिए, जैसे विधायक के रूप में आपका प्रदर्शन कैसा है, चुनाव क्षेत्र के लोग आपसे कितने संतुष्ट हैं, और अगर आप सरकार में हैं तो आपका प्रदर्शन कैसा है। पार्टी को आपके काम से लाभ हो रहा है या नहीं, आपका आचरण कैसा है।"
 
आर्थिक घोटालों के आरोप
उत्तर प्रदेश की पिछली सरकार में योगी आदित्यनाथ के क़रीबी माने जाने वाले महेंद्र सिंह और युवा नेता और ऊर्जा मंत्री रहे श्रीकांत शर्मा को भी इस बार मंत्रीमंडल से बाहर रखा गया है।
 
उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मियों को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्त इन्हें बाहर रखे जाने के लिए आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोपों को एक वजह मानते हैं।
 
वे कहते हैं, "अगर सिद्धार्थ नाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा और योगी आदित्यनाथ जी के क़रीबी माने जाने वाले महेंद्र सिंह की बात करें तो इन तीनों को मंत्रीमंडल से बाहर रखने की एक ही वजह है कि इन तीनों पर आर्थिक घोटाले जैसे आरोप थे। महेंद्र सिंह जल शक्ति मंत्री थे और वह प्रधानमंत्री की 'हर घर नल योजना' के क्रियान्वन के लिए ज़िम्मेदार थे लेकिन उनके ऊपर आर्थिक मामलों से जुड़े आरोप थे। आप कह सकते हैं कि कहीं इस योजना में पैसों का बहुत अच्छा उपयोग नहीं हुआ तो कहीं पैसों का हेरफेर भी हुआ। उन पर इस तरह के आरोप लग रहे थे।"
 
प्रदीप सिंह भी शरद गुप्त की बात से सहमत नज़र आते हैं। वो कहते हैं, "मंत्रीमंडल में न रखे जाने का फ़ैसला करते हुए पार्टी ये देखती है कि आपके ख़िलाफ़ आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप है या नहीं है। यदि हैं तो उसमें कितनी सच्चाई है या वह झूठा आरोप है। पार्टी अपने स्तर पर इन बातों का पता लगाती है।"
 
जातिगत प्रभाव की विवशता
योगी आदित्यनाथ की नई सरकार में कभी बसपा नेता रहे ब्रजेश पाठक का कद बढ़ाकर उन्हें उप मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेदारी दी गई है। माना जा रहा है कि ये कदम प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
 
लेकिन पिछली सरकार में भी दिनेश शर्मा के रूप में पार्टी में एक ब्राह्मण नेता उप-मुख्यमंत्री के पद पर मौजूद थे। ऐसे में दिनेश शर्मा को हटाकर ब्रजेश पाठक को लाने की वजह क्या रही?
 
प्रदीप सिंह मानते हैं, "जिन नेताओं को मंत्रीमंडल में जगह नहीं दी गई है, उनके साथ जातिगत प्रभाव की विवशता वाली स्थिति भी नहीं थी, कि फलां समाज या फलां जाति से लोग नहीं हैं। सवाल ये है कि जब लोग हैं तो उनकी जगह रोककर आपको क्यों आगे बढ़ाया जाए।"
 
अपने तर्क को समझाते हुए प्रदीप सिंह बताते हैं, "ब्रजेश पाठक और दिनेश शर्मा की कार्यशैली में अंतर देख लें तो वजह समझ में आ जाएगी कि पाठक को क्यों रखा गया और शर्मा को क्यों हटाया गया। दिनेश शर्मा दो बार लखनऊ से मेयर रह चुके हैं। वो लखनऊ के लोगों को जानते हैं, लेकिन उनसे सबसे ज़्यादा असंतुष्ट लखनऊ के ही लोग थे। शिकायत थी कि वो मिलते नहीं, काम नहीं करवाते और ज़रूरत पड़ने पर फ़ोन नहीं उठाते।"
 
"इसके अलावा उनके होते हुए भी ब्राह्मण समाज में लंबे समय तक एक पूरा नैरेटिव चलाया गया कि ब्राह्मण नाराज़ हैं। उनके समाज का नेता उप मुख्यमंत्री है, इसके बावजूद इस नैरेटिव को रोकने और इसे कमज़ोर करने में उनकी कोई भूमिका नहीं रही। इसके विपरीत ब्रजेश पाठक जनता के बीच पूरी तरह से सक्रिय रहे हैं। उनके घर के बाहर के जश्न से बात साबित हो जाती है। लोग कह रहे हैं कि कोरोना के दौरान हमने आधी रात को भी फ़ोन किया, उन्होंने फ़ोन उठाया। सार्वजनिक जीवन में ये चीजें काफ़ी अहम होती हैं।"
 
