मिथुन प्रमाणिक, बीबीसी ट्रैवेल
बीती सदी के दूसरे हिस्से में भारत में पुरातत्वविदों ने आज के शहर द्वारका के क़रीब ही इसी नाम के एक और प्राचीन शहर की पानी के नीचे तलाश शुरू की थी। विशेषज्ञों की कोशिश है कि ऐसे सबूत मिलें ताकि इसके अस्तित्व के बारे में विवाद समाप्त हो सके।
भारतीय पुरातत्व विभाग के एडीजी डॉक्टर आलोक त्रिपाठी बताते हैं कि "भारत में द्वारका की ख़ास अहमियत है। ये वो शहर है जो महाभारत में बयान की गई कहानी के ज़माने में मौजूद था।"
डॉ. आलोक त्रिपाठी पानी के नीचे प्राचीन अवशेषों के विशेषज्ञ हैं। वो हिंद महासागर में डूबे हुए खंडहरों को तलाश करते हैं। उनका कहना है कि, "पानी के नीचे के खंडहरों की सबसे अहम खुदाइयों में से एक द्वारका की खोज के सिलसिले में की गई थी। ये जगह अपने इतिहास, धार्मिक अहमियत की वजह से और ज़ाहिर है कि पुरातत्व की वजह से भी ख़ास है।"
द्वारका की कहानी
महाभारत काल की किंवदंतियों में इस शहर का श्रीकृष्ण के साम्राज्य के रूप में ज़िक्र मिलता है। कहा जाता है कि ये शहर श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद ही जलमग्न हो गया।
द्वारका मंदिर के पुरोहित मुरली ठाकुर कहते हैं कि, "भगवान कृष्ण इस शहर में सौ साल तक रहे। द्वारका 84 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में फैला हुआ किलेबंद साम्राज्य था जो गोमती नदी के किनारे स्थापित था और गोमती का यहां हिंद महासागर में संगम होता है।"
द्वारका मंदिर के प्रबंधक नारायण ब्रह्मचार्य कहते हैं कि, "जब भगवान कृष्ण इस दुनिया को छोड़कर गए तो समंदर के पानी ने द्वारका को अपने में समा लिया। महाभारत के तीसरे अध्याय में वर्णित है कि जब श्रीकृष्ण 125 साल बाद इस पृथ्वी से स्वर्ग लोक सिधारे तो समुद्र के देवता ने कृष्ण के महल के अलावा बाक़ी ज़मीन वापस ले ली।"
डॉक्टर आलोक त्रिपाठी के मुताबिक, "पिछली शताब्दी के मध्य में पुरातत्वविदों ने ठोस सबूत तलाश करने की कोशिश की है ताकि वो इसे ऐतिहासिक रुप से स्थापित कर सकें। 1960 के दशक में खुदाई की पहली कोशिश पुणे के डक्कन कॉलेज ने की थी और 1979 में भारतीय पुरातत्व सर्वे ने एक और कोशिश की थी, इस दौरान विशेषज्ञों को पुराने बर्तनों के कुछ अवशेष मिले थे जो उनके विचार से 2000 ईसा पूर्व के थे।"
जलमग्न द्वारका की खोज
काउंसिल ऑफ़ साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएएसआईआर) के पूर्व प्रमुख और वैज्ञानिक डॉक्टर राजीव निगम कहते हैं कि "महाभारत में कृष्ण कहते हैं कि द्वारका शहर सागर से निकली ज़मीन पर बनाया गया था लेकिन जब उसका पानी दोबारा अपनी पुरानी जगह पर आया तो शहर डूब गया।"
वो बताते हैं कि, "पानी के नीचे खुदाई का काम मौजूदा द्वारकाधीश मंदिर के पास से शुरू हुआ था। यहां कई मंदिरों की एक श्रंखला मिली है जिसका मतलब ये है कि जैसे-जैसे पानी चढ़ता गया, मंदिरों की जगह आगे सरकती गई। इस अवलोकन ने भारत के चर्चित पुरातत्वविद डॉ। एस आर राव को आश्वस्त किया कि क्यों ना समंदर के किनारे खुदाई की जाए ताकि पता चल सके कि यहां इस डूबे हुए शहर के वास्तविक सबूत हैं।"
