कीर्ति दुबे, बीबीसी संवाददाता, गोरखपुर से
'गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है।' साल 2000 से चला यह नारा अब लोगों के जुबान पर उतनी आक्रामकता से नजर नहीं आता लेकिन बीजेपी की रैलियों में जुटे समर्थक गोरखपुर से बीजेपी के उम्मीदवार रवि किशन को योगी से जोड़ने के लिए नया नारा लगाते हैं- 'अश्वमेध का घोड़ा है, योगीजी ने छोड़ा है।'
दोनों नारों में योगी कॉमन नजर आते हैं। लेकिन क्या योगी और गोरक्षनाथ मठ आज भी गोरखपुर की राजनीति में बाजी पलटने का दम रखते हैं? 5 साल पहले इसका जवाब हां हो सकता था लेकिन अब गोरखपुर की बयार थोड़ी अलग है।
गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभाएं आती हैं- गोरखपुर ग्रामीण, गोरखपुर शहर, सहजनवां, पिपराइच, कैम्पियरगंज। जनता का मन टटोलने के लिए हम इन इलाकों में निकले। गोरखपुर के वार्ड नंबर 1 की मलिन बस्ती के गांव मल्लाह बहुल हैं। ये बस्ती 1,700 एकड़ में फैले रामगढ़ ताल के किनारे बसी है। इस इलाके में बरगद के पेड़ के नीचे दोपहर को लोग जुटे हुए हैं और मुद्दा है लोकसभा चुनाव।
यहां रहने वाले सुनील निषाद कभी बीजेपी के बूथ स्तर के कार्यकर्ता हुआ करते थे लेकिन इस बार वे बीजेपी को वोट न देने की कई वजहें बताते हुए कहते हैं कि 'किसी को भी लेकर योगीजी, चाहे बीजेपी आ जाएगी तो वोट दे देंगे का (क्या), जीत जाएगा तो दिखइयो (दिखाई भी) नहीं देगा। बाबा को वोट देते थे काहे कि वे हमारे बीच के थे, मंदिर के थे। इनको (रवि किशन) जीतने के बाद कहां खोजेंगे?'
रवि किशन का प्रचार अगर योगीजी करेंगे तो क्या वे उन्हें अपना मान लेंगे? इस बात पर वे कहते हैं, 'अब वो जमाना नहीं है, जब मंदिर को ही वोट दिया जाता था। हम काम से दुखी हो तो भी हिन्दुत्व के नाम पर वोट दे दिया जाता था। मंदिर के नाम पर तो कोई भी जीत जाता, ये तो फिर भी महंत हैं। अपना धर्म भी तो है।'
सुनील निषाद जब ये कहते हैं उसी बीच सविता सिंह नाम की एक महिला आती हैं और बताने लगती हैं कि वे भाजपा समर्थक हैं और सालोसाल से बीजेपी को वोट देते आई हैं लेकिन इस बार वे गठबंधन के साथ खड़ी हैं। वजह यह है कि पार्टी ने हमारे बीच के काबिल नेताओं को जगह नहीं दी।
उपचुनाव ने बदला माहौल?
