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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 2 जून 2020 (14:16 IST)

कोरोना वायरस से जुड़ी सबसे रहस्यमयी और सनसनीखेज़ कहानी

कोरोना वायरस से जुड़ी सबसे रहस्यमयी और सनसनीखेज़ कहानी - most sensational story related to Corona
डेविड शुकमैन, साइंस एडिटर, बीबीसी न्यूज़
जैसे जैसे कोविड-19 की महामारी दुनिया भर में बढ़ रही है, वैसे वैसे वैज्ञानिकों को नए कोरोना वायरस के बारे में एक अजीब, मगर बेहद चिंताजनक बात के सबूत पर सबूत मिल रहे हैं। इस वायरस के शिकार होने वाले बहुत से लोगों में खांसी, बुख़ार और स्वाद व गंध का पता न चलने के लक्षण दिखाई देते हैं।
 
मगर, इससे संक्रमित कई ऐसे भी लोग हैं, जिनमें कोई लक्षण ही नहीं दिखते। और, इसी वजह से उन्हें कभी पता ही नहीं चलता कि वो कोविड-19 की बीमारी अपने साथ लेकर घूम रहे हैं। ये ठीक वैसे ही है, जैसे कोई इंसान अपनी जेब में बम लेकर चल रहा हो, और उसे इसकी ख़बर ही न हो।
 
कोरोना वायरस पर रिसर्च करने वालों का कहना है कि दुनिया में कितने लोग वायरस से ऐसे संक्रमित हैं कि उनमें लक्षण नहीं हैं, इस बात का पता लगना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि इसी से हमें ये पता चलेगा कि क्या ये 'साइलेंट स्प्रेडर' या गुप चुप तरीक़े से वायरस फैला रहे लोग ही महामारी का दायरा बढ़ा रहे हैं।
 
नए कोरोना वायरस के 'साइलेंट स्प्रेडर' का अंदाज़ा सबसे पहले सिंगापुर के डॉक्टरों को हुआ था। 19 जनवरी को जब सिंगापुर की एक चर्च में लोग सर्विस के लिए जमा हुए थे, तो उन्हें इस बात का क़तई अंदाज़ा नहीं था कि उनकी इस प्रार्थना सभा का असर पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के प्रसार पर पड़ने जा रहा है।
 
वो रविवार का दिन था। और इस चर्च की किसी आम प्रार्थना सभा की तरह एक सर्विस, मैन्डैरिन या चीनी भाषा में भी हो रही थी। 'द लाइफ़ चर्च ऐंड मिशन्स' की ये प्रार्थना सभा, एक इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर हो रही थी। इसमें पति पत्नी का एक जोड़ा भी शामिल था, जो उसी सुबह चीन से सिंगापुर आया था। दोनों की ही उम्र 56 बरस के आस पास थी।
 
रहस्यमयी तरीक़े से कोरोना वायरस का संक्रमण
जब वो चर्च की बैठक में शामिल होने के लिए आए, तो बिल्कुल स्वस्थ दिख रहे थे। ऐसे में ये शक करने की कोई वजह नहीं बनती थी कि वो अपने साथ कोरोना वायरस लेकर घूम रहे हैं। इस साल जनवरी के महीने तक यही माना जा रहा था कि कोविड-19 का सबसे बड़ा लक्षण लगातार ख़ांसी का आना है।
 
और, इसी के ज़रिए सबसे अधिक संक्रमण भी फैलता है। अब अगर किसी में इस बीमारी के कोई लक्षण ही नहीं हैं, तो ये कैसे मान लिया जाए कि उस इंसान से ये बीमारी फैल रही है। चीन से आए ये दंपति, प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने के तुरंत बाद वहां से चले गए। लेकिन, कुछ ही दिनों बाद हालात बिगड़ने लगे। और वो भी बेहद रहस्यमयी अंदाज़ में।
 
पहले तो प्रार्थना सभा में शामिल होने के तीन दिन बाद यानी 22 जनवरी को पत्नी बीमार पड़ी। इसके दो दिन बाद पति भी बीमार हो गया। चूंकि, पति पत्नी दोनों ही चीन के वुहान शहर से आए थे, जो उस समय इस महामारी का केंद्र था, तो किसी को उनके बीमार होने पर हैरानी नहीं हुई।
 
