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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 11 सितम्बर 2023 (09:32 IST)

G-20 summit: विदेशी मीडिया में भारत के प्रभाव का ज़िक्र, चीन के मीडिया ने कहा मोदी को होगा फ़ायदा

G-20 summit: विदेशी मीडिया में भारत के प्रभाव का ज़िक्र, चीन के मीडिया ने कहा मोदी को होगा फ़ायदा - Mention of Narendra Modi regarding G-20 in Chinese media
G-20 summit: दिल्ली में संपन्न जी-20 शिखर सम्मेलन में जारी नई दिल्ली घोषणापत्र को भारत की कूटनीतिक जीत और बढ़ते हुए वैश्विक प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। भारत, यूक्रेन युद्ध के बेहद जटिल मुद्दे पर ऐसा साझा बयान जारी करने में कामयाब रहा, जिसका यूक्रेन को छोड़कर हर पक्ष ने स्वागत किया है। नई दिल्ली घोषणापत्र के सात पैराग्राफ़ यूक्रेन युद्ध पर हैं और इनमें रूस का नाम नहीं लिया गया है।
 
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के सभी नेताओं के साथ सहज दिखे।
 
आख़िर में उनकी रूस के विदेश मंत्री लावरोफ़ के साथ 'हंसी मज़ाक' करते हुए एक तस्वीर भी आई।
 
विश्व मीडिया ने भी अपनी रिपोर्टों में भारत के बढ़ते प्रभाव और जी-20 सम्मेलन की कामयाबी का ज़िक्र किया है।
 
अमेरिकी न्यूज़ संस्थान एनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'जी-20 में भारत का बढ़ता वैश्विक प्रभाव दिखा तो साथ ही प्रेस की आज़ादी की चिंताएं भीं
 
इस सप्ताहांत नई दिल्ली में दुनियाभर के नेता और राष्ट्राध्यक्ष दो दिन के जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मौजूद रहे। इस दौरान दिल्ली थम सी गई थी।
 
'भारत का बढ़ता आर्थिक और भू-राजनैतिक प्रभाव'
 
एनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'दुनिया के अमीर और विकासशील देशों की इस बैठक ने भारत के बढ़ते आर्थिक और भू-राजनैतिक प्रभाव को तो दिखाया ही है साथ ही देश की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार, ख़ासकर प्रेस की आज़ादी पर सरकार के नज़रिए, की बढ़ती आलोचना को भी दिखाया।'
 
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका का सहयोगी देश है। वहीं दूसरी तरफ़ भारत ने पश्चिमी देशों और रूस के बीच मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई है।
 
एनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'भारत वामपंथी चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं के लिए एक महत्वपूर्ण काउंटर वेट (प्रतिवाद) भी प्रदान करता है।'
 
एनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में पत्रकारों को नेताओं से दूर रखे जाने का ज़िक्र करते हुए लिखा है, 'नई दिल्ली में लगे पोस्टरों पर भारत ने अपने आप को मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी घोषित किया है लेकिन सैकड़ों पत्रकारों को सम्मेलन में आये नेताओं से दूर ही रखा गया।'
 
एनबीसी लिखता है, 'आम प्रोटोकॉल के विपरीत शुक्रवार रात भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रपति जो बाइडन की मुलाक़ात को कवर करने की अनुमति किसी भी पत्रकार को नहीं दी गई।'
 
वहीं सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में रूस के नई दिल्ली घोषणा पत्र को 'कामयाब' कहने और यूक्रेन की इस पर नाराज़गी का ज़िक्र किया है।
 
सीएनएन ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ के बयान को प्रकाशित किया है।
 
सम्मेलन का घोषणा पत्र जारी होने के अगले दिन यानी रविवार को लावरोफ़ ने कहा था, 'ये सम्मेलन सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं बल्कि हम सबके लिए कामयाब रहा।'
 
यूक्रेन युद्ध एक जटिल मुद्दा है और इसे लेकर पश्चिमी देशों, रूस और चीन के बीच मतभेद है।
 
नई दिल्ली घोषणा पत्र में एक वाक्य में लिखा है, 'स्थिति को लेकर अलग-अलग नज़रिये और आकलन थे।।', ये सदस्य देशों के बीच मतभेदों को ही प्रतिबिंबित करता है।
 
सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'अंतिम समझौता बयान शिखर सम्मेलन के मेज़बान, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पासा पलटने के समान था, लेकिन ये फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से अपनाए गए नरम रुख़ को दर्शाता है।'
 
भारत का बयान जारी करा लेना बड़ी कामयाबी
 
वहीं 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जी-20 का घोषणापत्र यूक्रेन को लेकर बढ़ते मतभेद और ग्लोबल साउथ (भारत जैसे विकासशील देशों) के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
 
जी-20 सम्मेलन में अफ़्रीकी यूनियन को भी सदस्य देश के रूप में शामिल कर लिया गया है।
 
'वॉशिंगटन पोस्ट' ने लिखा है, 'मेज़बान भारत अलग-अलग समूहों से अंतिम बयान पर दस्तख़त कराने में कामयाब रहा, लेकिन यूक्रेन में रूस के युद्ध के विवादित मुद्दे पर भाषा को नरम करके ऐसा किया गया।'
 
'वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि जी-20 सम्मेलन के क़रीब आने के अंतिम महीनों में भी भारत यूक्रेन युद्ध को लेकर घोषणापत्र के शब्दों पर सहमति नहीं बनवा सका था क्योंकि चीन और रूस बाली में इस्तेमाल की गई भाषा के भी ख़िलाफ़ थे।
 
सम्मेलन के समापन के एक दिन पहले जारी किए गए घोषणापत्र में 'यूक्रेन युद्ध की मानवीय पीड़ा और नकारात्मक प्रभावों' को रेखांकित गिया गया। हालांकि इसमें रूस के नाम तक नहीं है।
 
