अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बनाई जा रही सुरंग में 17 दिन से फंसे 41 मज़दूरों को मंगलवार शाम सुरक्षित निकाल लिया गया है। इन मज़दूरों की सेहत फ़िलहाल ठीक बताई जा रही है। लेकिन प्रारंभिक जांचों के लिए इन्हें ऋषिकेश स्थित एम्स ले जाया गया है।
डॉक्टरों की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद ये मज़दूर अपने-अपने घर जा सकेंगे। ऐसे में 17 दिन बाद ही सही लेकिन इन मज़दूरों के भविष्य पर छाए काले बादल छंट गए हैं।
हालांकि, इस सुरंग के भविष्य पर छाए काले बादल छंटते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में बीबीसी ने इस परियोजना से जुड़ी निजी और सरकारी फर्मों से संपर्क करके इस दिशा में उठाए जा रहे क़दमों को समझने की कोशिश की है।
चारधाम परियोजना वाली सुरंग का क्या होगा?
त्तरकाशी में बनाई जा रही ये सुरंग केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम परियोजना का हिस्सा है। इसके ज़रिए एक ऐसा रास्ता तैयार करने की कोशिश की जा रही है, जिससे हर मौसम में यमुनोत्री तक पहुँचा जा सके।
सिलक्यारा से बरकोट के बीच राडी नामक पहाड़ में छेद करके बनाई जा रही इस सुरंग की लंबाई 4।5 किलोमीटर होगी। इस सुरंग की वजह से धारासू और यमुनोत्री के बीच यात्रा में लगने वाले समय को एक घंटे एवं बीस किलोमीटर कम किया जाएगा।
ऐसे में एनएच-134 पर पड़ने वाली ये डबल लेन सड़क चारधाम परियोजना के लिहाज़ से काफ़ी अहम है। बचाव अभियान पूरा होने के बाद एनएचआईडीसीएल के महा प्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल ने बताया है कि इस सुरंग का काम युद्ध स्तर पर शुरू कराने की तैयारियां चल रही हैं।
उन्होंने कहा, “हम युद्ध स्तर पर काम वापस शुरू कराएंगे। ये कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। हम जल्द ही सुरंग बनाने के तय नियमों का पालन करते हुए इसे सुधारेंगे और इसके आरपार निकल जाएंगे। इसमें सिर्फ 485 मीटर सुरंग खोदा जाना शेष है। हमें लगता है कि पांच से छह महीने में आर-पार निकलने की कोशिश करेंगे।”
लेकिन इस सुरंग के निर्माण में लगे इंजीनियरों के सामने पहली चुनौती 12 नवंबर को हुए भूस्खलन से गिरे मलबे को साफ़ करना है।
कैसे साफ़ होगा मलबा?
इस साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग में भूस्खलन की वजह से लगभग 60 मीटर क्षेत्र में मलबा पसरा हुआ है। इस मलबे में पहाड़ी मिट्टी और पत्थरों के साथ-साथ लोहे के सरिए भी शामिल हैं।
बचाव अभियान के दौरान मज़दूरों तक पहुँचने के लिए बनाए जा रहे रास्ते में सरिए आने की वजह से ही खुदाई करने वाली ऑगर मशीन टूट गई थी।
ऐसे में अब जब बचाव अभियान पूरा हो गया है तो सुरंग निर्माण में लगे इंजीनियर मलबे को किस तरह निकालेंगे।
बीबीसी ने इस परियोजना के निर्माण कार्य पर नज़र रख रही सरकारी कंपनी नेशनल हाइवेज़ एंड इन्फ़्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक कर्नल संदीप सुधेरा से बात की है।
कर्नल सुधेरा बताते हैं, “ये मलबा 60 मीटर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है। ऐसे में पहले हम मिट्टी गिरने की वजह से जो ख़ालीपन आया है, उसे भरने की दिशा में काम करेंगे। ऐसा करने की एक तय प्रक्रिया है जिसके तहत ही काम किया जाएगा। लेकिन ये काफ़ी मेहनत और सावधानी भरा काम है। ऐसे में सुरंग के क्षेत्र में स्थिरता लाते हुए धीरे-धीरे ऊपर से नीचे काम करते हुए मलबे को निकालने की तरफ़ कदम उठाएंगे।”
कब से शुरू होगा काम?