लेकिन, इसके एक हफ़्ते बाद, जब तीन अन्य स्थानीय लोग भी रहस्यमयी तरीक़े से कोरोना वायरस के संक्रमण से बीमार हो गए, तो डॉक्टर हैरान रह गए। ये सिंगापुर में कोरोना वायरस के प्रकोप का पहला सबसे अजीब मामला था। जब इस बात का पता लगा लिया गया कि इन लोगों तक वायरस कैसे पहुंचा, तो इससे बेहद डरावनी तस्वीर सामने आई।
 
तब जा कर पता चला कि नया कोरोना वायरस कितनी आसानी से अपने लिए नए शिकार तलाश लेता है।
 
'बीमारी के गुप्तचर' जुटाने का अभियान
सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय में संक्रामक रोगों के विभाग के प्रमुख डॉक्टर वर्नोन ली कहते हैं, "हम इन लोगों के बीमार होने से बहुत परेशान थे। जो लोग एक दूसरे को जानते तक नहीं थे, उन्होंने एक दूसरे को इस वायरस से संक्रमित कर दिया था।"
 
हैरान करने वाली बात ये थी कि इनमें बीमारी के कोई लक्षण ही नहीं थे। उस वक़्त दुनिया को कोविड-19 के बारे में जितना पता था, उससे इन नए मरीज़ों के बीमार होने की कोई वजह, ऊपरी तौर पर तो दिखाई नहीं दे रही थी।
 
तो, डॉक्टर वर्नोन ली और उनके साथी वैज्ञानिकों ने पुलिस अधिकारियों और बीमारी का पता लगाने वाले अन्य विशेषज्ञों के साथ इस मामले की तफ़्तीश करनी शुरू की। इन टीमों ने मिलकर इस बात का एक व्यापक ख़ाका तैयार किया कि वायरस से संक्रमित लोग, कब कब कहां गए।
 
इसमें कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल किया गया। आज ब्रिटेन में भी वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए इसी का सहारा लिया जा रहा है। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को इस महामारी के दौरान, हर संक्रमित व्यक्ति का पता लगाने के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी माना जाता है।
 
क्योंकि, इसकी मदद से संक्रमित लोगों को बाक़ी लोगों से अलग किया जाता है, ताकि वो अन्य लोगों को संक्रमित न कर सकें। सिंगापुर को किसी काम को बेहद कुशलता और तेज़ी से करने के लिए जाना जाता है। और उन्होंने इस मामले में भी ये कर दिखाया।
 
वायरस के रहस्य का पर्दाफ़ाश
हैरानी की बात है कि अगले कुछ ही दिनों में इस मामले की तफ़्तीश करने वालों ने कम से कम 191 लोगों से बात-मुलाक़ात कर ली थी, जो उस चर्च से ताल्लुक़ रखते थे। इस पूछताछ के दौरान ये पता चला था कि इन 191 में से 142 लोग उस रविवार को चर्च की प्रार्थना सभा में शामिल हुए थे।
 
इससे, सिंगापुर के उन दो नागरिकों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने का राज़ भी खुल गया। क्योंकि वो दोनों भी रविरा को चर्च की उस प्रार्थना सभा में शामिल हुए थे, जिसमें वुहान से आए उस चीनी जोड़े ने शिरकत की थी।
 
डॉक्टर वर्नोन ली कहते हैं, "हो सकता है कि सिंगापुर के इन दो संक्रमित लोगों ने भी उस चीनी जोड़े से बात की हो। चर्च की सर्विस के दौरान एक दूसरे का अभिवादन किया हो।"
 
ये कोरोना वायरस के रहस्य का पर्दाफ़ाश करने की दिशा में बहुत उपयोगी शुरुआत थी। और अब सिद्धांत रूप से ये पता चल चुका था कि कोरोना वायरस का संक्रमण कैसे अन्य लोगों तक पहुंच रहा था। हालांकि, सिंगापुर के डॉक्टरों की इस तफ़्तीश से एक और महत्वपूर्ण सवाल का जवाब अब तक नहीं मिला था।
 
