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Written By BBC Hindi
Last Updated : रविवार, 22 सितम्बर 2019 (10:12 IST)

#HowdyModi में ट्रंप-मोदी के साथ आने से किसे क्या हासिल होगा

#HowdyModi में ट्रंप-मोदी के साथ आने से किसे क्या हासिल होगा - Narendra Modi America Donald Trump Howdy Modi
ब्रजेश उपाध्याय
वॉशिंगटन से, बीबीसी हिंदी के लिए
 
पांच साल पहले जब नरेंद्र मोदी ने 'भारत मां की जय' और अपने नाम के नारों के बीच अमेरिका की धरती पर पहली बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर क़दम रखा था, तब बहुत से लोगों ने इसे बड़ा उत्साह और जोखिम भरा काम बताया था।
 
न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वेयर गार्डन में जुटी भारी भीड़ ने जब मोदी का रॉक स्टार की तरह स्वागत किया था तो उसे उस नेता की जीत के तौर पर देखा गया था जिसे अमेरिका क़रीब एक दशक तक वीज़ा देने से इनकार करता आया था।
 
इस रविवार को नरेंद्र मोदी टेक्सस के ह्यूस्टन में उससे कहीं ज़्यादा बड़ी भीड़ को संबोधित करने वाले हैं। जब वो भाषण दे रहे होंगे तब उनकी बगल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी मौजूद रहेंगे।
 
कई विश्लेषक यह मान रहे हैं कि इस दृश्य के ज़रिए मोदी कश्मीर पर अपने विवादास्पद क़दम की अंतरराष्ट्रीय आलोचना को कुछ हद तक कम कर पाएंगे।
 
इस आयोजन का नाम 'हाउडी मोदी' रखा गया है। इसमें 50 हजार से अधिक लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। भारत से बाहर मोदी समर्थकों की यह सबसे बड़ी भीड़ एनआरजी स्टेडियम में जुटेगी।
क्या हैं मायने
नरेंद्र मोदी और ट्रंप का इस तरह से एकसाथ मौजूद रहना मोदी की पीआर टीम की जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है। मगर यह आयोजन भारत और अमेरिका के आपसी संबंधों की बढ़ती अहमियत की गवाही भी देता है।
 
ओबामा के कार्यकाल में विदेश मामलों की सहायक मंत्री रहीं निशा बिस्वाल बताती हैं, "यह भारतीय मूल के अमरीकी समुदाय की ताकत को दर्शाता है।" निशा के मुताबिक राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का टेक्सस जाने का फ़ैसला एक अच्छी बात है।
 
इन दिनों अमेरिकी-भारतीय व्यापार परिषद की प्रमुख निशा बिस्वाल बताती हैं, "भारत-अमेरिका संबंध अब व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तर से कहीं आगे बढ़ चुके हैं।"
 
इवेंट का आयोजन कर रही टैक्सस इंडिया फ़ोरम ने डेमोक्रेट्स नेताओं को भी आमंत्रित किया है। इनमें स्टेने होयर और अन्य कांग्रेस सदस्य भी शामिल हैं।
 
इसके अलावा आमंत्रित मेहमानों में कई अमेरिकी अधिकारी और गवर्नर भी शामिल हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स, दोनों के प्रतिनिधियों के बीच संतुलन का ध्यान रखा गया है।

 
क्या है उम्मीद
आयोजन के लिए ह्यूस्टन को ही चुने जाने पर भी किसी को अचरज नहीं हो रहा है। भारत ह्यूस्टन का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है।
 
ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए आने वाले दिनों में अमरीकी तेल और गैस की बिक्री भी बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। भारत के लिहाज़ से यह अमरीका के साथ अपने संयुक्त व्यापार घाटे को कम करने का मौक़ा होगा, जो ट्रंप के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।
 
दोनों देश पिछले डेढ़ साल से चले आ रहे अपने कारोबारी मतभेदों को भुलाकर कुछ नई घोषणाएं भी कर सकते हैं, इस बात के भी पुख्ता संकेत मिल रहे हैं।
 
वॉशिंगटन के ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट में भारतीय प्रोजेक्ट की निदेशिका तन्वी मदान बताती हैं, "अगर ऐसा होता है तो यह बात होगी कि जीत किसकी हुई और इसका श्रेय राष्ट्रपति लेना चाहेंगे।"
 
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ख़ुद भव्य प्रदर्शन और भारी भीड़ के पसंद करते हैं। यह आयोजन एक तरह से अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए भारतीय अमेरिकियों को भी रिझाने का मौक़ा उपलब्ध करा रहा है।
 