कई विश्लेषक ये आशंका ज़ाहिर कर रहे थे कि जी-20 सम्मेलन में साझा बयान जारी करा लेना मुश्किल होगा। हालांकि सम्मेलन के पहले दिन ही नई दिल्ली घोषणापत्र जारी हो गया।
 
जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ शोल्त्स ने इस घोषणा पत्र को भारतीय कूटनीति की कामयाबी कहा है।
 
ओलाफ़ ने कहा, रूस ने अपना प्रतिरोध छोड़ दिया है और उसने यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।
 
'वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र किया है कि पश्चिमी देश रूस के इस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर को भी एक कामयाबी के रूप में देख रहे हैं।
 
मोदी और बीजेपी को होगा फ़ायदा- 'ग्लोबल टाइम्स'
 
चीन के सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने भी अपने लेख में कहा है कि जी-20 सम्मेलन ने बढ़ते मतभेदों के बीच बुनियादी एकजुटता प्रदर्शित की है।
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने लिखा है, 'दिल्ली में संपन्न हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में अंततः साझा बयान स्वीकार कर लिया गया जिसमें बहुत बुनियादी एकजुटता और यूक्रेन युद्ध को लेकर तटस्थ नज़रिया है।'
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने लिखा है, 'चीनी विश्लेषकों का कहना है कि जी-20 वैश्विक शासन के लिए अभी भी एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय तंत्र है, भले ही समूह प्रमुख शक्तियों के बीच जटिल संघर्षों के कारण शिथिलता के ख़तरों का अधिक सामना कर रहा है।'
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने सम्मेलन में हिस्सा लेने आए चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग के बयान को भी प्रकाशित किया है।
 
सम्मेलन के दौरान ली चियांग ने कहा था, 'ली ने कहा कि जी-20 के सदस्यों को अनुकरणीय भूमिका निभानी चाहिए, विशिष्ट मामलों से शुरुआत करनी चाहिए और वर्तमान में अच्छा करने का प्रयास करना चाहिए। ली ने कहा कि सबसे ज़रूरी मुद्दा विकास है और जी-20 के सदस्यों को विकास को वृहद नीति समन्वय के केंद्र में रखना चाहिए।'
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने फुडान यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर ली मिनवांग के हवाले से लिखा है, 'जी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता भारत में मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के शासन को मज़बूत करेगी।'
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने लिखा है कि भारत को इस सम्मेलन से बहुत कुछ हासिल हुआ है क्योंकि भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने आप को 'बहुत आकर्षक' बना दिया है। भारत एक ऐसा देश है, जिसके पीछे रूस और पश्चिमी देशों दोनों हैं।
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने लिखा है, 'भारत इस बात का भी प्रतिनिधित्व करता है कि विकासशील देश यूक्रेन संकट पर पश्चिम और रूस के बीच पक्ष नहीं लेना चाहते हैं और जब अमेरिका ने चीन के ख़िलाफ़ चारों तरफ़ से नियंत्रण करना शुरू कर दिया है तो वे किसी का पक्ष लेने के लिए मजबूर नहीं होना चाहते हैं।'
 
'ग्लोबल टाइम्स' ने विश्लेषकों के हवाले से ये भी कहा है कि अभी भारत की राष्ट्रीय शक्ति और अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी नहीं है कि वो ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने का अपना सपना साकार कर सके।
 
'मोदी को श्रेय मिलना न्यायसंगत होगा'
 
वहीं पाकिस्तान के अख़बार 'डॉन' में प्रकाशित एक विश्लेषण कहा गया है कि अगर दिल्ली में जारी साझा घोषणा पत्र से यूरोप में शांति आती है तो इसका कुछ श्रेय मोदी को जाएगा, जो न्यायसंगत भी होगा।
 
'डॉन' ने लिखा है, 'इसी महीने भारत की संसद का मोदी के आह्वान पर विशेष सत्र भी शुरू होगा और वो उसमें और कोई बड़ा काम भी कर सकते हैं। दुनिया की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने यूक्रेन के लिए शांति का संदेश दे दिया है लेकिन उन्होंने मणिपुर और कश्मीर सहित भारत के बड़े हिस्सों में लोगों की पीड़ा के समाधान के लिए किसी जल्दबाज़ी का कोई संकेत नहीं दिया है।'
 
रूस की समाचार एजेंसी तास ने जर्मन अख़बार डीत ज़ायत की ख़बर का ज़िक्र करते हुए कहा है कि जी-20 का साझा बयान संकेत देता है कि पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने में नाकाम रहे।
 
जर्मन अख़बार डीत ज़ायत ने अपने लेख में कहा है कि रूस की आलोचना करने वाला पैराग्राफ़ का ना होना बताता है कि रूस को अलग-थलग करने के प्रयास नाकाम हो गये हैं।
 
इस लेख में कहा गया है, 'क्या जी-20 शिखर सम्मेलन उम्मीदों के विपरीत सफल रहा? चांसलर ओलाफ ने कम से कम परिणाम को इस तरह से पेश करने की कोशिश की। लेकिन वास्तविकता काफी गंभीर है।'
 
डीत ज़ायत के टिप्पणीकार ने अपने लेख में कहा है कि एक साल पहले बाली घोषणा पत्र के शब्द रूस के मुंह पर तमाचे की तरह थे। अब जर्मन चांसलर ने 'वो स्वीकार कर लिया है जिसे छुपाया नहीं जा सकता है।', घोषणापत्र में कोई आलोचना नहीं है। 'थप्पड़ का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है।'(Photo Courtesy: BBC)
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