और वो सवाल ये था कि जब इस चीनी दंपत्ति में वायरस के संक्रमण के कोई लक्षण थे ही नहीं, तो उस दौरान उन्होंने दूसरे लोगों को कैसे इस वायरस से संक्रमित कर दिया। और इससे भी बड़ी पहेली तो ये थी कि, चर्च में गए सिंगापुर की जिस एक और नागरिक को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ था, वो तो उस प्रार्थना सभा में शामिल भी नहीं हुई थी, जिसमें ये चीनी जोड़ा गया था।
 
सिंगापुर की ये नागरिक 52 बरस की एक महिला थी, जो उस प्रार्थना सभा के कई घंटों बाद उसी चर्च की एक अन्य सर्विस में उसी दिन शामिल हुई थी। ऐसे में सवाल ये था कि इस महिला तक कोरोना वायरस कैसे पहुंचा?
 
ऐसा सबूत जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए सिंगापुर में कोरोना वायरस की तफ़्तीश कर रहे जांचकर्ताओं ने सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग देखनी शुरू की। ये उस रविवार को चर्च में हुई प्रार्थना सभाओं की रिकॉर्डिंग थी। किसी संकेत की तलाश में जुटे जांचकर्ताओं को इस रिकॉर्डिंग से एक ऐसा सबूत मिला, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी।
 
सिंगापुर की उस महिला ने चीनी दंपत्ति के वहां से जाने के बाद, चर्च में बाद वाली सर्विस में हिस्सा लिया था। इस दौरान, ये महिला उसी सीट पर बैठी थी, जहां पर वुहान से आये चीनी दंपत्ति, कुछ घंटों पहले बैठे हुए थे। साफ़ है कि जो चीनी दंपत्ति वुहान से आए थे, उन्होंने बिना कोविड-19 के किसी लक्षण के ही तमाम लोगों में वायरस फैला दिया था।
 
शायद ये वायरस उनके हाथ में था और उन्होंने चर्च में सीट को छुआ था और वायरस वहां से फैला। या फिर ये भी हो सकता है कि उनकी सांसों के ज़रिए वायरस ज़मीन पर फैला। हालांकि, ये अटकले हैं। पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
 
लेकिन, ज़रिया जो भी रहा हो, इस चीनी दंपत्ति में वायरस के लक्षण नहीं थे और अनजाने में उन्होंने कई लोगों में संक्रमण फैला दिया था। डॉक्टर वर्नोन ली ने तमाम कड़ियां जोड़ कर जो ख़ाका तैयार किया था, उससे एक ही बात साफ़ हुई थी। और वो ये थी कि कई लोग अनजाने में ये वायरस दूसरों में फैला रहे थे।
 
ये एक ऐसा राज़ था, जिसके खुल जाने का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ने वाला था। इसकी वजह ये थी कि कोरोना वायरस से जुड़ी सभी एडवाइज़री में एक बात पर बहुत ज़ोर दिया गया था। वो ये था कि आप ख़ुद में और अपने आस पास के लोगों में इसके लक्षण देखें, तो उनसे दूरी बना कर रखें।
 
लेकिन, अगर ये वायरस ऐसे लोगों द्वारा फैलाया जा रहा था, जिनमें इसके संक्रमण के लक्षण ही नहीं थे। और वो ख़ामोशी से अनजाने में में वायरस को दूसरे लोगों तक पहुंचा रहे थे। ऐसे में सवाल ये था कि इस बीमारी को फिर रोका किस तरह से जा सकता है?
 
डॉक्टर वर्नोन ली को जब इस बात का अंदाज़ा हुआ, तो उस वक़्त वो अपने दफ़्तर में बैठ कर काम कर रहे थे। उस लम्हे को याद करते हुए कहते हैं डॉक्टर ली ने कहा कि, "जब भी आप कोई वैज्ञानिक खोज करते हैं, तो ऐसा लगता है कि आपने सारा जहां पा लिया। ख़ास तौर से जब आपको एहसास होता है कि आप ने जिस बात का पता लगाया है, वो बेहद महत्वपूर्ण है। और इसे आपने बहुत से लोगों की बड़ी मेहनत और टीम वर्क से हासिल किया है।"
 