1991 से लेकर 2014 तक तमाम विरोधी माहौल में भी पूर्वांचल में जो 1 सीट हमेशा बीजेपी की होती रही, वह है गोरखपुर। लगभग 32 सालों के दरमियां गोरक्षनाथ मठ के प्रमुख दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्य नाथ और 1998 से लेकर 2017 तक योगी आदित्यनाथ यहां से सांसद रहे।
योगी ने साल 2002 में हिन्दू युवा वाहिनी का गठन किया और यहीं से गोरखपुर में हिन्दुत्व की राजनीति ने जोर पकड़ा। इस दौरान यहां मेयर का चुनाव भी वही जीतता जिसे योगी का समर्थन प्राप्त हो। लेकिन पिछले कुछ सालों में यहां बहुत कुछ बदला है। साल 2018 में उपचुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद अब आम चुनाव में भी योगी वे की लहर नजर नहीं आती, जो अब तक नजर आया करती थी। जो राजनीति मंदिर से शुरू होकर हिन्दुत्व का प्रतीक बनी, अब गोरखपुर के लोगों के बीच ये फैक्टर फीका लगता है।
बीजेपी के उम्मीदवार रवि किशन के नाम पर वोटरों के बीच से सबसे बड़ा सवाल ये आता है कि वे हमारे नेता नहीं हैं और इस तरह यहां लड़ाई बाहरी बनाम घरवाला बनती जा रही है। हालांकि बीबीसी से बातचीत में रवि किशन ये कह चुके हैं कि वे गोरखपुर में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री स्थापित करेंगे और यहीं रहेंगे।
ये पहली बार नहीं है, जब गोरखुपर की राजनीति में कोई फिल्मी सितारा चुनावी मैदान में हो। साल 2009 में मनोज तिवारी को सपा ने गोरखपुर से टिकट दिया था और उस दौरान उन्होंने भी गोरखपुर की जनता से खुद को जोड़ने के लिए ऐसे वादे किए थे लेकिन आज वे दिल्ली में बीजेपी का बड़ा चेहरा बन गए और गोरखपुर उनकी राजनीतिक नाकामी का किस्साभर बनकर रह गया।
पिपराइच बाजार में एक दुकान पर कुछ लोग चाय पी रहे थे। इनमें एक रामेश्वर उपाध्याय कहते हैं कि 'अब गोरखपुर में मामला योगी और मंदिर का नहीं रहा। बीजेपी अपने एजेंडे से डीरेल हो चुकी है। न रोजगार दिया, नोटबंदी करा दी। हमारे यहां तो बालू-गिट्टी के दाम इतने महंगे करा दिए। देश हिन्दू राष्ट्र तो बाद में बनेगा, पहले धन तो हो। ये राम मंदिर के नाम पर जीत तो जाती है लेकिन केंद्र-राज्य में सरकार आने के बाद भी मंदिर पर अध्यादेश नहीं लाए, ट्रिपल तलाक पर ले आए, क्योंकि इनको राजनीति करनी है।'
बीजेपी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए अंत में वे दबी जबां में कहते हैं, लेकिन हम करें क्या बीजेपी को ही वोट देंगे, ब्राह्मण आदमी किसी और पार्टी को वोट देगा तो भी लोग इसे झूठ ही मानेंगे, हम अपने तो नहीं बन जाएंगे ना। फिर मजबूरी में बीजेपी को वोट दे देते हैं।'
इसके आगे शुगर मिल के पास हमारी मुलाकात एक गन्ना किसान से हुई जिन्होंने 315 रुपए एमएसपी वाले गन्ने को 100 रुपए में बेचा था। 80 साल के रामाशंकर का कहना था कि शुगर मिल गन्ना नहीं ले रही, ऐसे में उन्होंने अपना 117 क्विंटल गन्ना 100 रुपए के हिसाब से बिचौलिए को बेच दिया।
चुनाव और मतदान का जिक्र करने पर वे मटमैले से गमछे से मुंह पोंछते हुए कहते हैं, 'आ बहिनी, 5 साल मोदी जी के अउर दिहल जाइ, एक बार दे के देखब।' मैं कुछ और सवाल पूछती इससे पहले पास में लगे हैंडपंप से पानी पी रहे एक हट्टे-कट्ठे युवक ने कहा, 'मोदीजी को देंगे वोट। नहीं चाहिए हमको कुछ। हम बिना खाए रह लेंगे लेकिन वोट मोदीजी को देंगे।'
रोजगार पर मोदी सरकार की किरकिरी होती रही है। सरकार पर कोई आंकड़े जारी न करने का आरोप लगता रहा है। हरखापुर गांव में रहने वाले ज्ञानपाल के लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। वे कहते हैं कि इस बार वे राम भुआल (गठबंधन उम्मीदवार) को वोट देंगे।
जब हमने पूछा कि क्या विपक्ष से उन्हें नौकरी मिल जाने का यकीं है? इसके जवाब में वे कहते हैं, सपा में नौकरियां रोकी नहीं जाती थीं, जल्दी नतीजे आते थे। ये शुगर मिल खोल दिया है योगीजी ने लेकिन सारे लोग बाहर के हैं। ये लोग सरकारी संस्थाओं में भी ठेके पर काम करवा रहे हैं, नौकरी कैसे निकलेंगी?
