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Last Updated : शुक्रवार, 15 जुलाई 2022 (15:58 IST)

6 साल की उम्र में ही बन गया था चमत्कारी बालक, 12 वर्ष की आयु में फिजिक्स में PHD

6 साल की उम्र में ही बन गया था चमत्कारी बालक, 12 वर्ष की आयु में फिजिक्स में PHD - Wonder Boy Laurent simons
बेल्जियम का 12 साल का लाउरेंट सिमोन्स इस समय दुनिया का संभवतः सबसे मेधावी बालक है। वह 6 वर्ष की आयु में ही देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गया। उसे अब भौतिकी (फ़िज़िक्स) में मास्टर की डिग्री भी मिल गई है। जो कुछ भी एक बार देख, पढ़ या सुन लेता है, एक फ़ोटो की तरह हमेशा के लिए उसे याद हो जाता है।

लाउरेंट सिमोन्स जब छह साल का था, तभी से बेल्जियम में 'चमत्कारिक बालक' बन गया था। उसे और उसके माता-पिता को इंटरव्यू के लिए रेडियो एवं टेलीविज़न स्टूडियो में बुलाया जाने लगा था। बेल्जियम में सामान्य बच्चे इस आयु में स्कूल जाना शुरू करते हैं। वह चार साल की आयु से ही स्कूल जाने लगा था। जन्मदिन है 26 दिसंबर 2009।

प्राथमिक (प्राइमरी) स्कूल की छह साल की पढ़ाई लाउरेंट ने दो ही साल में पूरी कर ली। हाईस्कूल की छह वर्षों की पढ़ाई भी सबसे अधिक अंकों के साथ केवल 17 महीने में निपटा दी।हाईस्कूल की अंतिम चार क्लासें वह एक ही बार में फांद गया। बिना कभी फ़ेल हुए 12वीं तक की सरपट पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों की आयु तब तक 18 वर्ष या अधिक की हो जाती है, जबकि लाउरेंट की आयु केवल आठ वर्ष ही थी।

उसके शिक्षक और पत्रकार उसमें खगोल भौतिकी के महारथी स्टीफ़न हॉकिंग या भौतिकी में सापेक्षवाद सिद्धांत के प्रणेता अल्बर्ट आइंस्टीन का एक नया अवतार देखने लगे। 145 अंकों का उसका मेधा-सूचकांक (आईक्यू/ इंटेलीजेंट कोशंट)  इन दोनों महारथियों से केवल 15 अंक कम पाया गया।

माता-पिता दंत चिकित्सक हैं
लाउरेंट के माता-पिता दंत चिकित्सक हैं। मां नीदरलैंड की हैं और पिता बेल्जियम के। दोनों का बेल्जियम के ब्रुइगे शहर में दंत चिकित्सा का अपना दवाख़ाना था। दोनों इतने व्यस्त रहते थे कि लाउरेंट को शुरू के चार वर्ष बेल्जियम के ओस्टएंटे शहर में अपने दादा-दादी के यहां रहना पड़ा। जनवरी 2017 से पूरा परिवार नीदरलैंड के सबसे बड़े शहर एम्सटर्डम में रहने लगा। लाउरेंट की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने के लिए माता-पिता ने दंत चिकित्सा की अपनी प्रैक्टिस तक स्थगित कर दी।

आगे की पढ़ाई के लिए माता-पिता ने आठ वर्ष की आयु में ही लाउरेंट को नीदरलैंड के आइन्डहोवन तकनीकी विश्‍वविद्यालय में भर्ती करा दिया। उसके पिछले कीर्तिमानों को देखते हुए विश्‍वविद्यालय ने उसे बड़े शौक से भर्ती भी कर लिया। डेढ़ वर्ष से भी कम समय में उसने 2019 में सबसे अधिक अंकों के साथ बैचलर की स्नातकीय डिग्री प्राप्त कर ली।

विश्वविद्यालय में भी लाउरेंट 6 महीनों के हर सेमेस्टर की पढ़ाई केवल एक महीने में ही पूरी कर लेता था। वह न केवल सबसे कम आयु का छात्र था, बल्कि अपने विश्वविद्यालय के इतिहास में भौतिकी में सबसे अधिक अंक पाने वाला मेधावी छात्र भी बना। उसकी चमत्कारिक मेधा के कारण उसके प्रोफ़ेसर उसे अलग से अकेले पढ़ाते थे।

मेधावी होने का पैमाना
इस समय प्रचलित तथाकथित 'आई-क्यू टेस्ट' वाले पैमाने के अनुसार, मेधावी उसी को माना जाता है, जिसका मेधा-सूचकांक 130 से अधिक हो। उदाहरण के लिए, विज्ञान और तकनीक के देश जर्मनी की जनसंख्या में इस प्रकार के लोगों का अनुपात दो प्रतिशत से भी कम आंका जाता है। औसत सूचकांक 100 है। जिस किसी का मेधा-सूचकांक 140 से अधिक हो, वह 'अत्यंत मेधावी' कहलाता है।

लाउरेंट सिमोन्स ऐसे ही असाधारण प्रतिभावान भाग्यशालियों में से एक है। कई अध्ययनों के आधार पर हिसाब लगाया गया है कि लाउरेंट के 145 आईक्यू अंकों जैसे लोगों का मिलना इतना दुर्लभ है कि समाज में उनका अनुपात 0.1 प्रतिशत यानी एक हज़ार लोगों के बीच यदि केवल एक के बराबर हो, तब भी बड़ी बात है।