लक्षण दिखने से पहले ही वायरस का संक्रमण
सिंगापुर में डॉक्टर ली और उनकी टीम ने नए कोरोना वायरस से जुड़ी जिस बात का पता लगाया था, उसे 'प्री-सिम्टोमैटिक ट्रांसमिशन' या लक्षण सामने आने से पहले ही वायरस का प्रकोप फैलना कहा गया। जिसमें वायरस को फैलाने वाले को ये पता ही नहीं था कि वो इससे संक्रमित है।
 
क्योंकि, उसे न तो बुखार आ रहा था, न खांसी और न ही वायरस के संक्रमण के अन्य लक्षण उसमें सामने आए थे। अन्य बातों के अलावा, सिंगापुर के डॉक्टरों की इस रिसर्च से ये बात भी सामने आई कि किसी व्यक्ति में कोविड-19 बीमारी के लक्षण दिखने से 24 से 48 घंटे पहले का समय बेहद महत्वपूर्ण था।
 
इस दौरान, संक्रमित व्यक्ति के दूसरे लोगों को वायरस से संक्रमित करने का ख़तरा अधिक था। शायद इस दौरान वो सबसे अधिक संक्रमण फैला रहे थे। इस बात से आगाह होना बेहद काम की बात साबित हो सकती है।
 
क्योंकि, जैसे ही आपको ये एहसास होता है कि आप बीमार हैं, तब आप जितने भी लोगों के नज़दीकी संपर्क में आए होते हैं, उन्हें घर पर ही रहने की चेतावनी दी जा सकती है। इसका ये मतलब होगा कि ये लोग संक्रमण फैलाने के सबसे ख़तरनाक दौर में अपने घरों में अकेले होंगे। जब तक इनमें वायरस के प्रकोप के लक्षण नहीं दिखने लगते।
 
लेकिन, बिना कफ़ की बूंदों के भी ये वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में कैसे पहुंच जाता है, इस पहेली का सुलझना अब तक बाक़ी ही है। इस सवाल का एक जवाब ये हो सकता है कि महज़ सांस लेने भर से या फिर किसी व्यक्ति से बात करने भर से भी वायरस संक्रमित कर सकता है।
 
अगर, उस समय तक वायरस किसी के श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से में ही फैल रहा होता है, तो ये भी संभव है कि कुछ वायरस उसके सांस छोड़ने के दौरान बाहर निकलते हों। ऐसे में अगर कोई अन्य इंसान आपके क़रीब हो, ख़ास तौर से बंद कमरे में, तो वो बड़ी आसानी से वायरस का शिकार बन सकता है।
 
छूना भी नए कोरोना वायरस के संक्रमण का एक और घातक ज़रिया हो सकता है। अगर वायरस किसी व्यक्ति के हाथ में है और वो किसी अन्य व्यक्ति या दरवाज़े के हैंडल या चर्च की सीट को छूता है, तो वायरस वहां पहुंच जाता है। अब वायरस के फैलने का रास्ता जो भी हो, लेकिन एक बात एकदम साफ़ है।
 
अगर किसी इंसान में कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण स्पष्ट नहीं हैं, तो वो उतनी सावधानी नहीं बरतता, जितनी उसे करनी चाहिए। और इस असावधानी से वायरस और तेज़ी से फैल रहा है।
 
कई लोगों में कभी लक्षण नहीं दिखते
ये बात तो और भी रहस्य भरी है। और वैज्ञानिकों के पास अब तक इसका कोई ठोस जवाब भी नहीं है। बिना लक्षणों वाले किसी व्यक्ति के कोरोना वायरस का संक्रमण फैलाने की बात एक तरफ़ है। लेकिन, अगर कोई व्यक्ति संक्रमित हो, फिर भी उसमें कोई लक्षण न दिखें, तो ये बात और भी परेशान करने वाली है।
 
इसे ही वैज्ञानिक 'एसिम्टोमैटिक' या बिना लक्षण वाले केस कहते हैं। क्योंकि आप बीमारी के वाहक हैं। दूसरे लोगों तक वायरस पहुंचा रहे हैं। मगर, इससे ख़ुद आपको कोई तकलीफ़ नहीं होती। इस बात की सबसे अच्छी मिसाल आयरलैंड की रहने वाली एक महिला की दी जाती है। ये मामला पिछली सदी की शुरुआत में न्यूयॉर्क में सामने आया था।
 
