बुधवार, 18 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Where is Yogi in Modi shah election plan
Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 21 दिसंबर 2021 (07:46 IST)

उत्तर प्रदेश चुनाव: नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चुनावी रणनीति में योगी आदित्यनाथ कहां हैं?

उत्तर प्रदेश चुनाव: नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चुनावी रणनीति में योगी आदित्यनाथ कहां हैं? - Where is Yogi in Modi shah election plan
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
कांग्रेस नेता राज बब्बर ने शनिवार को एक ट्वीट किया और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से एक ऐसा सवाल पूछा जो उनके लिए मुश्किल भरा माना गया। राज बब्बर ने लिखा, "हर जगह चेहरे की राजनीति करने वाली बीजेपी - यूपी में कन्फ्यूज़ क्यों है। योगी जी सीएम पद का चेहरा हैं न?"
 
बीजेपी की चुनाव रणनीति पर सवाल उठाते हुए उन्होंने लिखा "गृहमंत्री लखनऊ की सभा में डिप्टी सीएम की तारीफ़ ऐसे करते हैं जैसे वही इस बार बीजेपी का चेहरा हैं। अगले ही दिन प्रधानमंत्री शाहजहांपुर में मुख्यमंत्री को प्रोजेक्ट करते हैं।"
 
हालांकि, राज बब्बर पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। लेकिन उन्होंने अपने ट्वीट से जिस ओर इशारा किया है, वह बात उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बदलती चुनावी रणनीति के बारे में बताती है।
 
अलग मौका - अलग रणनीति
पिछले सात-आठ सालों में हुए विधानसभा चुनावों से जुड़ी बीजेपी की रणनीति पर नज़र डालें तो एक तरह का पिरामिड नज़र आता है।
 
इस पिरामिड में सबसे ऊपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होते हैं और उसके बाद क्रमबद्ध ढंग से तमाम राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं सम-सामायिक मुद्दों का नंबर आता है।
 
बीजेपी की कोशिश ये रहती है कि चुनावों में, विशेषत: विधानसभा चुनावों में आमने-सामने की टक्कर न हो ताकि बीजेपी को मिलने वाला वोट बिखरे नहीं और जो वोट उसके खाते में न आए वो पूरा वोट किसी एक दल के ख़ाते में न चला जाए।
 
यही नहीं, मोदी और शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी पहले-पहल तो मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम उजागर नहीं करती है।
 
अगर एक बार कर भी दिया जाए तो बीजेपी उसके नाम पर चुनाव नहीं लड़ती है। लेकिन उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस रणनीति से हटकर काम करती दिख रही है।
 
इस दिशा में सबसे पहला बयान अमित शाह की ओर से आया कि अगर "मोदी जी को 2024 में प्रधानमंत्री बनाना है तो 2022 में योगी जी को फिर एक बार मुख्यमंत्री बनाना होगा।"
 
बीजेपी की रणनीति में इस एक बयान से भी परिवर्तन दिखना शुरू हो गया। क्योंकि इस बयान में बेहद सफाई से योगी आदित्यनाथ को पीएम मोदी की ख़ातिर सीएम बनाने का आग्रह किया गया था।
 
उत्तर प्रदेश की राजनीति को गहराई से समझने वालीं वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन मानती हैं कि बीजेपी ज़रूरत के हिसाब से अपनी रणनीति को शक्ल दे रही है।
 
वह कहती हैं, "बीजेपी इस चुनाव में जगह और कार्यक्रम को ध्यान में रखकर रणनीति बना रही है। जैसे कि एक जुमला अभी सामने आया है कि योगी जी उपयोगी हैं। वैसे ही उनके लिए जिस जगह जो उपयोगी होगा, वह उसका इस्तेमाल करेंगे। उदाहरण के लिए निषाद रैली में उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य का ज़िक्र किया। क्योंकि पिछड़ा वर्ग इस बात से नाराज़ है कि अगड़ी जातियों का प्रभुत्व है। और संजय निषाद गोरखपुर से ही आते हैं। बार बार कहा जाता है कि योगी जी ने राजपूतों की राजनीति की। ऐसे में इस रैली में वह एक पिछड़े वर्ग के नेता को तरजीह देंगे। क्योंकि योगी जी की तारीफ़ करने से निषाद ख़ुश नहीं हो जाएंगे।
 
अब आप देखिएगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में योगी जी का काफ़ी नाम लिया जाएगा। क्योंकि वहां पर लोगों की नाराज़गी मोदी से ज़्यादा है, योगी से कम है। क्योंकि मोदी जी किसान क़ानून लेकर आए थे। इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान योगी को लव जिहाद जैसे मसलों पर कार्रवाई करने का श्रेय देते हैं।"
 
लेकिन सवाल ये उठता है कि बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव करने के लिए मजबूर क्यों हुई?
 