डॉक्टर आलोक त्रिपाठी के मुताबिक, "खुदाई और खोज लगाने के काम के दौरान कई तरह की कलाकृतियां और अवशेष मिले। हमें यहां सुंदर रंगीन वस्तुओं मिली हैं जिनमें कई रंग इस्तेमाल किए गए हैं। हमें सफ़ेद सतह पर सुर्ख़ काम मिला। यहां से पांच सौ से अधिक कलाकृतियां और अलग-अलग नमूने मिले हैं जो कि दो हज़ार वर्षों की सांस्कृतिक निरंतरता का ठोस प्रमाण है। हमें पानी के नीचे पत्थरों के बने हुए ब्लॉक की शक्ल के ढांचे मिले हैं, हालांकि हमें उन पत्थरों और बाहर मिलने वाले पत्थरों के बीच संबंध नहीं मिला और वहां बहाव बहुत तेज़ है।"
पुरातात्विक साक्ष्य
समंदर के भीतर से प्राचीन द्वारका शहर की कई कलाकृतियां मिली हैं। पत्थर के ब्लॉक, स्तंभ और सिंचाई के उपकरण आदि। लेकिन यहां मिली प्राचीन कलाकृतियों की उम्र को लेकर अभी भी बहस चल रही है।
डॉक्टर आलोक त्रिपाठी कहते हैं कि, "साल 2007 में विस्तृत खुदाई की गई। मैं इस प्रोजेक्ट का निदेशक था। द्वारका भारत के पश्चिमी छोर पर है। उसकी लोकेशन वहीं है जैसी कि ऐतिहासिक साहित्य में वर्णित है। यह गोमती नामक छोटी सी नदी है जो समंदर में मिल जाती है और द्वारका की नगरी है।"
"इसलिए हमने इसके इर्द गिर्द 200 वर्ग मीटर जगह को खुदाई के लिए चुना और हमने पुरातत्व विज्ञान के मुताबिक इस इलाक़े की गहरी छानबीन की। हमने देखा कि 50 वर्ग मीटर में अधिक कलाकृतियां मिली जो बड़े आकार की हैं और अधिक मज़बूत हैं।"
उन्होंने बताया कि, "यहां हमें दस मीटर की एक जगह में खंडहर मिले जिन्हें समंदर ने तबाह कर दिया था। हमने ने तकरीबन दो नॉटिकल मील गुणा एक नॉटिकल मील इलाक़े का हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे कराया। इस इलाक़े के हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे के डाटा से पता चलता है कि नदी का प्रवाह बदल रहा है।"
"हमने इसे बहुत सटीक रूप से मापा और सही तरीक़े से गोताखोरी की जगहों की निशानदेही की। हम जहां गए वहां पत्थरों पर नंबर लगा दिए। अगर आप अधिक गहराई में जाएं तो आपको नज़र आएगा कि ये जगहें प्राकृतिक वनस्पतियों से ढंकी हुई हैं और जब आप इन्हें करते हैं तो इनकी आकृतियां स्पष्ट होने लगती हैं। इस जगह पर बहुत सारे पत्थर मिले हैं जो ये साबित करते हैं कि यहां निसंदेह कोई बड़ा बंदरगाह रहा होगा।"
डॉक्टर राजीव निगम कहते हैं कि, "ये जानने के लिए कि समंदर की सतह में क्या उतार चढ़ाव आया, हमने कंप्यूटर के ज़रिए पिछले पंद्रह हज़ार सालों के रिकॉर्ड की एक प्रोजेक्शन बनाई। पंद्रह हज़ार साल पहले समंदर की सतह सौ मीटर नीचे थी। फिर समंदर की सतह ऊपर आना शुरू हुई और सात हज़ार साल पहले समंदर की सतह मौजूदा सतह से अधिक थी और साढ़े तीन हज़ार साल पहले द्वारका शहर आबाद था। इसके बाद समंदर दोबारा ऊपर आया और ये शहर डूब गया।"