उस महिला का नाम था मैरी मैलन। वो जहां भी काम करती थी, लोग टाइफॉइड से बीमार हो जाते थे। मैरी ने एक के बाद एक कई घरों में काम किया और हर घर में उसने टाइफॉइड फैला दिया। उसके कारण कम से कम तीन लोगों की मौत भी हो गई। लेकिन, ख़ुद मैरी पर इस बीमारी का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ।
 
और, आख़िर में जब मैरी और बीमार होते लोगों के बीच के इस संबंध की पुष्टि की गई, तो ये बात साफ हो गई कि मैरी, अनजाने में अन्य लोगों को टाइफॉइड का शिकार बना रही थी। जबकि ख़ुद उसे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उस दौर में अख़बारों ने मैरी का नाम, 'टाइफॉइड मैरी' रख दिया था।
 
मैरी ने इस बात को लेकर हमेशा नाराज़गी जताई थी। लेकिन, मैरी और बीमारी के इस संबंध का पता लगने के बाद अधिकारियों ने फिर और कोई जोखिम नहीं लिया। मैरी को 1938 में उसकी मौत तक, यानी क़रीब 23 साल तक अकेले बंद कर के रखा गया था।
 
जब सारे अंदाज़े धरे के धरे रह गए
ब्रिटेन की नर्स एमेलिया पॉवेल उस वक़्त हैरान रह गईं, जब वो कोरोना पॉजिटिव निकलीं। जबकि एमेलिया में वायरस के संक्रमण का एक भी लक्षण नहीं था। एमेलिया, कैम्ब्रिज के एडेनब्रूक अस्पताल में नर्स हैं। अप्रैल महीने में एक डॉक्टर ने उन्हें फ़ोन करके बताया था कि वो कोरोना के एक टेस्ट में वायरस से संक्रमित पायी गई हैं।
 
एमेलिया उस समय तक पूरी तरह से सामान्य थीं। और, पर्सनल प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट (PPE) पहन कर पूरी तरह से सुरक्षित महसूस करती थीं। अस्पताल में वो कोविड-19 के मरीज़ों का ख़याल रखा करती थीं। लेकिन, अचानक ही उनके सारे अनुमान धरे के धरे रह गए थे। ख़ुद के कोरोना पॉज़िटिव होने से एमेलिया बहुत हैरान थीं।
 
23 बरस की एमेलिया बताती हैं, "डॉक्टर से फ़ोन पर ये सुनना ठीक वैसा ही था, जैसे आपको किसी अपने के गुज़र जाने की ख़बर मिली हो। ये कल्पना से भी परे था। मैं ने सोचा कि ये सही नहीं हो सकता। मुझे तो कोरोना वायरस संक्रमित कर ही नहीं सकता। मैं तो बिल्कुल ठीक हूं।"
 
ये जानकारी मिलने के बाद एमेलिया को अपना काम छोड़ कर फ़ौरन घर पर आइसोलेट होना पड़ा था। वो कहती हैं, "मैं फिक्र में पड़ गई थी क्योंकि मैंने संक्रमित लोगों का हाल देखा था। मरीज़ों की हालत बड़ी तेज़ी से बिगड़ जाती थी। तो मैं ये सोचने लगी थी कि क्या मेरे साथ भी ऐसा ही होगा।"
 
लेकिन, एमेलिया ये जानकर हैरान थीं कि उन्हें बिल्कुल भी बीमार होने जैसा नहीं महसूस हो रहा था। वो बताती हैं कि, 'मेरे अंदर तो कोई भी लक्षण नहीं थे। मैं घर के भीतर वर्ज़िश कर रही थी। सामान्य तौर पर खाना खा रही थी। जैसे सोती हूं, उतनी ही नींद ले रही थी।"
 
इस समय इस बात का पता लगा पाना असंभव है कि दुनिया में कितने लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। मगर उनमें इसके लक्षण नहीं दिखते हैं। एमेलिया भी इस वायरस की शिकार हैं, ये ऐसे पता लगा कि अस्पताल के स्टाफ़ पर एक अध्ययन किया जा रहा था। इस स्टडी के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए थे।
 