पास में बैठे बुजुर्ग कुछ कहना तो चाहते थे लेकिन कुछ न कह पाने के कारण असहज थे। काफी वक्त बाद जब लोगों की भीड़ छंटी तो उन्होंने कहा कि 'बेटी हमरे त घर न बनइले मोदी। हम कही देबें त कुछ लोग मारे लागी।' यह कहकर वे चुप हो जाते हैं। चेहरे की मायूस झुर्रियां उनकी मजबूरी की दास्तां बयां करने के लिए काफी थीं।
सहजनवां में सड़क किनारे एक शख्स से हमारी मुलाकात हुई जिसने अपना नाम रमाकांत यादव बताया। वे कहते हैं, 'हमारा गांव गठबंधन के साथ है। अगर इस बार मैदान में योगीजी भी होते तो हार का सामना करना पड़ता। हम लोग अब किसी के बहकाने से नहीं बहकेंगे। पहले सब मंदिर के कारण वोट देते थे लेकिन अब हम अपने मुद्दे जानते हैं।'
यहां कई आवाजें बीजेपी के विरोध और कई मोदी के समर्थन में थीं। लेकिन इन 5 विधानसभाओं के कई गांवों में जनता के बीच पहुंचकर ये एहसास होता है कि ये चुनावी माहौल 2014 जैसा नहीं है और खासकर गोरखपुर में इस बार लोगों की जुबां पर मंदिर का जिक्र ही नहीं है। हां, शहरी इलाकों में मंदिर और महंत को लेकर मतदाताओं में चर्चा तो है लेकिन ये चर्चाएं इतनी असरदार अब नहीं लगतीं जितनी कि 90 के दशक में हुआ करती थीं।
सवर्ण बनाम पिछड़ी जाति की लड़ाई?
गोरखपुर में लगभग कुल 19 लाख वोटर हैं जिनमें 3 लाख 90 हजार से 4 लाख तक निषाद-मल्लाह वोटर हैं। 1 लाख 60 हजार मुसलमान, 2 से 2.50 लाख ओबीसी (कुर्मी, मौर्या, राजभर आदि), 1 लाख 60 हजार यादव, 1.50 से 2 लाख ब्राह्मण, 1.50 लाख तक क्षत्रिय, 1 लाख बनिया और 1.50 लाख सैंथवार वोटर हैं। यानी निषाद वोटर निर्णायक स्थिति में रहते हैं।
गोरखपुर इलाके में घूमते हुए एक बात जो साफ नजर आ रही थी वो ये कि इस बार गोरखपुर सीट पर मुकाबला सवर्ण बनाम निषाद व अन्य पिछड़ी जाति हो सकता है। गोरखपुर की राजनीति में इस बार जाति के तड़के की महक साफ महसूस की जा सकती है।
सुभाष निषाद सिंघड़ियां में रहते हैं और ऑटो चलाते हैं। इस चुनाव को वे निषाद और पिछड़ी जाति के सम्मान से जोड़ते हैं। वे कहते हैं कि योगी जब भी उम्मीदवार रहे, उनको वोट दिया। लेकिन इस बार रवि किशन को टिकट देकर बीजेपी ने अच्छा नहीं किया। प्रवीण निषाद को जहां से जीते वहीं से हटा दिया। अमरेंद्र निषाद को सपा का रास्ता देखना पड़ा है। उपचुनाव में बाबा ने सांप-छछूंदर की जोड़ी बोला। हम लोग सांप-छछूंदर हैं इन लोगों के लिए?