महत्वाकांक्षी माता-पिता
लाउरेंट के माता-पिता भी इस बीच थोड़े महत्वाकांक्षी हो गए थे। चाहते थे कि उनका बेटा सबसे कम आयु में विश्वविद्यालय की मास्टर डिग्री पाने का विश्व रिकॉर्ड भी तोड़ दे। यह रिकॉर्ड अमेरिका के माइकल कर्नी ने 10 वर्ष की आयु में बनाया था। इसके लिए लाउरेंट को 3 साल की विश्‍वविद्यालयी पढ़ाई 10 महीनों में पूरी करनी पड़ती।

लेकिन 2020 आने के साथ कोरोनावायरस का आतंक फैलने लगा था। विश्वविद्यालय के डीन ने भी लाउरेंट के माता-पिता से कहा कि वे उस पर तेज़ी से आगे की पढ़ाई करने के लिए ज़ोर न लगाएं। लाउरेंट के पिता ने इसका अर्थ यह लगाया कि विश्वविद्यालय उनके बेटे को कुछ और समय अपने पास रखना और नया विश्व रिकॉर्ड बनाने से वंचित करना चाहता है। वह इसे शायद कर लेता, पर लगता है कि बेल्जियम के अंटवेर्प विश्वविद्यालय के अनमनेपन के चलते ऐसा हो नहीं पाया।

एक ही साल में भौतिकी में MSc
समय का सदुपयोग करने के उद्देश्य से लाउरेंट ने जर्मनी के म्यूनिक विश्वविद्यालय का एक अतिथि छात्र बनकर म्यूनिक के पास ही स्थित क्वान्टम-ऑप्टिक्स के माक्स प्लांक संस्थान में लेज़र किरणों की सहायता से रक्त में कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाना के शोधकार्य में हिस्सा लिया। बेल्जियम के अन्टवेर्प विश्वविद्यालय ने मंगलवार, 12 जुलाई को बताया कि अब 12 साल के हो गए लाउरेंट सिमोन्स ने एक ही साल के भीतर सर्वश्रेष्ठ अंकों के साथ भौतिकी में MSc (मास्टर ऑफ़ साइंस) की उपाधि भी प्राप्त कर ली है।

इस समय की गर्मियों की छुट्टी के बाद लाउरेंट चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई करने की सोच रहा है, हालांकि अभी कुछ तय नहीं कर पाया है। उसकी हार्दिक इच्छा है ऐसे शोध कार्य करने की, जिनसे मानव जीवन को बढ़ाया जा सके।

देश-विदेश में अपनी सारी प्रसिद्धि के बावजूद लाउरेंट अब भी वैसा ही एक हंसमुख, खुशदिल पर संकोची बालक है, जैसा वह पहले भी हुआ करता था। कहता है, मैं चीज़ों के बारे में अच्छी तरह जानना चाहता हूं। मां लीदिया के अनुसार, वह हमेशा ऐसा ही था। हमेशा पूछा करता था– क्यों, क्यों, क्यों? पिता अलेक्सांदर सिमोन्स कहते हैं, यदि वह किसी को पसंद करता है, तो बड़े धीरज के साथ अपनी बात भलीभांति समझा भी सकता है।

भाषाएं और शतरंज पसंद नहीं
भौतिकी का छात्र होने के नाते लाउरेंट को गणित से लगाव होना सहज-स्वाभाविक है। अपने स्कूली दिनों के एक रेडियो-इंटरव्यू में उसने कहा, गणित में सांख्यिकी (स्टैटिस्टिक्स), भूमिति (जिओमेट्री), बीजगणित (अल्जेब्रा) जैसे सारे विषय आ जाते हैं। इतिहास और भूगोल से भी काफ़ी लगाव था। इतिहास में शीतयुद्ध वाला समय मुझे सबसे दिलचस्प लगा। भाषाएं सीखना उसे अच्छा नहीं लगता।

कहा जाता है कि दिमाग़ तेज़ करने के लिए शतरंज का खेल सबसे उपयुक्त है। किंतु लाउरेंट के पिता का कहना है कि उसे तो शतरंज बिलकुल पसंद नहीं है। वह शतरंज को बहुत उबाऊ पाता है। खिलौनों से खेलने के बदले वह उन्हें खोल-खाल कर उनके कल-पुर्ज़ों का अध्ययन करता है। तैराकी और कंप्यूटर-गेम उसे अधिक पसंद हैं।

स्कूल में शिक्षकों का तो वह चहेता था, पर अपने सहपाठियों का नहीं। शिक्षक अपना कोई प्रश्न पूरा भी नहीं कर पाते थे कि वह उत्तर देना शुरू कर देता था। सहपाठी उससे चिढ़ते-जलते थे। अंततः उसके लिए एक अलग, विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया गया और हर विषय उसे अकेले पढ़ाया जाने लगा। पिता अलेक्सांदर बड़े गर्व से कहते हैं, लाउरेंट तब खिल उठता है, जब उसे कोई चुनौती मिलती है। तब वह इतना तेज़ हो जाता है कि हम बराबरी नहीं कर पाते।

स्वीडन की ग्रेटा तुनबेर्ग की तरह ही लाउरेंट सिमोन्स भी जलवायु रक्षा का दीवाना है। उसकी ज़िद के कारण उसके माता-पिता को अपनी डीज़ल कार त्याग देनी पड़ी और बदले में बिजली चालित एक नई कार ख़रीदनी पड़ी। छुट्टियां मनाने के लिए विमान से स्पेन जाना भी बहुत कम कर देना पड़ा। जलवायु रक्षा के संदर्भ में लौरां का कहना है, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम का कभी न कभी कोई तकनीकी समाधान भी मिल ही जाएगा। हमें तकनीकी शोध में और अधिक निवेश करना चाहिए।