इसमें शामिल एक हज़ार लोगों में से तीन प्रतिशत, कोरोना वायरस से संक्रमित थे। जबकि इनमें उस समय तक संक्रमण के एक भी लक्षण नहीं दिख रहे थे।
 
इस साल की शुरुआत में जापान के तट पर रोके गए क्रूज़ शिप डायमंड प्रिंसेज पर इससे भी अधिक ऐसे लोग पाये गए थे, जो इस वायरस से संक्रमित थे। मगर, उनमें संक्रमण के कोई लक्षण नहीं थे। बाद में इस जहाज़ को 'संक्रमण की प्याली' का नाम दिया गया था। क्योंकि डायमंड प्रिंसेज में 700 लोग कोरोना पॉजिटिव पाये गए थे।
 
वहीं, वॉशिंगटन के एक केयर होम में आधे से अधिक लोग वायरस के शिकार पाए गए थे। जबकि, इनमें से किसी में भी बीमार होने के संकेत नहीं दिखे थे।
 
'कोई भी स्टडी भरोसेमंद नहीं'
अलग अलग अध्ययन बताते हैं कि बिना लक्षण वाले मामले पांच से अस्सी प्रतिशत तक हो सकते हैं। ये निष्कर्ष ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर कार्ल हेनेघन का था। जिन्होंने 21 रिसर्च का विश्लेषण करके ये नतीजा निकाला था।
 
प्रोफ़ेसर हेनेघन की टीम का कहना था, "बिना लक्षण वाले लोगों में वायरस के संक्रमण एक भी अध्ययन ऐसा नहीं है, जिस पर भरोसा किया जा सके।"
 
साथ ही उनका ये कहना था कि अगर, केवल उन्हीं लोगों का कोरोना टेस्ट किया जा रहा है, जिनमें इसके लक्षण दिखाई देते हैं, तो बहुत से मामले जांच के दायरे से बाहर ही रह जाएंगे। और इनकी संख्या शायद बहुत अधिक होगी।
 
फिलहाल, ब्रिटेन ही नहीं, भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस का टेस्ट उन्हीं लोगों में किया जा रहा है, जिनमें इसके लक्षण दिख रहे हैं।
 
'साइलेंट स्प्रेडर' से कितना ख़तरा है
ब्रिटेन की नर्स एमेलिया की सबसे बड़ी चिंता ये थी कि उन्होंने अनजाने में न जाने कितने लोगों तक वायरस को फैला दिया होगा। ये लोग वो भी हो सकते हैं, जो एमेलिया के साथ काम करते हैं या फिर वो मरीज़ भी हो सकते हैं, जो देखभाल के लिए उस पर निर्भर थे।
 
हालांकि एमेलिया कहती हैं, "मुझे नहीं लगता है कि मैंने ये वायरस दूसरे लोगों में फैलाया। क्योंकि मेरे सारे सहकर्मी तो नेगेटिव निकले थे। लेकिन, मेरे लिए ये बात फिर भी बहुत फिक्र वाली थी कि मैं कितने समय से कोरोना से संक्रमित थी। हमें अब भी ये नहीं पता कि जिन लोगों में लक्षण नहीं होते, क्या वो इसका संक्रमण फैलाते हैं या फिर नहीं। ये बहुत अजीब बात है। और इस समय इसके बारे में बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध है।"
 
चीन में हुए एक अध्ययन में पता चला था कि इसके लक्षण वाले संक्रमित लोगों के मुक़ाबले, कोरोना वायरस से संक्रमित ऐसे लोगों की तादाद ज़्यादा थी, जिनमें इसके लक्षण बिल्कुल ही नहीं थे।
 
इस स्टडी को करने वाले वैज्ञानिकों ने लिखा, "साइलेंट स्प्रेडर के तौर पर बिना लक्षण वाले इन कोरोना वायरस के वाहकों पर ध्यान देने की ज़रूरत ज़्यादा है। तभी हम इस महामारी की रोकथाम कर पाएंगे।"
 