मंदिर, योगी और गोरखपुर
मंदिर का असर इस लोकसभा चुनाव में हल्का पड़ रहा है। इसे खुद बीजेपी के कार्यकर्ता और संगठन में प्रमुख विस्तारक की भूमिका निभाने वाले श्रवण मिश्रा भी मानते हैं। वे कहते हैं कि 'अभी तो रवि किशन के नाम का ऐलान ही हुआ है लेकिन लोगों के बीच जाकर लोगों से बात करेगा हर कार्यकर्ता और हालात बेहतर होंगे। ये सही है कि इस बार मंदिर का प्रभाव उतना नहीं है जितना रहा करता था। साथ ही रवि किशन नया नाम भी हैं और कार्यकर्ताओं से उनका जुड़ाव नहीं है। यही कारण है कि कार्यकर्ता उनके लिए उस तरह से नहीं जुट पा रहे जैसा योगी के लिए जुटा करते थे। लेकिन मोदीजी की लहर में हम पिछली बार से बेहतर कर सकते हैं।'
रविवार को गोरखपुर में सुनील बंसल, जेपी नड्डा, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ मौजूद थे। इसी दिन जब मैं बीजेपी के क्षेत्रीय कार्यालय में पहुंची तो यहां कार्यकर्ता अपने इरादे बुलंद तो बता रहे थे लेकिन चेहरे के भाव में एक थकाऊपन और उत्साह की कमी झलक रही थी। यहां बैठे तमाम कार्यकर्ता इस बात से सहमत दिखाई दिए कि रवि किशन को गोरखपुर के मुद्दे नहीं पता और न ही कार्यकर्ताओं से वे जुड़े हुए हैं।
गोरखपुर बीजेपी का जाना-माना नाम और पूर्व विधायक लल्लन त्रिपाठी कहते हैं, 'मोदीजी ने बड़ा काम किया है। उज्ज्वला से लेकर शौचालय तक लोगों को केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ हुआ है। लोग मोदीजी के नाम और काम पर वोट देंगे। रवि किशन का बाहरी होना मुद्दा नहीं है। जो लोग रवि किशन के बाहरी होने पर सवाल उठा रहे हैं, वे किसी दल से जुड़े हुए होंगे।'
क्या इस बार गोरखपुर में योगी और मंदिर कोई फैक्टर हैं? इस सवाल को वे टाल देते हैं। लेकिन वे ये जरूर मानते हैं कि गठबंधन उनके लिए बड़ी चुनौती है। वे कहते हैं, ये हमारे लिए सर्वाइवल की लड़ाई है। वे आगे कहते हैं कि मुझे भरोसा है कि विपक्ष में बिखराव जल्द होगा और हमारी ओर से चूक की इस बार कोई गुंजाइश नहीं होगी।
गोरखपुर में बीजेपी के कार्यकर्ता से लेकर आम मतदाता तक न ही रवि किशन की बात कर रहे हैं, न ही लोगों को मंदिर या योगी आदित्यनाथ से कुछ खास फर्क पड़ रहा है। यहां 2 ही तरह के लोग हमें मिले, या तो लोग मोदी के लिए वोट करना चाहते हैं या फिर महागठबंधन के साथ खड़े हैं।
कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मधुसूदन तिवारी को प्रत्याशी बनाया गया है। मधूसुदन तिवारी साफ छवि के लिए जाने जाते हैं और ब्राह्मणों के बीच में उनकी खासी पैठ है। लेकिन कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार का ऐलान 25 अप्रैल को किया है। ऐसे में लोगों के बीच अब तक उनका नाम भी नहीं पहुंच सका है। लेकिन वे जिले के ब्राह्मण वोट बांटने में सफल हो सकते हैं।
यहां मुकाबला सीधे तौर पर बीजेपी और गठबंधन में नजर आ रहा है। लेकिन सवाल ये कि क्या बीजेपी ने गोरखपुर से निषाद उम्मीदवार न उतारकर गठबंधन की राहें आसान कर दी हैं? इस सवाल के जवाब में राम भुआल निषाद, जो गोरखपुर से गठबंधन के उम्मीदवार हैं, वे कहते हैं कि हमारे वोट नहीं बंटेंगे और इस बार गठबंधन राज्य में 80 में से 75 सीटों पर जीत हासिल करेगा।
राजनीतिक पार्टियां चुनावी मौसम में जीत के कई ऐसे आंकड़े खुद के लिए निर्धारित करती हैं लेकिन राजनीति में 18 दिन काफी लंबा समय है और 19 मई तक चुनावी लहर का रुख किसकी ओर हो चले, ये कहा नहीं जा सकता।