बचाव अभियान ख़त्म होने के साथ ही सुरंग के बाहर मची हलचल एकाएक रुक सी गई है। यहाँ मौजूद लोगों की संख्या भी तेजी से घट रही है और जल्द ही सुरंग के बाहर मौजूद लोगों में परियोजना से जुड़े लोग ही बहुतायत में होंगे।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस सुरंग के निर्माण में लगे इंजीनियर मलबा हटाने का काम कब तक शुरू कर सकते हैं।
कर्नल सुधेरा बताते हैं, “हम एक दो दिन का ब्रेक ले रहे हैं। क्योंकि इस परियोजना से जुड़े लोग पिछले 17 – 18 दिनों से लगातार बचाव अभियान में लगे हुए थे। ऐसे में दो दिन के अंतराल के बाद मलबा हटाने की दिशा में काम शुरू होगा।”
इस मामले में एक सवाल लगातार पूछा जा रहा है कि क्या सुरंग निर्माण के दौरान सभी ज़रूरी सावधानियां बरती गईं या नहीं।
बीबीसी ने कर्नल सुधेरा से भी इस बारे में पूछा कि मलबा हटाने और उसके बाद निर्माण की प्रक्रिया में किस तरह की सावधानियों का ध्यान रखा जाएगा।
इसके जवाब में कर्नल सुधेरा ने कहा कि हम सभी तय मानकों को ध्यान में रखते हुए ही आगे की कार्रवाई करेंगे। पहले इस क्षेत्र में संतुलन कायम किया जाएगा। इसका मतलब ये है कि पहाड़ और सुरंग से जुड़ी सभी चीज़ों में संतुलन कायम होना ज़रूरी है। उसके बाद ही आगे की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।”
कब तक पूरी हो पाएगी सुरंग?
साल 2018 में कैबिनेट की स्वीकृति हासिल करने वाले इस सुरंग प्रोजेक्ट को चार सालों के अंदर पूरा हो जाना था। लेकिन ये हादसा होने से पहले भी इस सुरंग में 483 मीटर क्षेत्र में खुदाई किया जाना शेष है। खुदाई का काम पूरा होने के बाद सुरंग में बिजली के तार लगाने के साथ ही लाइनिंग जैसे काम किए जाएंगे।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि ये काम कब तक पूरा होने की संभावना है। कर्नल सुधेरा बताते हैं, “ये बात सही है कि इस हादसे की वजह से सुरंग के काम में रुकावट आई है। और अब हमें बेहद सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा। लेकिन अगले कुछ महीनों में हम सुरंग में खुदाई का काम पूरा कर लेंगे।"
"इसके बाद सुरंग में बिजली पहुंचाने से लेकर वेंटिलेशन आदि के लिए वेंटिलेशन फैन जैसी मशीनें लगाने का काम किया जाएगा। ऐसे में अगले साल अक्टूबर-नवंबर तक सुरंग निर्माण पूरे होने की संभावना है।”
क्या आपातकालीन द्वार बनेंगे?
ये हादसा होने के बाद से लगातार एक सवाल पूछा जा रहा है कि सुरंग निर्माण के दौरान कोई हादसा होने की स्थिति में आपातकालीन द्वार क्यों नहीं बनाए गए।
बीबीसी ने भी यही सवाल कर्नल सुधेरा से पूछा तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि सुरंग का काम पूरा होने के बाद आपातकालीन द्वार बनाए जाएंगे।
उन्होंने कहा, “सुरंग में आपातकालीन द्वार अग्निकांड जैसे किसी हादसे से बचने के लिए बनाए जाते हैं। और ये दरवाजे सुरंग की खुदाई पूरी होने पर बनाए जाते हैं। इस सुरंग में भी हम जाने और आने के रास्ते को एक दीवार से विभक्त करेंगे जिससे हवा पास नहीं हो सकेगी। ऐसे में अगर एक मार्ग पर आग आदि लग जाती है तो वहां फंसे लोग दीवार में बनाए गए आपातकालीन द्वारों के ज़रिए दूसरे मार्ग से सुरक्षित बाहर निकल सकें।”