वैज्ञानिकों की जिस टीम ने डायमंड प्रिंसेज क्रूज़ शिप के मुसाफिरों पर स्टडी की थी, उन्हें जांच में पता चला था कि बिना लक्षणों वाले लोग अन्य लोगों को संक्रमित कर पाने में कम सक्षम हैं। ख़ास तौर से उन लोगों की तुलना में, जिनमें इसके लक्षण साफ़ दिखते हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि बिना लक्षण वाले लोगों ने कोरोना वायरस को फैलाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की।
 
बिना लक्षण वाले संक्रमण का 'डार्क मैटर'
'एसिम्टोमैटिक साइलेंट स्प्रेडर' की पहेली सुलझाने में इस वक़्त इंग्लैंड के नॉर्विच शहर के वैज्ञानिक भी जुटे हुए हैं। वो अब पूरे शहर के लोगों का कोरोना टेस्ट करने पर ज़ोर दे रहे हैं। अर्लहम इंस्टीट्यूट नाम के एक रिसर्च सेंटर के प्रमुख प्रोफ़ेसर नील हॉल कहते हैं कि, 'बिना लक्षण वाले केस, इस महामारी के डार्क मैटर हैं।'
 
डार्क मैटर वो अदृश्य तत्व है, जिसके बारे में माना जाता है कि सारा ब्रह्मांड उसी से बना है। लेकिन, अब तक उसकी पहचान नहीं हो सकी है।
 
प्रोफ़ेसर हॉल की चिंता ये है कि ये बिना लक्षणों वाले लोग ही कोविड-19 की महामारी फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा कर रहे हैं। सरकार के तमाम क़दमों के बावजूद, इन्हीं के कारण महामारी की रोकथाम के उपाय नाकाम हो रहे हैं।
 
प्रोफ़ेसर हॉल कहते हैं, "अगर आपके आस पास ऐसे लोग हैं, जो ये नहीं सोचते कि वो बीमार हैं। तो वो सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करेंगे। अस्पताल और क्लिनिक जाएंगे। और ऐसे में तो संक्रमण और बढ़ेगा ही।"
 
उनका कहना है, "अगर लोग वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने पर ही डॉक्टर के पास आते हैं, और इस महामारी की रोकथाम ऐसे लोगों के इलाज तक ही सीमित है, तो यक़ीन जानिए ये इस समस्या का आधा अधूरा समाधान है।"
 
अमरीका के कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों की एक टीम का मानना है, "अगर ये पता ही नहीं है कि कौन बिना लक्षणों के है और कोरोना वायरस लेकर घूम रहा है, तो ये एक बहुत बड़ा छल है। ये महामारी से लड़ने की बहुत बड़ी चुनौती भी है।"
 
इन वैज्ञानिकों के अनुसार, इस महामारी को रोकने का एक ही तरीक़ा है। ये पता लगाया जाए कि इस वायरस से कौन कौन संक्रमित है। भले ही उसमें लक्षण हों या न हों। इसके लिए बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस का टेस्ट करना होगा। ब्रिटेन के सांसदों की कॉमन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी कमेटी ने भी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को ख़त लिख कर यही सिफ़ारिश की थी।
 
इन सांसदों ने लिखा था कि, 'इस महामारी के प्रबंधन में बिना लक्षण वाले लोगों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।' साथ ही ब्रिटिश सांसदों की इस कमेटी ने ये सिफ़ारिश भी की थी कि कोरोना वायर से संक्रमित लोगों की देख भाल कर रहे लोगों का तो नियमित रूप से कोरोना टेस्ट होते रहना चाहिए।
 
चीन के वुहान शहर में भी इस नुस्खे को व्यापक तौर पर आज़माया जा रहा है। यहीं से इस महामारी की शुरुआत हुई थी।
 
वुहान में केवल नौ दिनों में 65 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट किया गया था। ताकि इस महामारी का पता लगाया जा सके। इसमें वो लोग भी शामिल थे, जिनमें इसके कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे।
 
लॉकडाउन में रियायतों की शुरुआत
अब जैसे जैसे भारत समेत अन्य देशों में लॉकडाउन में रियायतें दी जा रही हैं, तो लोग सार्वजनिक परिवहन, जैसे कि मेट्रो, बस और रेल सेवाओं का इसतेमाल करना शुरू करेंगे। वो ख़रीदारी के लिए बाज़ार और मॉल में जाएंगे। ऐसे में इस अनदेखे ख़तरे पर पकड़ बनाना और ज़रूरी हो गया है।
 