इस सवाल के जवाब में सुनीता एरॉन कहती हैं, "बीजेपी की इस रणनीति की वजह ये है कि इस चुनाव में बीजेपी को ये अहसास हुआ है कि अकेले योगी चुनाव नहीं जीत सकते। खाली उनको आगे करके अखिलेश यादव से चुनाव नहीं लड़ा जा सकता। इसलिए मोदी जी की ज़रूरत है।"
 
क्या केशव प्रसाद मौर्य बन सकते हैं विकल्प?
हाल ही में एक जनसभा के दौरान अमित शाह केशव प्रसाद मौर्य की तारीफ़ करते दिखे। यही नहीं, एक कार्यक्रम में केशव प्रसाद मौर्य नरेंद्र मोदी को कुछ जानकारी देते नज़र आए।
 
इसके बाद यूपी के राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए गए कि क्या चुनाव के बाद सीटें कम आने पर केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर विचार किया जा सकता है।
 
यूपी की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र मानते हैं, "नई भारतीय जनता पार्टी में केशव प्रसाद मौर्य एक जांचे - परखे नेता हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में वो प्रदेश अध्यक्ष थे और बीजेपी को बहुमत मिला।
 
और जाने - अनजाने भारतीय जनता पार्टी उन्हें ओबीसी नेता के रूप में प्रोजेक्ट करती रही। ऐसे में पार्टी उनकी इस छवि का फायदा उठाना चाहती है। और चूंकि उनके नेतृत्व में बहुमत मिल चुका है। ऐसे में उन्हें लगता है कि केशव मौर्य को किनारे नहीं किया जा सकता है।
 
यही नहीं, केशव मौर्य, सतीश महाना और ब्रजेश पाठक समेत कुल चार मंत्री हैं जो पांच सालों में कार्यकर्ताओं से लेकर आम लोगों से मिलते रहे हैं।
 
ऐसे में चाहें वह लोगों के काम न करा पाए हों लेकिन उनके साथ सत्ताविरोधी लहर नहीं है। और ओबीसी तबके में रुझान है कि योगी जी ने केशव मौर्य को काम नहीं करने दिया। ऐसे में एक सहानुभूति भी है। और बीजेपी उसका फायदा उठाना चाहती है।"
 
लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का ये भी मानना है कि बीजेपी कोई दरवाज़ा बंद नहीं करना चाहती है।
 
वरिष्ठ पत्रकार राजेश द्विवेदी मानते हैं कि बीजेपी अपने विकल्प खुले रखना चाहती है।
 
वह कहते हैं, "बात इतनी सी है कि बीजेपी ये नहीं चाहती कि उसके पास कम सीटें आने की स्थिति में योगी का विकल्प ही न हो। क्योंकि अगर उसे सरकार बनाने के लिए किसी का समर्थन लेना होता है तो हो सकता है कि बसपा या अन्य दल योगी को लेकर राज़ी नहीं हों। ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य काम आ सकते हैं।"
 
बीजेपी मजबूत या मजबूर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की कोशिश रहती है कि परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न हों लेकिन उनके हावभाव में मजबूरी या बेबसी दिखाई न दे।
 
लेकिन जानकारों की राय में इस चुनाव में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अखिलेश यादव के बयानों और उनकी रैलियों में आ रही भीड़ पर चर्चा कर अलग तस्वीर पेश कर रहा है।
 
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि अमित शाह के भाषणों में जिस तरह का आग्रह देखने को मिल रहा है, उससे इस चुनाव में बीजेपी की 'बेबसी और मजबूरी' के संकेत मिल रहे हैं।
 
सुनीता एरॉन इसे रेखांकित करते हुए कहती हैं, "चुनाव में पहले विपक्षी दल बाहर नहीं निकल रहे थे। इसके बाद अखिलेश जी ने अपनी रथ यात्रा शुरू की जिसमें भीड़ आती नज़र आई।
 
हालांकि, भीड़ आने का मतलब वोट नहीं होता है। लेकिन ये ज़रूर दिखाता है कि वो लोगों की पसंद हैं। और इस समय लड़ाई की स्थिति में हैं। अगर आप 2017 के चुनाव के नतीजे देखें तो उन्हें बहुत लंबा सफर तय करना पड़ेगा। और बीजेपी 325 से गिरेगी भी तो कहां जाकर गिरेगी, ये देखने की बात होगी।
 
लेकिन एक बात ये दिखाई दी, इन लोगों की आंतरिक रिपोर्ट भी रही होंगी, कि इस चुनाव में ध्रुवीकरण हो रहा है। दो भागों में बंट रहा है। बीजेपी के लिए ये कहीं से ठीक नहीं है। क्योंकि वह चाहते हैं कि चुनाव मल्टी कॉर्नर्ड यानी कई कोणों में बंटा हुआ हो। ताकि उनके ख़िलाफ़ जो वोट हो, बंट जाए। इस तरह उनके लिए चुनाव लड़ना आसान हो जाता है।
 
अब जो भी सरकार दोबारा चुनाव में जाती है, उसके ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर होती है। और यूपी में 2007 के बाद कोई भी सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई है। और बीजेपी के लिए 2024 के लिहाज़ से यूपी जीतना बहुत ज़रूरी है। ऐसे में एक तरह की डेस्परेशन है।"
ये भी पढ़ें
मैनपुरी में अखिलेश यादव की सभा में भीड़ बेकाबू, बैरिकेडिंग तोड़े