पत्रकारों से बात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि "उनके लिए (मोदी के लिए) भारी भीड़ आ रही है। मुझे उम्मीद है कि वहां ज़्यादा बड़ी भीड़ पहुंचेगी क्योंकि उन्होंने अभी केवल घोषणा की है और पूछा है कि क्या मैं जाऊंगा। मैं वहां जाऊंगा।"
 
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 32 लाख है, जो अमेरिका की कुल आबादी का एक ही प्रतिशत है लेकिन यह समुदाय अमरीका के सबसे धनी समुदायों में एक है।
 
इनमें से अधिकांश डेमोक्रेट समर्थक हैं। एशियन अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फ़ंड के सर्वेक्षण के मुताबिक 2016 के चुनाव में इन लोगों ने हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था। राष्ट्रवादी नज़रिए और भारत की महानता को फ़िर से स्थापित करने के वादे के चलते इस समुदाय में नरेंद्र मोदी बेहद लोकप्रिय हैं।
 
मदान बताती हैं, "मुझे भरोसा है कि रिपब्लिकन पार्टी के लोगों को उम्मीद होगी कि इसमें कई लोग पाला बदलकर उन्हें वोट देंगे।" कई विश्लेषकों ने इस आयोजन को दोनों नेताओं के लिए फ़ायदेमंद बताया है लेकिन हर कोई इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं है।
 
आलोचना के स्वर
मोदी की यात्रा उनके सरकार के उस फ़ैसले के कुछ दिनों के बाद हो रही है जिसमें मुस्लिम बहुल कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया गया है और उस इलाके में संचार व्यवस्थाओं पर पाबंदी लगी हुई है।
 
भारत सरकार के इस फ़ैसले से पड़ोसी पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ा है। पाकिस्तान भी इस हिस्से पर अपना दावा जताता रहा है। इसके अलावा मुस्लिम संगठन और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं।
भारतीय-अमेरिकी समुदाय की कांग्रेस सदस्य प्रमिला जयपाल सहित कई अमरीकी कांग्रेस प्रतिनिधियों ने इस आयोजन को लेकर अपनी चिंता जताई है।
 
सामाजिक कार्यकर्ता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि फ़्री वर्ल्ड के नेता अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप जब मोदी के साथ खड़े होंगे तो इससे यह संदेश जाएगा कि ट्रंप मोदी की नीतियों के साथ खड़े हैं।
 
मानवाधिकार मामलों के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अर्जुन सेठी बताते हैं, "यह एक ग़लत क़दम है, ट्रंप को वहां नहीं होना चाहिए।" अजुर्न सेठी कहते हैं, "हमें हाउडी मोदी की जगह गुडबाय मोदी कहना चाहिए।"
 
विरोध की तैयारी
रटगर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर आड्रे ट्रूशके ने ट्वीट किया है, "मैं नहीं जानता कि क्या ज़्यादा शर्मनाक है- मोदी ट्रंप के बगल में मौजूद होंगे या फिर ट्रंप के बगल में मोदी। दोनों देशों के लिए मेरी शोक संवेदनाएं है।"
 
आयोजन स्थल के निकट हजारों प्रदर्शनकारी जमा होकर भारतीय प्रधानमंत्री के विरोध की योजना भी बना रहे हैं, इसमें अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग हैं।
 
मोदी ह्यूस्टन में लोगों को संबोधित करने के कुछ ही दिनों बाद गेट्स फाउंडेशन का सम्मान भी ग्रहण करेंगे। देशभर में लाखों शौचालय बनाने वाले उनके स्वच्छ भारत अभियान के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है।
 
इस सम्मान के बहाने भी लोग कश्मीर को लेकर मोदी के फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। एक लाख लोगों के हस्ताक्षर के साथ इस सम्मान को रद्द करने की मांग वाली याचिका सिएटल स्थित गेट्स फ़ाउंडेशन के मुख्यालय में जमा की गई है।
 
कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों पर लग रहे प्रताड़ना के आरोपों पर अर्जुन सेठी कहते हैं, "अगर आप एक कमरे में शौचालय बनाते हैं और दूसरे कमरे में एक शख़्स को प्रताड़ित करते हैं तो आप किसी भी मानवाधिकार सम्मान के लिए योग्य नहीं हैं।"
 
हालांकि गेट्स फ़ाउंडेशन सम्मान रद्द करने के लिए तैयार नहीं हुआ है। इसके संस्थापक बिल गेट्स ने वॉशिंगटन पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में कहा है, "हमें लगता है कि सरकार के मुखिया ने स्वच्छता के लिए क़दम उठाए हैं, यह सम्मान देने योग्य बात है।"
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