इस समय इस बात का पता लगा पाने का कोई ज़रिया नहीं है कि भीड़ में कौन सा इंसान ऐसा है जो कोरोना वायरस से ग्रसित है। ख़ास तौर से बिना टेस्ट के तो ये पता लगा पाना असंभव ही है। इसीलिए, दुनिया भर के देशों की सरकारें कह रही हैं कि संक्रमित लोगों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने में पूरा सहयोग करें।
 
और अगर ख़ुद उस व्यक्ति के संपर्क में आए हों तो सेल्फ़ आइसोलेशन में जाएं। महामारी की रोकथाम मे लगे लोग ये सलाह भी दे रहे हैं कि आज भी कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ सबसे मज़बूत हथियार सोशल डिस्टेंसिंग ही है। जहां पर भी आप लोगों से दूरी बना सकते हैं, तो दूर ही रहें।
 
लेकिन, जहां पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना संभव न हो, वहां पर अपने चेहरे को ढंक कर रखें। भले ही आप घर में बने मास्क का ही इस्तेमाल क्यों न करें। जब अमरीकी सरकार ने इस नीति का एलान किया था, तो उसने सिंगापुर की चर्च में जनवरी महीने में किए गए रिसर्च का ही हवाला दिया था।
 
अमरीकी सरकार का तर्क ये है कि बात सिर्फ़ ख़ुद को महफ़ूज़ करने की नहीं है। ये अपने आप से अन्य लोगों को भी सुरक्षित रखने की है। क्योंकि, हो सकता है कि आप वायरस से संक्रमित हों, पर आपको इसकी ख़बर ही न हो।
 
स्वास्थ्य के बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि मास्क पहनने पर ज़ोर देने से कहीं हाथों की सफ़ाई करने या सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति लोग लापरवाही न बरतें। अगर, इन कामों में लापरवाही बरती जाती है, तो भी तो संक्रमण के फैलने का डर है।
 
लेकिन, अब दुनिया की तमाम सरकारों को इस बात पर भरोसा हो रहा है कि, मास्क पहन कर इस वायरस की रोकथाम करने में ज़्यादा मदद मिल सकती है। ऐसा नहीं है कि बस चेहरा ढंक लेने से महामारी अपने आप रुक जाएगी।
 
लेकिन, चूंकि अब तक हम बिना लक्षणों वाले लोगों के बारे में बहुत कम ही जानते हैं, तो किसी भी नुस्खे को आज़माने में कोई हर्ज़ नहीं। अगर उससे संक्रमण रुकता है, तो अच्छी बात है।
 
जब आप, कोरोना वायरस के गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टरों से बात करते हैं, तो पहली बात तो ये कि हफ़्तों से लगातार काम करते रहने के कारण ये डॉक्टर पूरी तरह निढाल नज़र आते हैं। इनमें से ज़्यादातर डॉक्टरों का पहला जुमला यही होता है, 'हमने ऐसे हालात इससे पहले कभी नहीं देखे।'
 
डॉक्टरों को पता था कि एक नई बीमारी का प्रकोप फैलने वाला है। उन्हें ये भी अंदाज़ा था कि सांस की इस अनजानी बीमारी के मरीज़ों की बाढ़ आने से अस्पताल के संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा। ये बीमारी पहली दफ़ा, पिछले साल के अंत में चीन में सामने आई थी।
 
ग्लास्गो रॉयल इनफर्मरी की क्लिनिकल डायरेक्टर, बारबरा माइल्स कहती हैं, "ऐसा लगता है कि हम कई दिनों से डी-डे के हमले की तैयारी कर रहे थे। हमारे पास तैयारी के लिए तीन हफ़्ते थे। और हमें इस बात को लेकर ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि हमारा सामना किस चुनौती से होने जा रहा है।"
 
डी-डे लैंडिंग्स दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, मित्र राष्ट्रों की तरफ़ से जर्मनी की सेनाओं पर आख़िरी बड़ा हमला था। जब, फ्रांस में मित्र देशों की सेनाएं उतरी थीं।
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