पार्टी के लिए उपयोगिता
चुनाव अभियान के दौरान पीएम मोदी ने शाहजहांपुर में एक्सप्रेस वे परियोजना का शिलान्यास करते हुए 'यूपी प्लस योगी, बहुत हैं उपयोगी' नारा दिया था।
 
इसे केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से योगी आदित्यनाथ के प्रति जताए गए विश्वास की तरह देखा गया था। और अब कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कीं, उन्हें मंत्रीमंडल में जगह नहीं दी गई है।
 
ऐसे नेताओं में वाराणसी दक्षिण से जीतकर आने वाले नीलकंठ तिवारी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि टैंपल सीट से आने वाले नीलकंठ तिवारी को मंत्रीमंडल में जगह मिलेगी।
 
तिवारी को मंत्रीमंडल से बाहर रखने की वजह बताते हुए प्रदीप सिंह कहते हैं, "चूंकि उनकी विधानसभा सीट में ही विश्वनाथ धाम परिसर आता है, नीलकंठ तिवारी को जिताने के लिए प्रधानमंत्री को अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगानी पड़ी। उनसे नाराज़गी इतनी थी कि लोग कोई बात सुनने को ही तैयार नहीं थे। अगर प्रधानमंत्री दो दिन बनारस में रुके न होते और जैसे अभियान किया वैसा न किया होता तो उनके जीतने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं थी।"
 
"ये भी पहली बार के विधायक थे और उन्हें सीधे कैबिनेट मिनिस्टर बनाया गया था, इसके बावजूद उनका प्रदर्शन ये है कि बनारस में कोई आदमी उनके बारे में अच्छा बोलने के लिए तैयार नहीं है, जिससे भी बात कीजिए वो उनकी आलोचना करेगा। ऐसे में उनका नंबर कटना पहले से तय था।"
 
"इन नेताओं की मंत्रीमंडल में गैरमौजूदगी का कारण जानने के लिए ये भी समझनाल होगा कि पार्टी ने आपको बड़ा पद दिया तो आपने पार्टी को क्या दिया और आप पार्टी के लिए कितने उपयोगी साबित हुए।"
 
अगले लक्ष्य पर निगाह
कहा जा रहा है कि इस मंत्रीमंडल की शक्ल और सूरत साल 2024 को ध्यान में रखते हुए तय की गई है।
 
जातिगत समीकरणों से लेकर पूर्व अधिकारियों को अहम ज़िम्मेदारियां देने और पार्टी के प्रति समर्पित और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय नेताओं को जगह दी गई है।
 
प्रदीप सिंह मानते हैं कि "ये लाज़मी है कि पार्टी आपसे ये अपेक्षा करे कि आप भी पार्टी के लिए कुछ करें। और इस मंत्रीमंडल का गठन 2024 को ध्यान में रखकर किया गया है क्योंकि अगला लक्ष्य 2024 ही। इस मंत्रीमंडल को बनाते वक़्त गवर्नेंस को ज़्यादा तरजीह दी गई है। पार्टी मानती है कि चुनाव नतीजों में सरकार के प्रदर्शन का बहुत बड़ा योगदान है। ऐसे में ये स्पष्ट हो गया है कि गवर्नेंस के ज़रिए ही आप चुनाव जीत सकते हैं। इसी वजह से अलग-अलग क्षेत्रों के लोग और ज़्यादा पढ़े-लिखे लोगों को तरजीह दी गई है।"
 
वहीं, शरद गुप्त आशुतोष टंडन का उदाहरण देते हुए बताते हैं, "आशुतोष टंडन को मंत्रिमंडल में जगह न मिलने की सिर्फ एक वजह थी कि वह बहुत ही ढीले-ढाले मंत्री थे। उनकी अपने काम के प्रति ख़ासी रुचि नहीं थी। इसी वजह से उन्हें हटाया गया।"
 
इसके साथ ही सतीश महाना को हटाए जाने पर गुप्त कहते हैं, "महाना के मामले में कहा जा सकता है कि वह सक्रिय भी थे और मज़बूत भी, लेकिन कानपुर से किसी एक व्यक्ति को लाया जाना था और असीम अरुण को लाया गया है। ऐसे में महाना को बाहर रखना पड़ा।"
 
फिलहाल ऐसा लग सकता है कि जैसे बीजेपी ने इन तमाम नेताओं को मंत्रीमंडल में जगह न देकर उनके प्रति अपनी नाराज़गी का इज़हार किया है। लेकिन माना जा रहा है कि इनमें से तमाम नेता संगठन के काम में लगाए जा सकते हैं।
 
दिनेश शर्मा के मामले में शरद गुप्त कहते हैं, "दिनेश शर्मा से मेरी मुलाक़ात चुनाव के दौरान हुई थी। उन्होंने उसी समय संगठन में जाने की इच्छा जताई थी, उन्होंने कहा था कि मैं सरकार में बहुत रह लिया, मुझे पहले भी संगठन में रहने का मन था और मैं फिर संगठन में जाना चाहता हूं।"
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